Friday, 14 February 2025

भाभी की मर्दानगी पार्ट एक

भाग १: शंका का बीज

"भाभी, एक बात पूछूं?" देवराज ने अपनी भाभी, राधिका से पूछा। राधिका रसोई में चाय बना रही थी, और देवराज बरामदे में बैठकर अखबार पढ़ रहा था।
"क्या बात है, देवराज?" राधिका ने बिना मुड़े पूछा।

"ये...तुम्हारे...ये जो..." देवराज अटक रहा था।

राधिका ने चाय का कप चूल्हे पर से उतारा और देवराज की तरफ मुड़ी। "क्या हुआ, देवराज? कुछ कहना है तो साफ-साफ कहो।"
देवराज ने अखबार नीचे रखा और थोड़ा गंभीर होकर बोला, "भाभी, तुम्हारे चेहरे पर ये मूछें...ये थोड़ी अजीब नहीं लगतीं?"

राधिका का चेहरा पल भर के लिए लाल हो गया।  उसने अपने हाथों से अपनी मूछों को छुआ, जैसे बरसों से छुपाए एक रहस्य को सबके सामने उजागर कर दिया गया हो।  "क्या अजीब लगता है?  ये तो...इतनी तो मेरे घर में सबके के है।  खानदानी हैं।"

"नहीं, मेरा मतलब वो नहीं है," देवराज बोला। "मेरा मतलब है कि...औरतों के चेहरे पर मूछें...ये थोड़ा मर्दानी सी बात लगती है, है ना?"

राधिका शरमा गई पर ये बात उसे कई बार सुननी पड़ी थी, और हर बार उसके दिल को एक ठेस सी लगती थी।  "देवराज, तुम ये क्या बातें कर रहे हो?  क्या तुम्हें कोई और काम नहीं है?"
"नहीं, भाभी, बात दरअसल ये है..." देवराज थोड़ा हिचकिचाया, "मुझे लगता है कि...शायद तुम थोड़ी...मर्दानी हो।"

राधिका गुस्से से लाल हो गई।  "देवराज!  तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये सब कहने की?  तुम जानते भी हो क्या बोल रहे हो?"

"भाभी, गुस्सा मत करो, मैं बस..." देवराज अपनी बात समझाने की कोशिश कर रहा था। "मैंने कई औरतों को भी देखा है, उनके चेहरे पर इतनी मूछें नहीं होतीं।  और..."

"और क्या?" राधिका ने तेज आवाज में कहा।

देवराज थोड़ा डरा, लेकिन फिर भी अपनी बात पर अड़ा रहा। "और...मैंने सुना है कि मर्दानी औरतों के...उनके..."  वो फिर अटक गया।
"उनके क्या?" राधिका ने अपनी आवाज और तीखी कर ली।
देवराज ने गहरी सांस ली और एक ही झटके में बोल दिया, "उनके बगल में भी बाल होते हैं, बहुत घने।"

राधिका की आँखें फटी की फटी रह गईं।  उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।  "देवराज!  तुम बिलकुल बदतमीज हो!  तुम्हें जरा भी शर्म नहीं है?  ये सब बातें तुम्हें किसने सिखाईं?"

"किसी ने नहीं, भाभी," देवराज बोला। "मैंने बस...मैंने बस देखा है।"

"क्या देखा है?" राधिका ने गुस्से में कहा।

"मैंने...मैंने डिस्कवरी चैनल पर एक डॉक्यूमेंट्री देखी थी," देवराज ने झूठ बोला।  "उसमें उन्होंने बताया था कि कुछ औरतों में मर्दों वाले हॉर्मोन ज्यादा होते हैं, जिसकी वजह से उनके चेहरे पर मूछें और बगल में घने बाल होते हैं।"

राधिका को समझ में आ गया कि देवराज सिर्फ अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहता है।  लेकिन उसका तरीका बिलकुल गलत था।  "देवराज, तुम अभी जाओ यहाँ से।  मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी।"

देवराज थोड़ा उदास हो गया।  "भाभी, मैं बस जानना चाहता था..."

"जानना चाहते थे?" राधिका ने व्यंग्य से कहा। "क्या जानना चाहते थे?  कि मैं मर्दानी हूँ या नहीं?"

देवराज चुप रहा।

"तुम्हें क्या लगता है?" राधिका ने पूछा। "अगर मेरे चेहरे पर मूछें हैं, तो क्या मैं मर्दानी हो गई?"
"नहीं, भाभी, मेरा मतलब वो नहीं था," देवराज बोला। "मैं बस..."
"बस क्या?" राधिका ने उसे बोलने नहीं दिया। "तुम बस ये जानना चाहते हो कि मेरे बगल में बाल हैं या नहीं, है ना?"
देवराज ने नजरें चुरा लीं।
राधिका ने एक गहरी सांस ली।  "देवराज, तुम छोटे हो।  तुम्हें अभी बहुत कुछ सीखना है।  और सबसे पहले, तुम्हें ये सीखना चाहिए कि औरतों की इज्जत कैसे की जाती है।  तुमने जो बातें कहीं हैं, वो बहुत गलत हैं।  मुझे उम्मीद है कि तुम आगे से ऐसी बातें नहीं करोगे।"

देवराज चुपचाप खड़ा रहा।

"अब जाओ यहाँ से," राधिका ने कहा। "और आइंदा ऐसी बातें करने से पहले सौ बार सोचा करो।"

देवराज बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया।  राधिका थोड़ी देर चुपचाप खड़ी रही, फिर चाय का कप उठाकर पीने लगी।  उसका हाथ अभी भी थोड़ा काँप रहा था।  उसे गुस्सा तो बहुत आया था, लेकिन साथ ही साथ शर्म भी आ रही थी।  देवराज ने उसे एक ऐसे सवाल का जवाब देने के लिए मजबूर कर दिया था, जिसके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था।

भाग २: दूध से बन गई मूंछें 

कुछ दिन बीत गए, और राधिका और देवराज के बीच की चुप्पी अभी भी बरकरार थी। देवराज अब भी राधिका से बात करने में हिचकिचाता था, लेकिन उसके मन में उठी जिज्ञासा शांत होने का नाम नहीं ले रही थी। वो किसी न किसी तरीके से ये जानना चाहता था कि क्या उसकी भाभी सच में मर्दानी है।

एक दिन, राधिका दूध पी रही थी। जल्दी में पीते वक्त, थोड़ी सी दूध की मलाई उसके ऊपरी होंठ पर, मूछों के ऊपर लग गई। देवराज, जो पास ही बैठा अखबार पढ़ रहा था, ये देखकर अपनी हँसी नहीं रोक पाया।

"भाभी, भाभी," वो हँसते हुए बोला, "ये क्या हो गया? तुम्हारी मूछों पर दूध लग गया है!"

राधिका ने झेंपकर अपना हाथ मूछों पर फेरा। उसे एहसास हुआ कि देवराज सही कह रहा है। उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया। "अरे, ये क्या हो गया," वो बड़बड़ाई।

देवराज ने पास रखा एक छोटा सा दर्पण उठाया और राधिका को दिखाया। "देखो भाभी, बिलकुल सफ़ेद-सफ़ेद लगा है। जैसे असली की मूंछें हों!"

राधिका ने दर्पण में अपना चेहरा देखा। दूध की मलाई उसकी मूछों पर बिलकुल साफ़ दिख रही थी, और उसे देखकर उसे अपनी मर्दानगी का फिर से एहसास हुआ। उसकी शर्म और बढ़ गई।

"देवराज, तुम ये क्या कर रहे हो?" वो झिझकते हुए बोली।
देवराज ने दर्पण नीचे रख दिया, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी शरारत थी। "कुछ नहीं, भाभी। बस तुम्हें दिखा रहा था।"
राधिका ने एक गहरी सांस ली। "देवराज, तुम फिर वही बातें शुरू कर रहे हो? तुम्हें जरा भी शर्म नहीं है?"
"नहीं, भाभी," देवराज बोला। "मैं बस एक सवाल पूछना चाहता था।"
"क्या सवाल?" राधिका ने थोड़ा गुस्से से कहा।
"ये...तुम्हें आदमी पसंद हैं?" देवराज ने पूछा।
राधिका थोड़ी हैरान हुई। "कैसे आदमी?"
"हाँ, मतलब...तुम्हें मर्दाना आदमी पसन्द हैं या...या सिर्फ वो जिनके चेहरे पर बाल  नहीं होते हैं?" देवराज ने अपनी बात को घुमा-फिरा कर कहा।

राधिका समझ गई कि देवराज फिर अपनी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश कर रहा है। "देवराज, ये सब बातें तुम्हें किसने सिखाईं?"
"किसी ने नहीं, भाभी," देवराज बोला। "मैंने बस...मैंने बस जानना चाहा।"
"जानना चाहा?" राधिका ने व्यंग्य से कहा। "क्या जानना चाहा? कि अगर मेरे चेहरे पर मूछें हैं, तो क्या मैं मर्दानी हो गई?"
देवराज चुप रहा।
"तुम्हें क्या लगता है?" राधिका ने पूछा। "अगर मेरे चेहरे पर बाल हैं, तो क्या मैं मर्दानी हो गई?"
"नहीं, भाभी, मेरा मतलब वो नहीं था," देवराज बोला। "मैं बस..."
"बस क्या?" राधिका ने उसे बोलने नहीं दिया। "तुम बस ये जानना चाहते हो कि अगर किसी औरत के चेहरे पर बाल हैं, तो क्या वो मर्दानी होती है?"
देवराज ने नजरें चुरा लीं।

देवराज बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया। राधिका थोड़ी देर चुपचाप खड़ी रही, फिर अपना दूध ख़त्म किया। उसका हाथ अभी भी थोड़ा काँप रहा था। उसे गुस्सा तो बहुत आया था, लेकिन साथ ही साथ शर्म भी आ रही थी। देवराज ने उसे एक ऐसे सवाल का जवाब देने के लिए मजबूर कर दिया था, जिसके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था।

भाग ३: जिज्ञासा और बेचैनी

देवराज अब बच्चा नहीं था। इक्कीस साल का हो चुका था, और शरीर की बनावट, हॉर्मोन्स, और स्त्री-पुरुष के अंतरों के बारे में अच्छी तरह जानता था। उसने मेडिकल साइंस की कुछ किताबें भी पढ़ी थीं, जिनमें उसने पढ़ा था कि कुछ महिलाओं में पुरुषों वाले हॉर्मोन की अधिकता हो सकती है, जिसके चलते उनमें कुछ मर्दानी लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे चेहरे पर घने बाल, शरीर पर अधिक बाल, और कुछ दुर्लभ मामलों में, आवाज में भारीपन। उसने ये भी पढ़ा था कि ऐसे मामलों में, कुछ महिलाओं के जननांगों में भी थोड़ा-बहुत अंतर हो सकता है।
राधिका के चेहरे पर मूछें देखकर देवराज के मन में यही शंका पैदा हुई थी। उसने कई औरतों को देखा था, किसी के चेहरे पर इतनी घनी मूछें नहीं थीं। और फिर वो दूध वाली बात...उसने राधिका को दर्पण दिखाया तो ज़रूर था मज़ाक में, लेकिन उसके मन में यही सवाल घूम रहा था कि क्या राधिका सच में 'वैसी' है?
ये सवाल उसके दिमाग में काँटे की तरह चुभ रहा था। वो राधिका की इज्जत करता था, और उसे किसी भी तरह से शर्मिंदा नहीं करना चाहता था। लेकिन अपनी जिज्ञासा को भी वो दबा नहीं पा रहा था। वो जानता था कि अगर राधिका 'वैसी' हुई, तो इसमें उसकी कोई गलती नहीं है। ये तो हॉर्मोनल गड़बड़ी की वजह से होता है। लेकिन फिर भी, वो सच जानना चाहता था।
उसने कई बार सोचा कि राधिका से सीधे-सीधे पूछ ले। लेकिन हर बार उसकी हिम्मत जवाब दे जाती थी। वो डरता था कि राधिका क्या सोचेगी। क्या वो उसे गलत समझेगी? क्या वो उससे नफ़रत करने लगेगी? क्या घर के बाकी लोग उसे बुरा-भला कहेंगे?

भाग ४: अनकही बातें, बदले रिश्ते

एक रात, देवराज अपने कमरे में जाने के लिए गलियारे से गुजर रहा था। उसने सुना कि उसके भाई, विक्रम, राधिका के कमरे में गुस्से से कुछ कह रहे हैं। आवाज साफ़ नहीं आ रही थी, लेकिन देवराज को कुछ शब्द सुनाई दिए - "इतनी बाल वाली," "मर्दानी," "शर्म नहीं आती।" देवराज समझ गया कि विक्रम राधिका के चेहरे के बालों और उसके मर्दानी लक्षणों के बारे में कुछ कह रहा है।
देवराज के पैरों तले की जमीन खिसक गई। उसे एहसास हुआ कि सिर्फ वही नहीं, उसका भाई भी राधिका को 'वैसा' समझता है, और उसे इस बात से नफ़रत है। विक्रम की बातों से राधिका के दुख का भी अंदाज़ा देवराज को हुआ। उसे लगा जैसे किसी ने उसके दिल पर ज़ोर से मुक्का मारा हो। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसका भाई, जिसके साथ राधिका ने अपनी पूरी जिंदगी बिताने का फैसला किया है, उसके बारे में ऐसी बातें सोचता है।
देवराज का मन उदासी से भर गया। उसे राधिका के लिए बहुत बुरा लगा। उसने सोचा कि राधिका कितनी अकेली होगी। सब लोग उसे 'मर्दानी' कहते हैं, उसका पति भी उसे पसंद नहीं करता। वो कितनी तकलीफ में होगी, ये सोचकर देवराज का दिल भर आया।
उस रात देवराज सो नहीं पाया। वो करवटें बदलता रहा, लेकिन उसे चैन नहीं मिला। उसे राधिका की उदास आँखें याद आ रही थीं। उसे लग रहा था जैसे राधिका उससे कुछ कहना चाहती है, लेकिन कह नहीं पा रही है।
अगले दिन से देवराज का व्यवहार राधिका के प्रति पूरी तरह बदल गया। अब वो उसे छेड़ता नहीं था, न ही उसकी मूछों का मज़ाक उड़ाता था। बल्कि, वो उसके साथ बहुत प्यार से पेश आता था। वो उससे बातें करता, उसकी पसंद-नापसंद के बारे में पूछता, और हर काम में उसकी मदद करता। उसने राधिका को ये एहसास दिलाने की कोशिश की कि वो अकेली नहीं है, और वो उसकी परवाह करता है।

राधिका देवराज के इस बदले हुए व्यवहार से हैरान थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि देवराज को अचानक क्या हो गया है। एक दिन उसने देवराज से पूछा, "देवराज, तुम आजकल मुझसे इतने अच्छे से बात क्यों करते हो? क्या हुआ है?"

देवराज ने राधिका की आँखों में देखा। उसकी आँखें नम थीं। "कुछ नहीं, भाभी," वो बोला। "बस...मैं चाहता हूँ कि तुम खुश रहो।"
राधिका ने देवराज का हाथ थामा। "देवराज, तुम बहुत अच्छे हो," वो बोली। "लेकिन मुझे बताओ, क्या बात है? तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो?"

देवराज ने राधिका को सारी बात बताने का फैसला किया। उसने उसे बताया कि उसने विक्रम को रात में क्या कहते हुए सुना था। उसने उसे ये भी बताया कि वो उसे 'मर्दानी' नहीं समझता, और वो उसकी बहुत इज्जत करता है।
राधिका की आँखें भर आईं। उसने देवराज को गले लगा लिया। "देवराज, तुम कितने अच्छे हो," वो बोली। "तुमने मेरी आँखें खोल दीं। मुझे अब समझ में आया कि तुम मुझसे इतनी बातें क्यों करते हो।"
देवराज ने राधिका को बताया कि उसे इस बात का बहुत दुख है कि विक्रम उसे पसंद नहीं करता। राधिका ने उसे समझाया कि विक्रम थोड़ा अलग है, और वो अपनी भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त नहीं कर पाता। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वो उसकी परवाह नहीं करता।
देवराज को राधिका की बातें सुनकर थोड़ी शांति मिली। उसने राधिका से वादा किया कि वो हमेशा उसके साथ रहेगा, और उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेगा।
उस दिन के बाद से देवराज और राधिका के रिश्ते और भी गहरे हो गए। वो दोनों एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त बन गए। देवराज राधिका की हर बात समझता था, और राधिका देवराज की। दोनों ने मिलकर एक दूसरे को सहारा दिया, और एक दूसरे के दुखों को बाँटा।
एक दिन, देवराज ने राधिका से पूछा, "भाभी, क्या तुम कभी विक्रम से बात करने की कोशिश की हो?"
राधिका ने उदास होकर कहा, "हाँ, देवराज, मैंने कई बार कोशिश की है। लेकिन वो मेरी बात सुनने को तैयार ही नहीं है। उसे लगता है कि मैं 'अलग' हूँ, और वो मुझे स्वीकार नहीं कर पाता।"
देवराज ने राधिका का हाथ थामा। "भाभी, तुम अलग नहीं हो," वो बोला। "तुम बहुत अच्छी हो, और मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ।"
राधिका ने देवराज को गले लगा लिया। "धन्यवाद, देवराज," वो बोली। "तुम्हारे होने से मुझे बहुत ताकत मिलती है।"

भाग ५: एक नया मोड़, अनकहा प्यार, एक वादा

समय बीतता गया। देवराज की कोशिशों से विक्रम और राधिका के रिश्ते में सुधार तो आया था, लेकिन ये सुधार अस्थायी साबित हुआ। कुछ महीनों बाद, विक्रम ने अचानक दूसरी लड़की से शादी कर ली और घर छोड़कर चला गया। राधिका पूरी तरह से टूट गई। उसका दिल हजारों टुकड़ों में बिखर गया। उसे लगा जैसे उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा सहारा खो दिया है।
देवराज राधिका की हालत देखकर बहुत दुखी था। वो जानता था कि विक्रम के जाने से उसे कितना दर्द हुआ होगा। उसने राधिका को हर तरह से सहारा देने का फैसला किया। वो उसके साथ समय बिताता, उससे बातें करता, और उसे हंसाने की कोशिश करता। धीरे-धीरे, देवराज की मेहनत रंग लाई। राधिका धीरे-धीरे अपने दुख से बाहर निकलने लगी।
छह महीने गुजर गए। राधिका अब पहले से बहुत बेहतर थी। उसने अपनी जिंदगी को फिर से शुरू करने का फैसला किया। इस मुश्किल समय में देवराज ने उसका बहुत साथ दिया था। राधिका को एहसास हुआ कि देवराज सिर्फ उसका देवर ही नहीं, उसका सबसे अच्छा दोस्त भी है। उसने देवराज को प्यार करना शुरू कर दिया। लेकिन ये प्यार एक अजीब सी उलझन से भरा हुआ था।
राधिका जानती थी कि वो देवराज से कभी अपने प्यार का इज़हार नहीं कर सकती। उसका एक बहुत बड़ा कारण था। वो जानती थी कि वो 'मर्दानी' है। सिर्फ चेहरे पर बाल होने की वजह से नहीं, बल्कि उसकी शारीरिक बनावट भी ऐसी थी कि कोई भी मर्द उसे स्वीकार नहीं कर सकता। विक्रम भी इसी वजह से उसे छोड़कर चला गया था। और देवराज... वो तो अभी बहुत छोटा है। वो उसे कैसे समझेगा? ये सोचकर राधिका का दिल और भी दुख से भर जाता था।
एक दिन, राधिका अपने कमरे में बैठी सोच रही थी। उसने अपने आप से कहा, "मैं देवराज से प्यार करती हूँ, लेकिन मैं उसे ये बात कभी नहीं बता सकती। वो मुझे कभी नहीं समझेगा। वो मुझे छोड़ देगा।"
उसी समय, देवराज कमरे में आया। उसने राधिका को उदास बैठे देखा तो उससे पूछा, "भाभी, क्या बात है? तुम इतनी उदास क्यों हो?"
राधिका ने देवराज को कुछ नहीं बताया। उसने सिर्फ कहा, "कुछ नहीं, देवराज। मैं ठीक हूँ।"
लेकिन देवराज जानता था कि राधिका झूठ बोल रही है। उसने राधिका का हाथ थामा और कहा, "भाभी, तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो। मुझे बताओ, क्या बात है?"
राधिका ने देवराज की आँखों में देखा। उसकी आँखें नम थीं। उसने कहा, "देवराज, मैं... मैं तुम्हें सब कुछ बताना चाहती हूँ, लेकिन मुझे डर लगता है।"
देवराज ने राधिका को कहा, "भाभी, तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो। मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा। तुम मुझे सब कुछ बता दो।"
राधिका ने एक गहरी सांस ली और देवराज को अपनी सारी बातें बता दीं। उसने उसे अपनी शारीरिक बनावट के बारे में बताया, अपनी मर्दानगी के बारे में बताया, और विक्रम के छोड़कर जाने की वजह के बारे में भी बताया।
देवराज ने राधिका की सारी बातें ध्यान से सुनीं। उसे राधिका की बातें सुनकर बहुत दुख हुआ। लेकिन उसने राधिका से कहा, "भाभी, तुम जैसी भी हो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं तुम्हें...मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ।" उसने अपने प्यार का इज़हार कर दिया।
राधिका की आँखों में आँसू आ गए। उसने देवराज का हाथ थामा और कहा, "देवराज, मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूँ। लेकिन...लेकिन मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती।"
देवराज थोड़ा हैरान हुआ, पर उसने राधिका की बात समझी। "भाभी, मैं तुम्हारी बात समझता हूँ," उसने कहा। "मुझे तुम्हारी मर्दानगी से कोई समस्या नहीं है। लेकिन मैं तुम्हें कभी किसी चीज़ के लिए मजबूर नहीं करूँगा। अगर तुम मुझसे शादी नहीं करना चाहती, तो कोई बात नहीं। मैं तुम्हारी दोस्ती से भी खुश हूँ। मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा, एक दोस्त की तरह।"
राधिका ने देवराज को गले लगा लिया। "देवराज, तुम कितने अच्छे हो," वो बोली। "तुमने मेरी जिंदगी बदल दी है।"
देवराज और राधिका अब एक दूसरे को और भी ज्यादा चाहने लगे। लेकिन उनके बीच एक अजीब सी खामोशी थी। राधिका जानती थी कि देवराज उसे प्यार तो करता है, लेकिन वो उसे कभी अपनी पत्नी नहीं बना सकता। और देवराज... वो भी इस बात को समझता था। लेकिन वो राधिका को खोना नहीं चाहता था। इसलिए वो दोनों एक दूसरे के साथ रहते थे, एक दूसरे को प्यार करते थे, लेकिन कभी अपने प्यार का इज़हार नहीं करते थे। क्योंकि उन्हें पता था कि उनके प्यार की एक अधूरी कहानी है। एक ऐसी कहानी जिसमें प्यार है, दोस्ती है, लेकिन शादी नहीं।
(अगला भाग जल्द ही)
भाग ६: दिल के तार, शर्मीली धड़कन
देवराज और राधिका के बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया था। प्यार था, दोस्ती थी, पर एक अनकही सी दूरी भी थी। देवराज, राधिका की मर्दानगी से अनजान नहीं था, बल्कि उसे वो सब भाने लगा था। उसके चेहरे की मूछें, पैरों के घने बाल, उसके बाइसेप्स, सब कुछ देवराज को अपनी ओर खींचता था। उसे राधिका की ये खासियतें दूसरी औरतों से अलग और ख़ास लगती थीं। वो अक्सर राधिका की तारीफ करता, कभी उसकी मूछों की, कभी उसके बालों की, कभी उसकी ताकत की।
राधिका शर्मा जाती थी। उसे पता था कि देवराज की नजर में उसके ये लक्षण अलग हैं, और उसे अच्छे लगते हैं। लेकिन फिर भी, एक महिला होने के नाते, उसे शर्म आती थी। उसे लगता था जैसे देवराज उसकी कमजोरियों को उजागर कर रहा है। वो जानती थी कि देवराज के मन में कोई बुरी भावना नहीं है, लेकिन फिर भी वो शर्मा जाती थी। आखिरकार, ऊपर से वो एक महिला ही तो थी, भावनाओं से भरी, शर्म और संकोच से घिरी।
एक दिन, देवराज राधिका के पास बैठा उसकी मूछों को देख रहा था। "भाभी," वो बोला, "तुम्हारी मूछें कितनी घनी हैं। बिलकुल राजाओं जैसी।"
राधिका शर्मा गई। उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। "देवराज, तुम फिर वही बातें शुरू कर रहे हो?" वो बोली।
देवराज हँसा। "क्या बात है, भाभी? तुम्हें अपनी मूछें पसंद नहीं हैं क्या?"
राधिका ने कहा, "नहीं, ऐसी बात नहीं है। बस... मुझे थोड़ा अजीब लगता है जब तुम मेरी मूछों के बारे में बात करते हो।"
देवराज ने राधिका का हाथ थामा। "भाभी, मुझे तुम्हारी हर चीज अच्छी लगती है," वो बोला। "तुम्हारी मूछें, तुम्हारे बाल, तुम्हारी ताकत... सब कुछ।"
राधिका का चेहरा और भी लाल हो गया। उसने अपना हाथ देवराज के हाथ से छुड़ा लिया। "देवराज, तुम बहुत बदमाश हो," वो बोली।
देवराज हँसने लगा। "मैं तो बस तुम्हारी तारीफ कर रहा था, भाभी," वो बोला।
राधिका चुप रही। उसे समझ नहीं आ रहा था कि देवराज को क्या जवाब दे। वो जानती थी कि देवराज उससे प्यार करता है, और वो भी उसे चाहती है। लेकिन उसकी शारीरिक बनावट उन्हें एक दूसरे के करीब आने से रोक रही थी।
कुछ दिनों बाद, देवराज ने राधिका से कहा, "भाभी, क्या हम कभी घूमने जा सकते हैं?"
राधिका ने कहा, "हाँ, क्यों नहीं? लेकिन कहाँ?"
देवराज ने कहा, "कहीं भी। बस हम दोनों अकेले हों।"
राधिका थोड़ी झिझकी। वो देवराज के साथ अकेले जाने से डर रही थी। उसे लग रहा था जैसे वो उसके और करीब आ रही है, और ये बात उसे डरा रही थी।
लेकिन फिर भी, वो देवराज को ना नहीं कह सकी। उसने कहा, "ठीक है। हम एक दिन घूमने जाएँगे।"
और वो दिन आया भी। देवराज राधिका को एक खूबसूरत जगह पर ले गया। वहाँ चारों तरफ हरे-भरे पेड़ थे, और एक छोटी सी नदी बह रही थी। दोनों ने वहाँ बहुत मजा किया। देवराज ने राधिका की तस्वीरें खींचीं, और राधिका ने देवराज की। दोनों ने एक दूसरे के साथ बहुत खुशी के पल बिताए।
लेकिन जब वो घर लौट रहे थे, तो राधिका के मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। उसे लग रहा था जैसे वो देवराज के और भी करीब आ गई है, और ये बात उसे डरा रही थी। उसे लग रहा था जैसे वो एक ऐसे रास्ते पर चल रही है, जिसका कोई अंत नहीं है।
उसे डर लग रहा था कि कहीं वो देवराज को खो न दे। उसे डर लग रहा था कि कहीं उसकी मर्दानगी उनके प्यार में रुकावट न बन जाए। और सबसे ज्यादा डर उसे इस बात का था कि कहीं देवराज उसे छोड़ न दे।
(अगला भाग जल्द ही)

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