एक था गाँव जिसका नाम था जुनागड़, बहुत ही छोटा सा गाँव था, बस 50-60 घरों का बसेरा था। करीब 170 लोग रहते थे उस गाँव में। गाँव से दस किलोमीटर की दूरी पर ही शहर था, मगर शहर के शोर-गुल से परे था। बहुत ही शांत और खूबसूरत गाँव था जुनागड़। वहाँ की औरते मर्दो से जयादा लम्बी और ताक़तवर होती थी। ये कुदरत का करिश्मा था गॉव के लोग जयादा धयान नहीं देते थे.
मर्द सुबह-सुबह ही काम पर निकल जाते थे, कुछ शहर की तरफ और कुछ खेतों की तरफ। औरतें खेती का काम-काज करती थी इसीलिए ताक़तवर थी । उसी गाँव में पाँच दोस्त रहते थे- राजु, मोहन, असलम,आरीफ और मनु ।
पाँचोँ जवानी में कदम रख चुके थे.बस उनके दिमाग़ में 24 घंटे सिर्फ़ औरत-औरत-औरत होती थी। मम्मे, चूत, गाण्ड, लौड़ा, चुदाई बस यही सब उनकी ज़िंदगी बन गई थी ! पाँचोँ चुदाई के लिए इतना तरस रहे थे कि उन्हें अपनी माँ ,बहन, भाभी के बारे में भी गंदी-गंदी बातें करने में भी कोई शर्म नहीं आती थी। कभी-कभी शहर जाकर फिल्म देखना और वहाँ से गंदी-गंदी कहानियाँ और तस्वीरों वाली किताबे खरीदना उनका शौक़ था।
एक दिन ऐसे ही झाड़ियों में बैठकर लौड़ा लंगोटी में से हाथ में लेकर मुठ मारते हुए बतिया रहे थे चारों चोदू यार ! आसलम किसी रिश्तेदार के यहाँ गया हुआ था ।
आरीफ : अबे सालो, कल जो देखी थी "आया सावन झुम के" कसम से क्या पिक्चर थी ! आशा पारेख की तो दीवाना हो गया मैं यार !
मोहन : हाँ रे आरीफ ! सही कहता है, उस आशा ने क्या गांड हिला कर ठुमके लगा रही थी ! मेरा तो लौड़ा तन के बांस हो गया था। क्या चौडी गांड थी उसकी ।
मनु : मोहन, तेरा तो लौड़ा तन कर बांस हो गया था मगर मेरा तो उस छिनाय के जलवे देखकर वहीं पानी निकल गया ! आअहह !
राजु : मनु, मेरी हालत तो मत पूछ ! मेरा तो दिल किया कि मैं पर्दे में घुस जाऊँ और आशा पारेख की पेटीकोट सरका कर उसकी चूत और गाण्ड चाट लूँ !
आरीफ : क्या चूत होगी उस सुअरनी की ! काली-काली झांटों से भरी, रस टपकाती ! अम्म ! सोचकर ही मेरे मुँह में पानी आ रहा है।मनु : तुझे कैसे पता कि आशा पारेख की चूत झांटों से भरी होगी?
मोहन : अबे चोदूमल ! वो पुराने जमाने का फिल्म है और जहाँ तक मैंने सुना है उस समय की औरतें चूत, गाण्ड और बगल के बाल नहीं काटती। झांटों की मदद से वो मर्दों को रिझाती हैं। उसकी मूछें नहीं देखई क्या तूने हलकी हलकी ? . उसी को देख के लगता है की बहुत बाल होंगे उसके.
उसकी टांगो पर भी बाल होंगे फिर तो ?
मनु : इसका मतलब मीना कुमारी की बुर और गांड मेँ भी झाँट होँगी ? हाय !
राजु : हाँ यार मुझे भी बुर और गांड मेँ झाँटोँ वाली औरतेँ बहुत पसंद हैँ ।
मोहन : सेठ् की बीबी की भी चुतड उभर आए हैं, साली अभी बडी साली अभी बडी मटक के चलती है !
राजु : हाँ रे मोहन ! सेठ् की बीबी को तो चोदने का बहुत मन करता है, उसकी चूत तो झांटोँ से भरी हुई होगी ! और गाण्ड के तो क्या कहने ! उसकी काली चूत में मुँह मारने को जी कर रहा है।
आरीफ : राजु, काली चुत तो आसलम की माँ की भी है, क्या बडी-बडी चुतड है पठाईन की । क्या तुने देखी है आसलम की माँ की गांड ?
राजु : हाँ, एक बार देखी थी ।
मनु : कहाँ देखा था ?
राजु : क्षेत मेँ , पता है मैँने क्या देखा ! सुनोगे तो तुम लोगोँ के होश उड जाएंगे ।
आरीफ : अबे तुने ऐसा क्या देख लिया जो हमारा होश उडा देगा !
राजु :एक दिन सुबह को मैँ थोडा जल्दी शौच करने क्षेत की और गया था । तभी मैँने आसलम की माँ को एक झाडी की और तेजी से जाते हुए देखा । उसने दोनोँ हाथोँ से साडी को अपनी जांघोँ तक सरका रखी थी । और फिर अचानक उसने झाडी के पास जाकर साडी को एकदम कमर के उपर तक उठा ली और बैठ गई ।
मोहन : क्या ! आसलम की माँ की चौडी गांड तो पुरी नंगी हो गई होगी ?
राजु : हाँ, मैँने अपने आप को छिपाते हुए झाडी के पास जाकर उसकी चिकनी उभरी गांड देखने लगा जो बैठने से और चौडी हो गई थी । हाय ! क्या नजारा था !
आरीफ : अबे उसकी गांड और बुर मेँ बाल थे की नहीँ ?
राजु : गांड मेँ तो बाल थे पर उसकी बुर ठीक से देख नहीँ पाया । फिर उसने उठी और मालुम है उसने क्या की ?
मनु : अबे बोलना ।
राजु : आसलम की माँ उठ खडी हुई और साडी को बगैर निचे किए उसी तरह कमर मेँ पकडी नंगी नाले की और जाने लगी । अब मुझे उसकी चुतड साफ दिखाई देने लगा । चलने से उसकी बडी-बडी चुतडेँ उपर-निचे थिरक रही थी । मैँने नाले के सामने एक झाडी मेँ छुप गया ताकि उसकी बुर देख पाऊं । उसने गांड धोने के लिए पानी के घाट मेँ आकर बैठ गई । तुरंत मैँने बुर पर नजर दौडाई तो मेरे आँखेँ खुले के खुले रह गए !
आरीफ : अबे जल्दी आगे बोलना क्या देखा ।
राजु : यार आसलम की माँ की बुर नहीँ थी ।
आरीफ : क्या ! बुर नहीँ था ! क्या मतलब है तेरा ।
राजु : उसकी जांघोँ के बिच मर्द जैसा एक लम्बा और मोटा लंड लटका हुआ था ।
आरीफ : लंड ! आसलम की माँ की ? अबे व तो औरत है,ये लंड कहां से आ गया ।
राजु : वही तो, मैँ तो एकदम हैरान था । लंड तो था साथ मेँ दो बडे अंडे जैसे अंडकोष, सारे घने काले झांटोँ भरे थे । फिर उसने गांड धोने के बाद अपनी लंड को भी पानी से धोया और उठ के घर चली गई । मेरा तो पुरा बदन कांप रहा था । आसलम की माँ औरत है या मर्द ?
मोहन : हाय ! मेरा तो लंड टाईट हो गया तेरी बात सुनकर । चाची की लंड कितना बडा था ?
राजु : व तो लगभग 6 इंच के आसपास था, एकदम मुर्झा हुआ था फिर भी उसकी लंड काफी लम्बा और मोटा था । लाल सुपाडा आधा बाहर था ।
आरीफ : मैँ तो यही सोच रहा हुँ की जब हमारा लंड पुरे तनाव मेँ 6 इंच का होता है तो चाची की लंड पुरी तनाव कितनी बडी होगी । यार राजु, तुने उसकी कोई और हरकत देखी ?
राजु : हरकत ! क्या मतलब ।
आरीफ : क्या उसने अपनी लंड के साथ कोई ऐसी . . वैसी . . . ।
राजु : नहीँ यार, उसने गांड धोकर चली गई । लेकिन उसके दो दिन बाद मैँने और देखने के लिए आसलम के घर गया था । आसलम और उसका अब्बु किसी काम से शहर गए हुए थे ।
मनु : घर मेँ और क्या-क्या देखा तुने ।
राजु : मैँने बहाने बनाकर चाची के साथ बातेँ की और जैसे ही उसने नहाने के लिए निकली तो मैँने उसे कहा की मैँ चलता हुँ ।
आरीफ : अबे चला क्योँ आया ।
राजु : अरे वहां रहता तो व ज्यादा चौकन्नी रहती । मेरे चले जाने से व अकेली बेपरवाह होकर नहाएगी । मेरे निकलते ही उसने दरवाजा बंद कर ली ।
आरीफ : ये एकदम सही बात है, औरतेँ अकेले मेँ कभी-कभी नंगी होकर नहाना पसंद करतीँ है ।
राजु : कुछ देर बाद मैँने पिछले दरवाजे से अंदर आ गया । कुऐँ के पास उनका पुराना मकान था जो टूट चुका था, मैँने जल्द उस मकान मेँ दाखिल हो गया और दीवार के दरार से आसलम की माँ को देखने लगा । उसकी बदन पे सिर्फ पेटीकोट था जो उसने अपनी उरोजोँ के उपर बांध दी थी । उसकी मोटी-मोटी खम्बे जैसे जांघेँ बडी सेक्सी लग रही थी ।
मोहन : हाय ! काश मैँ भी वहां होता, आगे बोल ।
राजु : सफेद पेटीकोट चाची की भारी गांड मेँ चिपक जाने से गांड का दरार भी साफ दिख रहा था । तभी उसने अचानक अपनी पेटीकोट का धागा खोल दी और एकदम नंगी हो गई ।
आरीफ : फिर क्या हुआ !
राजु : मैँने झट उनकी लंड पर नजर ले गया । औरत की बदन पर लंड ! क्या नजारा था । मुझसे और रहा नहीँ गया और अपना लंड निकाल के मुठ मारने लगा । कहाँ मेरा 3 इंच का लंड और कहां आसलम की माँ की १० इंच का लंड ।
मनु : हाय ! फिर क्या हुआ ?
राजु : फिर चाची ने अपनी चुतड और लंड पर साबुन लगाया और एक भिगे तौलिए से रगड-रगड कर साफ की । उनकी लंड देखने लायक थी, रगडने से लंड उपर-नीचे, बांए-दांए थिरक रही थी । नहाने के बाद उसने एक साफ तौलिए से अपनी शरीर को पोछा, अपनी लंड के साथ साथ बडी सी गांड के दरार को भी पोछा और उसी तरह नंगी ही अंदर चली गई ।
आरीफ : क्या बात बताई तुने यार ! एकदम खुश कर दिया ।
राजु : फिर मैँने जोर से मुठ मारी और खलास कर के वापस आ गया ।
मनु : आसलम की माँ तो एक औरत है पर उसकी लंड कैसे है ?
आरीफ : मैँने पहले सुना है कि, कोई भी औरत अगर मर्द के बजाय दूसरी औरोतों से सेक्स के सम्बन्ध ज्यादा रखती है, उसकी बदन में बहुत सारे बदलाव आते हैं । शायद इसी वजह से असलम की माँ के मर्द जैसे लैंड निकल आये हो ।
राजु : हाँ यार, आसलम की माँ आधी औरत आधी मर्द बन कर रह गई है ।
मोहन : उसकी इतनी बडी लंड ! मुझे तो लगता है चाची जरुर चाचा को चोदती होगी या फिर रोज मुठ मारती होगी ।
आरीफ : हाँ यार, मुझे भी ऐसा ही लगता है । राजु ! एक काम करते हैँ, किसी दिन सब मिल कर आसलम की माँ की चोदाई देखेँगे ।
राजु : हाँ तु ठीक कहता है, चलो घर चलते हैँ बडी देर हो गई है और भुख भी लगी है ।
मर्द सुबह-सुबह ही काम पर निकल जाते थे, कुछ शहर की तरफ और कुछ खेतों की तरफ। औरतें खेती का काम-काज करती थी इसीलिए ताक़तवर थी । उसी गाँव में पाँच दोस्त रहते थे- राजु, मोहन, असलम,आरीफ और मनु ।
पाँचोँ जवानी में कदम रख चुके थे.बस उनके दिमाग़ में 24 घंटे सिर्फ़ औरत-औरत-औरत होती थी। मम्मे, चूत, गाण्ड, लौड़ा, चुदाई बस यही सब उनकी ज़िंदगी बन गई थी ! पाँचोँ चुदाई के लिए इतना तरस रहे थे कि उन्हें अपनी माँ ,बहन, भाभी के बारे में भी गंदी-गंदी बातें करने में भी कोई शर्म नहीं आती थी। कभी-कभी शहर जाकर फिल्म देखना और वहाँ से गंदी-गंदी कहानियाँ और तस्वीरों वाली किताबे खरीदना उनका शौक़ था।
एक दिन ऐसे ही झाड़ियों में बैठकर लौड़ा लंगोटी में से हाथ में लेकर मुठ मारते हुए बतिया रहे थे चारों चोदू यार ! आसलम किसी रिश्तेदार के यहाँ गया हुआ था ।
आरीफ : अबे सालो, कल जो देखी थी "आया सावन झुम के" कसम से क्या पिक्चर थी ! आशा पारेख की तो दीवाना हो गया मैं यार !
मोहन : हाँ रे आरीफ ! सही कहता है, उस आशा ने क्या गांड हिला कर ठुमके लगा रही थी ! मेरा तो लौड़ा तन के बांस हो गया था। क्या चौडी गांड थी उसकी ।
मनु : मोहन, तेरा तो लौड़ा तन कर बांस हो गया था मगर मेरा तो उस छिनाय के जलवे देखकर वहीं पानी निकल गया ! आअहह !
राजु : मनु, मेरी हालत तो मत पूछ ! मेरा तो दिल किया कि मैं पर्दे में घुस जाऊँ और आशा पारेख की पेटीकोट सरका कर उसकी चूत और गाण्ड चाट लूँ !
आरीफ : क्या चूत होगी उस सुअरनी की ! काली-काली झांटों से भरी, रस टपकाती ! अम्म ! सोचकर ही मेरे मुँह में पानी आ रहा है।मनु : तुझे कैसे पता कि आशा पारेख की चूत झांटों से भरी होगी?
मोहन : अबे चोदूमल ! वो पुराने जमाने का फिल्म है और जहाँ तक मैंने सुना है उस समय की औरतें चूत, गाण्ड और बगल के बाल नहीं काटती। झांटों की मदद से वो मर्दों को रिझाती हैं। उसकी मूछें नहीं देखई क्या तूने हलकी हलकी ? . उसी को देख के लगता है की बहुत बाल होंगे उसके.
उसकी टांगो पर भी बाल होंगे फिर तो ?
मनु : इसका मतलब मीना कुमारी की बुर और गांड मेँ भी झाँट होँगी ? हाय !
राजु : हाँ यार मुझे भी बुर और गांड मेँ झाँटोँ वाली औरतेँ बहुत पसंद हैँ ।
मोहन : सेठ् की बीबी की भी चुतड उभर आए हैं, साली अभी बडी साली अभी बडी मटक के चलती है !
राजु : हाँ रे मोहन ! सेठ् की बीबी को तो चोदने का बहुत मन करता है, उसकी चूत तो झांटोँ से भरी हुई होगी ! और गाण्ड के तो क्या कहने ! उसकी काली चूत में मुँह मारने को जी कर रहा है।
आरीफ : राजु, काली चुत तो आसलम की माँ की भी है, क्या बडी-बडी चुतड है पठाईन की । क्या तुने देखी है आसलम की माँ की गांड ?
राजु : हाँ, एक बार देखी थी ।
मनु : कहाँ देखा था ?
राजु : क्षेत मेँ , पता है मैँने क्या देखा ! सुनोगे तो तुम लोगोँ के होश उड जाएंगे ।
आरीफ : अबे तुने ऐसा क्या देख लिया जो हमारा होश उडा देगा !
राजु :एक दिन सुबह को मैँ थोडा जल्दी शौच करने क्षेत की और गया था । तभी मैँने आसलम की माँ को एक झाडी की और तेजी से जाते हुए देखा । उसने दोनोँ हाथोँ से साडी को अपनी जांघोँ तक सरका रखी थी । और फिर अचानक उसने झाडी के पास जाकर साडी को एकदम कमर के उपर तक उठा ली और बैठ गई ।
मोहन : क्या ! आसलम की माँ की चौडी गांड तो पुरी नंगी हो गई होगी ?
राजु : हाँ, मैँने अपने आप को छिपाते हुए झाडी के पास जाकर उसकी चिकनी उभरी गांड देखने लगा जो बैठने से और चौडी हो गई थी । हाय ! क्या नजारा था !
आरीफ : अबे उसकी गांड और बुर मेँ बाल थे की नहीँ ?
राजु : गांड मेँ तो बाल थे पर उसकी बुर ठीक से देख नहीँ पाया । फिर उसने उठी और मालुम है उसने क्या की ?
मनु : अबे बोलना ।
राजु : आसलम की माँ उठ खडी हुई और साडी को बगैर निचे किए उसी तरह कमर मेँ पकडी नंगी नाले की और जाने लगी । अब मुझे उसकी चुतड साफ दिखाई देने लगा । चलने से उसकी बडी-बडी चुतडेँ उपर-निचे थिरक रही थी । मैँने नाले के सामने एक झाडी मेँ छुप गया ताकि उसकी बुर देख पाऊं । उसने गांड धोने के लिए पानी के घाट मेँ आकर बैठ गई । तुरंत मैँने बुर पर नजर दौडाई तो मेरे आँखेँ खुले के खुले रह गए !
आरीफ : अबे जल्दी आगे बोलना क्या देखा ।
राजु : यार आसलम की माँ की बुर नहीँ थी ।
आरीफ : क्या ! बुर नहीँ था ! क्या मतलब है तेरा ।
राजु : उसकी जांघोँ के बिच मर्द जैसा एक लम्बा और मोटा लंड लटका हुआ था ।
आरीफ : लंड ! आसलम की माँ की ? अबे व तो औरत है,ये लंड कहां से आ गया ।
राजु : वही तो, मैँ तो एकदम हैरान था । लंड तो था साथ मेँ दो बडे अंडे जैसे अंडकोष, सारे घने काले झांटोँ भरे थे । फिर उसने गांड धोने के बाद अपनी लंड को भी पानी से धोया और उठ के घर चली गई । मेरा तो पुरा बदन कांप रहा था । आसलम की माँ औरत है या मर्द ?
मोहन : हाय ! मेरा तो लंड टाईट हो गया तेरी बात सुनकर । चाची की लंड कितना बडा था ?
राजु : व तो लगभग 6 इंच के आसपास था, एकदम मुर्झा हुआ था फिर भी उसकी लंड काफी लम्बा और मोटा था । लाल सुपाडा आधा बाहर था ।
आरीफ : मैँ तो यही सोच रहा हुँ की जब हमारा लंड पुरे तनाव मेँ 6 इंच का होता है तो चाची की लंड पुरी तनाव कितनी बडी होगी । यार राजु, तुने उसकी कोई और हरकत देखी ?
राजु : हरकत ! क्या मतलब ।
आरीफ : क्या उसने अपनी लंड के साथ कोई ऐसी . . वैसी . . . ।
राजु : नहीँ यार, उसने गांड धोकर चली गई । लेकिन उसके दो दिन बाद मैँने और देखने के लिए आसलम के घर गया था । आसलम और उसका अब्बु किसी काम से शहर गए हुए थे ।
मनु : घर मेँ और क्या-क्या देखा तुने ।
राजु : मैँने बहाने बनाकर चाची के साथ बातेँ की और जैसे ही उसने नहाने के लिए निकली तो मैँने उसे कहा की मैँ चलता हुँ ।
आरीफ : अबे चला क्योँ आया ।
राजु : अरे वहां रहता तो व ज्यादा चौकन्नी रहती । मेरे चले जाने से व अकेली बेपरवाह होकर नहाएगी । मेरे निकलते ही उसने दरवाजा बंद कर ली ।
आरीफ : ये एकदम सही बात है, औरतेँ अकेले मेँ कभी-कभी नंगी होकर नहाना पसंद करतीँ है ।
राजु : कुछ देर बाद मैँने पिछले दरवाजे से अंदर आ गया । कुऐँ के पास उनका पुराना मकान था जो टूट चुका था, मैँने जल्द उस मकान मेँ दाखिल हो गया और दीवार के दरार से आसलम की माँ को देखने लगा । उसकी बदन पे सिर्फ पेटीकोट था जो उसने अपनी उरोजोँ के उपर बांध दी थी । उसकी मोटी-मोटी खम्बे जैसे जांघेँ बडी सेक्सी लग रही थी ।
मोहन : हाय ! काश मैँ भी वहां होता, आगे बोल ।
राजु : सफेद पेटीकोट चाची की भारी गांड मेँ चिपक जाने से गांड का दरार भी साफ दिख रहा था । तभी उसने अचानक अपनी पेटीकोट का धागा खोल दी और एकदम नंगी हो गई ।
आरीफ : फिर क्या हुआ !
राजु : मैँने झट उनकी लंड पर नजर ले गया । औरत की बदन पर लंड ! क्या नजारा था । मुझसे और रहा नहीँ गया और अपना लंड निकाल के मुठ मारने लगा । कहाँ मेरा 3 इंच का लंड और कहां आसलम की माँ की १० इंच का लंड ।
मनु : हाय ! फिर क्या हुआ ?
राजु : फिर चाची ने अपनी चुतड और लंड पर साबुन लगाया और एक भिगे तौलिए से रगड-रगड कर साफ की । उनकी लंड देखने लायक थी, रगडने से लंड उपर-नीचे, बांए-दांए थिरक रही थी । नहाने के बाद उसने एक साफ तौलिए से अपनी शरीर को पोछा, अपनी लंड के साथ साथ बडी सी गांड के दरार को भी पोछा और उसी तरह नंगी ही अंदर चली गई ।
आरीफ : क्या बात बताई तुने यार ! एकदम खुश कर दिया ।
राजु : फिर मैँने जोर से मुठ मारी और खलास कर के वापस आ गया ।
मनु : आसलम की माँ तो एक औरत है पर उसकी लंड कैसे है ?
आरीफ : मैँने पहले सुना है कि, कोई भी औरत अगर मर्द के बजाय दूसरी औरोतों से सेक्स के सम्बन्ध ज्यादा रखती है, उसकी बदन में बहुत सारे बदलाव आते हैं । शायद इसी वजह से असलम की माँ के मर्द जैसे लैंड निकल आये हो ।
राजु : हाँ यार, आसलम की माँ आधी औरत आधी मर्द बन कर रह गई है ।
मोहन : उसकी इतनी बडी लंड ! मुझे तो लगता है चाची जरुर चाचा को चोदती होगी या फिर रोज मुठ मारती होगी ।
आरीफ : हाँ यार, मुझे भी ऐसा ही लगता है । राजु ! एक काम करते हैँ, किसी दिन सब मिल कर आसलम की माँ की चोदाई देखेँगे ।
राजु : हाँ तु ठीक कहता है, चलो घर चलते हैँ बडी देर हो गई है और भुख भी लगी है ।
Next part upload karin plz
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