Monday, 16 June 2014

An indian sex with shemale Mom and Aunty by dimpii4u

मुम्बई के बडे शहर मेँ दीप्ति अपने पति गोपाल और एकमात्र 19 साल का बेटा अजय के साथ रहती थी । बडा खुशहाल परिवार था उसका । गोपाल का छोटा भाई कुमार अपनी पत्नी के साथ बाहर रहता था । एक दिन शोभा और कुमार अपने बडे भाई गोपाल और दीप्ति के घर पर आये हुये थे । उस वक्त सब लोग एक हत्या की कहानी पर आधारित जो इस फिल्म देख रहे थे । आम मसाला फिल्म की तरह इस फिल्म में भी कुछ कामुक दृश्य थें । एक आवेशपूर्ण और गहन प्यार दृश्य आते ही अजय कमरें को छोड़ कर जा चुका था । गोपाल और दीप्ति दृश्य के आते ही और लड़के के कमरा छोड़ने के कारण जम से गये थे ।

घर के ऊपर और सब सोने के कमरें थे और और शाम को जब से ये लोग आये थे, कोई भी ऊपर नहीं गया था । नौकर सामान लेकर आया था और गोपाल, कुमार शराब के पैग बना रहे थे । महिलायें भी इस वक्त उनके साथ बैठ कर पी रही थी । हालांकि परिवार को पूरी तरह से माता पिता की रूढ़िवादी चौकस निगाहों के अधीन रखा गया था । बड़ों के आसपास होने पर महिलायें सिंदूर, मंगलसूत्र और साड़ी परंपरागत तरीके से पहनती थी । कुमार के बड़े भाई होने के नाते, शोभा के लिए, गोपाल भी बङे थे और वह अपने सिर को उनकी उपस्थिति में ढक कर रखती थी । लेकिन चूंकि, दोनों कुमार और गोपाल बड़े शहरों में और बड़ी कंपनियों में काम करने वाले है, सो उनके अपने घरों में जीवन शैली जो बड़े पैमाने पर उदार है । शोभा और दीप्ति दोनो हो बङे शहरों से थी अतः उनके विचार काफी उन्मुक्त थे । लेकिन ये सब के चलते एक बहुत बडा राज छुपा हुआ था उस घर मेँ जो सिर्फ गोपाल और शोभा को ही मालुम था । दोनों महिलायें हमेशा नये फैशन के कपङे पहन कर ही यात्रा करती थी, खासकर जब घर के माता पिता साथ नहीं होते थे । हालांकि, दोनों की उम्र में दस साल का अंतर है, दीप्ति अपनी वरिष्ठता का उपयोग करते हुए घर में नये फैशन की सहमति बनाती थी । इस प्रकार, बिना आस्तीन के ब्लाउज, पुश ब्रा, खुली पीठ के ब्लाउज और मेकअप का उपयोग होता था ।

हालांकि, यह स्वतंत्रता केवल छुट्टीयां व्यतीत करते समय के लिये ही दी गई है । सामान्य दिनचर्या में ऐसी चीजों के लिये कोई जगह नहीं थी । वे अक्सर सेक्स जीवन की बातें आपस में बाटती थीं और यहाँ से भी दोनों में काफी समानतायें थीं । दोनों ही पुरुष बहुत प्रयोगवादी नहीं थें और सेक्स एक दिनचर्या ही था । लेकिन अगली पीढ़ी का अजय बहुत अलग था । वह एक और अधिक उदार माहौल में, भारत के बड़े शहरों में बङा हुआ था । लड़का बड़ा हो गया था और बहुत जल्द ही अब एक पुरुष होने वाला था । ये बात भी शोभा ने इस बार नोट की थी । फिल्म में प्रेम दृश्य आने पर वह कमरा छोड़कर गया था इसी से स्पष्ट था उसें काफी कुछ मालूम था । बचपन में गर्मीयों की छुट्टी अजय शोभा के यहां ही बिताता था । एक छोटे लड़के के रूप में शोभा उसको स्नान भी कराती थी । कई बार कुमार की कामोद्दीपक उपन्यास गायब हो जाते थे वह खोजने पर वह उनको अजय के कमरे में पाती थी । इस बारे में सोच कर ही वह कभी कभी उत्तेजित हो जाती थी पर अजय के एक सामान्य स्वस्थ लड़का होने के कारण वह इस बारे में चुप रही । अजय के कमरा छोडने के फौरन बाद, गोपाल और कुमार भी थकने का बहाना बना कर जा रहे थे ।

शोभा को कोई संदेह ना था कि ये क्या हो सकता है । दीप्ति से उसकी नजरें एक बार मिली थी । पर दीप्ति अपनी चेहरे पर एक शरारती मुस्कराहट भरी और सीढ़ियों पर चल दी । शराब का नशा होने के बाद भी फिल्म का असर शोभा पर काफी अच्छा रहा था । फिल्म के उस प्रेम दृश्य में आदमी उस औरत को जानवरों की तरह चौपाया बना कर चोद रहा था । अपने कॉलेज के दिनों में शोभा ने इस सब के बारें में के बारे में अश्लील साहित्य में पढ़ा था और कुछ अश्लील फिल्मों में देखा भी था लेकिन अपने पति के साथ कभी इस का अनुभव नहीं किया । इस विषय की चर्चा अपने पति से करना उसके लिये बहुत सहज नहीं था । उनके लिए सेक्स शरीर की एक जरूरी गतिविधि थी । शोभा ने अपने आप को चारों ओर से उसके पल्लू से लपेट लिया । इन मादक द्रुश्य के प्रभाव से उसे एक कंपकंपी महसूस हो रही थी । इस वक्त वह सोच रही थी कि कुमार अब कहां हैं? शोभा को नींद आ रही थी और उसने ऊपर जाकर सोने का निर्णय लिया ।

ऊपर जाते ही न जाने कहाँ से जेठानी आ गयी, "सो, कैसा चल रहा है सब कुछ", शोभा ने पूछा । "क्या कैसा चल रहा है?" दीप्ति ने शंकित स्वर में पूछा । "वहीं सबकुछ, आपके और भाई साहब के बीच में.." शोभा ने दीप्ति को कुहनी मारते हुये कहा । दोनों के बीच सालों से चलता आ रहा था इस तरह का मजाक और छेड़खानी । "आह, वो", दीप्ति ने दिमाग को झटका सा दिया । "दीदी, क्या हुआ?" शोभा के स्वर ने दीप्ति के विचारों को तोड़ा । "नहीं, कुछ नहीं । आओ, हॉल में बैठ कर बातें करते हैं" । साड़ी के पल्लू से अपने हाथ पोंछती हुई दीप्ति बाहर हॉल की तरफ़ बढ़ गई । हॉल में इस समय कोई नहीं था । दोनों मर्द अपने अपने कमरों मे सोने चले गये थे और अजय का कहीं अता पता नहीं था । दीप्ति सोफ़े पर पसर गई और शोभा उसके बगल में आकर जमीन पर ही बैठ गयी ।

"आपने जवाब नहीं दिया दीदी ।"
"क्या जवाब?" दीप्ति झुंझला गयी । ये औरत चुप नहीं रह सकती । शोभा के कन्धे पर दबाव बढ़ाते हुये दीप्ति ने कहा ।
"आपने मेरी बरसों से दबी हुई इच्छाओं को भड़का दिया है इस सिनेमा के बारे में सोचने भर से मेरी चूत में पानी भर रहा है ।" शोभा बोली । दीप्ति ने शोभा की ठोड़ी पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर उठाया, बोली "उदास मत हो छोटी, आज मैँ हुं ना, आज जेठानी तेरी बुर से पानी निकालेगी । शोभा दीप्ति के शब्दों से दंग रह गयी,"क्या कह रही हो दीदी? ।"

और शोभा को हाथ पकड़ कर अपने पास खींचा और बाहों में भर लिया । शोभा के हाथ दीप्ति की पीठ पर मचल रहे थे । जेठानी के बदन से उठती आग वो महसूस कर सकती थी । उसके हाथ अब शोभा के स्तनों पर थे । अंगूठे से वो अपनी देवरानी के निप्पल को दबाने सहलाने लगी । अपनी बहन जैसी जेठानी से मिले इस सिग्नल के बाद तो शोभा के जिस्म में बिजलियां सी दौड़ने लगीं । दीप्ति भी अपने ब्लाऊज और साड़ी के बीच नन्गी पीठ पर शोभा के कांपते हाथों से सिहर उठी ।

अपने चेहरे को शोभा के चेहरे से सटाते हुये दीप्ति ने दूसरा हाथ भी शोभा के दूसरे स्तन पर जमा दिया । दोनों पन्जों ने शोभा के यौवन कपोतों को मसलना शुरु कर दिया । शोभा के स्तन आकार में दीप्ति के स्तनों से कहीं बड़े और भारी थे । शोभा ने पीछे हटते हुये दीप्ति और अपने बीच में थोड़ी जगह बना ली ताकि दीप्ति आराम से उसके दुखते हुये मुम्मों को सहला सके । उसका चेहरा दीप्ति के गालों से रगड़ रहा था और होंठ थरथरा रहे थे । शोभा की गर्म सांसे दीप्ति के चेहरे पर पड़ रहीं थीं । दोनों के होंठ एक दूसरे की और लपके और अगले ही पल दोनों औरतें प्रेमी युगल की भांति एक दूसरे को किस कर रही थीं । दोनों की अनुभवी जीभ एक दूसरे के मुहं में समाई हुई थी । "तुम्हारे मुम्मे तो मेरे मुम्मों से भी कहीं ज्यादा भरे हुये है, जी भर के चूसा होगा इनको देवर जी ने" दीप्ति ने अपनी स्तनों को ब्लाऊज के ऊपर से ही दबाते हुये बोली । शोभा दीप्ति के मन की बात समझ गई और तुरन्त ही जेठानी की ब्लाऊज के सारे बटन खोल कर पीछे पीठ पर ब्रा के हुक भी खोल दिये दीप्ति के भारी भारी चूचें अपनी जामुन जैसे बड़े निप्पलों के साथ बाहर को उछल पड़े । शोभा जीवन में पहली बार किसी दुसरी औरत के स्तनों को देख रही थी । कितने मोटे और रसीले है ये । दीप्ति ने दोनों हाथों में उठा कर अपने चूंचे शोभा की तरफ़ बढ़ाये । शोभा झुकी और तनी हुई निप्पलों पर चुम्बनों की बारिश सी कर दी । "ओह, शोभाआआआ" दीप्ति आनन्द से सीत्कारी । शोभा ने एक निप्पल अपने मुहं मे ही दबा लिया । उसकी जीभ जेठानी की तनी हुई घुंडी पर वैसे ही नाच रही थी जैसे वो रोज रात पति की गुलाबी सुपाड़े पर फ़ुदकती थी । पहली बार एक औरत के साथ । नया ही अनुभव था ये तो । दीप्ति खुद एक स्त्री होने के नाते वो ये जानती थी की शोभा क्या चाहती है । शोभा के बदन में भी अलग ही आकर्षण था । उसके शरीर में भी वही जोश और उत्तेजना थी । ये सोचते सोचते ही दीप्ति ने भी शोभा के निप्पल को चबाने लगी ।

"आऊच...आह्ह्ह" शोभा के मुहं से दबी हुई चीख भी निकली । दीप्ति अब उस बिचारे निप्पल पर अपने दातों का प्रयोग कर रही थी । शोभा अपना दूसरा स्तन हाथ में भर लिया । दीप्ति ने शोभा का थूक से सना निप्पल छोड़ दिया और फ़िर से शोभा के निप्पल को मुहं में भर लिया और पहले से भी ज्यादा तीव्रता से चुसाई में जुट गयी मानो निप्पल नहीं लंड हो जो थोड़ी देर में ही अपना पानी छोड़ देगा ।
"आआआह्ह्ह्ह्ह्ह॥ दीदी, प्लीज जोर से चूसो, हां हां", शोभा दीप्ति को उकसाते हुये चीखी । उसकी चूत में तो बिजली का करंट सा दौड़ रहा था । "यहां, देखो यहां घुसती है मर्द की जुबान", शोभा ने फ़ुर्ती के साथ दीप्ति कि साड़ी और पेटीकोट ऊपर कर पैन्टी की कसी हुई इलास्टिक में हाथ घुसेड़ दिया । पैन्टी को खींच कर उतारने का प्रयास किया तो शोभा की हाथ में कोई बडे मांस पिंड जैसा चीज लगी । उसने उपर जेठानी की तरफ देखा, दीप्ति मुस्करा रही थी । तभी दीप्ति ने खुद ही साड़ी और पेटिकोट को कमर पर इकट्ठा कर उन्गली फ़सा अपनी पैन्टी नीचे जांघों तक सरका दी, शोभा की आँखेँ एकदम खुले के खुले रह गए । पहली बार शोभा को इतना बडा सदमा लगा । दीप्ति के पैन्टी निचे सरकते ही एक १२  इंच का लम्बा और मोटा लंड बाहर निकल आया, साथ मेँ बडे-बडे अंडे जैसे अंडकोष । दीप्ति का  लंड घनी काली  झाँटोँ से भरआं  थे । क्या मनमोहक द्रुश्य था शोभा के सामने । उसकी सगी बहन जैसी जेठानी पूरी तरह से औरत नहीँ थी । स्त्री के शरीर मेँ पुरुषांग । स्त्री और पुरुष के अद्भुतपूर्व मिश्रण थे दीप्ति की बदन मेँ । और दीप्ति के लंड के तो क्या कहने! १२  इंच लम्बा और ६  इंच मोटा था दीप्ति की लंड । इतना बडा लंड जिन्दगी मेँ पहली बार देख रही थी शोभा । अपनी पति कुमार का तो अपनी भाभी के लंड का आधा ही होगा । शोभा बडे प्यार से जेठानी की लंड को मुठ्ठी मेँ भर कर बडे-बडे अंडकोष पर जिभ फिराते हुए उपर दीप्ति की मुखडे को देखने लगी । दीप्ति की चेहरे पर मुस्कराहट था ।"ये क्या है दीदी ? और अजजययय.....कैसा....?" शोभा लंड को चाटती हुई पुछी । "ये बहुत लम्बी कहानी है किसी दिन बैठ के बताउंगी ।"

दीप्ति बोली ।"फिर भी कुछ तो बताईये, दीदी । "शोभा ने जिद पे उतर आई ।"बस इतना समझ लो कि मेरी ख्वाईशेँ, मेरी तमन्ना पूरी हुई है । पिछले पांच साल हो गए मेरी इस बदलाव को ।" "मतलब मेरी प्यारी जेठानी पांच सालोँ से साडी के निचे लंड लिए इसी घर मेँ घुम फिर रही हैँ ?" शोभा आश्चर्य होकर पुछी ।"हां छोटी, मैँ पिछले पांच सालोँ से लंड लिए अपनी पति और बेटे के साथ जिंदगी गुजार रही हुं । तुम्हारे जेठ जी को ये मालुम है और खुशी-खुशी मुझे स्वीकारा है और अब मैँ इस बदलाव यानि की मेरी लंड का भरपुर मजा उठाना चाहती हुं ।" दीप्ति ने बात पूरी की ।"पर दिदी, क्या अजय को ये मालुम है कि उसकी प्यारी माँ की मर्द के जैसा लंड है, उसकी माँ बाकी महिलाओँ से अलग है ? ""नहीँ, यही डर मुझे हमेशा लगी रहती है! कि कब उसे ये बात पता लग जाएगा ।" दीप्ति ने शंका जाहिर करते हुए कहा ।"नहीँ दीदी, कुछ नहीँ होगा मैँ उसे मना लुंगी बस अब के सोचिए दीदी आपका  ये विशाल लंड देख कर मुझसे और रहा नहीँ जाता ।" कहती हुई शोभा ने जेठानी की तने लंड को मुठ्ठी मेँ भर ली ।

इधर दीप्ति ने फ़िर से शोभा के स्तनों को जकड़ा उधर शोभा भी पूरी तैयारी में थी । दीप्ति की समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा था और शोभा अपने जिस्म में उमड़ती उत्तेजना से नशे में झूम रही थी ।

शोभा के कपडे पूरी तरह से अस्त व्यस्त थे । शोभा उसकी दोनों टांगों के बीच में बैठी हुई थी । उसकी साड़ी का पल्लू बिस्तर पर बिछा हुआ था । लो कट के ब्लाउज से विशाल स्तनों के बीच की दरार साफ दिख रही थी । आखिरकार शोभा ने खुद ही कमरे में प्रवेश किया था और अब वो जेठानी की लंड को मुँह में लेकर चूस रही थी । दीप्ति ने वापस अपना हाथ शोभा के सिर पर रख कर उसकी मुंह में लंड घुसेडने का प्रयास कर रही थी । इस जोर जबरदस्ती में दीप्ति की फुंफकार मारता लंड शोभा के सिर, बालों और सिन्दूर से रगड खा के रह गया । अपना लक्ष्य चूक जाने से दीप्ति का लंड और भी तन गया और उसके मुंह से एक आह सी निकली । शोभा ने नीचे झुककर देखा तो ब्लाउज का लो कट गला, दो भारी स्तनों और उनके बीच की दरार का शानदार दृश्य दीप्ति को दिखा रहा था । शोभा का मंगलसूत्र इस वक्त उसके गले से लटका हुआ दो बङी बङी गेंदों के बीच में झूल रहा था । शोभा ने तुरन्त ही अपनी शादी की इस निशानी को वापिस से ब्लाउज में डाला और वहीं पास पडे साड़ी के पल्लू से खुद को ढकने की कोशिश की । तब तक दीप्ति दोनों हाथों से शोभा के उरोजों को बेदर्दी से मसल दिया ।

दीप्ति ने धक्का दे कर शोभा को हटाया और खुद बिस्तर के बगल में खङी हो गईं । दीप्ति की उत्तेजना स्वभाविक थी । भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे होते उनके स्तन, गोरे चेहरे और बिखरे हुए बाल, मांग में भरा हुआ सिंदूर और पारंपरिक भारतीय पहनावा उनके इस रूप को और भी गरिमामय तरीके से उत्तेजक बना रहा था ,उसने अपनी पेटीकोट को कमर के ऊपर सरका राखी थी और दीप्ति की मांसल जांघोँ के मध्य सबसे विशालकाय लंड हवा में लहरा रहा था ।

दीप्ति का किसी भी औरत के साथ ये पहला अनुभव था । कांपते हुए हाथों से उसने शोभा के स्तनों को एक साइड से छुआ और शोभा के मुहं से एक सीत्कार सी निकल गयी । शोभा ने भी अपनी जेठानी के गुब्बारे कि तरह फूले हुये उन स्तनों को बिना कुछ सही या गलत सोचे पूरी तन्मयता से मसल रही थी । अब तक भी दीप्ति गरम होने लग गयी थीं । दीप्ती ने दोनों हाथों से शोभा के चेहरे को पकड कर अपने उरोजों के पास खींचा । उत्तेजना के मारे बिचारी दीप्ति की हालत खराब हो रही थी ।

शोभा ने अब खुद ही अपना ब्लाउज खोलना शुरु कर दिया । दीप्ति ने भी आगे बढते हुये शोभा के तने हुये चूचों के ऊपर चुम्बनों की बारिश सी कर दी । दीप्ति ने जेठानी के सिर को अपने दोनों स्तनों के बीच में दबोच लिया । इस समय दीप्ति अपना एक घुटना बिस्तर पर टेककर और दूसरे पैर फर्श पर रख कर खडी हुई थीं । दीप्ति ब्रा के ऊपर से ही होंठों से शोभा के स्तनों पर मालिश कर रही थी । शोभा ने उसके गालों को प्यार से चूम लिया । परन्तु अब अपने शरीर पर जेठानी के गर्म होंठ उसको एक मानसिक शान्ति दे रहे । दीप्ति ने शोभा के दोनों विशाल गुम्बदों पर अपने होंठ रगडते हुये एक हाथ से उसकी पीठ और गर्दन सहलाना जारी रखा । इधर शोभा ने जैसे ही दीप्ति की कमर और फिर उसके नीचे एकदम उभरे हुए मांसल नितंबों का स्पर्श किया, जेठानी के फूले हुये लंड का विशाल सुपाङा उसके पेट से जा लगा । दीप्ति के मुहं से एक सिसकारी छूट गयी ।

दीप्ति तो जैसे उत्तेजना के मारे कांप ही गयी । शोभा ने जेठानी की साङी को खीन्च कर उनके बदन से अलग कर दिया और अपना चेहरा शोभा के पेटीकोट की दरार में घुसेङ दिया । सामान्यतः हिन्दुस्तानी औरतें जब पेटिकोट पहनती हैं तो जहां पेटीकोट के नाङे में गाँठ लगाई जाती है वहां पर एक छोटी से दरार रह जाती है और औरतों के अन्दरुनी अंगों का शानदार नजारा कराती है । दोस्तों, आप लोगो ने भी कई बार औरतों को कपङे बदलते देखा होगा और इस सब से भलीभांति परिचित होंगे । जेठानी की पेटीकोट अब उसके रास्ते का रोङा बन रहा था । दीप्ति कराही, उधर शोभा ने दीप्ति की पेटीकोट को कमर तक उठा दिया । दीप्ती ने अपनी एक हाथ से पेटीकोट को कमर में पकडे रखा और दूसरी हाथ से पेन्टी को निचे सरका दी । शोभा ने आगे बढते हुये अपनी उन्गलियों को जेठानी की विशाल नितंबों पर फिरने लगी । शोभा के होठों ने तुरन्त ही जेठानी की मख्मली जांघों के बीच में अपनी जगह बना ली । जानवरों की तरह दीप्ति की गदराई जांघों को चाट रहा था वो । दोनों टागें फ़ैला कर दीप्ति खुद ही बिस्तर पर लेट चुकी थीं । उसका अब अपने दिलोदिमाग पर कोई काबू नहीं रह गया था । शोभा के हाथ अब दीप्ति की रेशमी पैन्टी से जूझ रहे थे ।

शोभा का पूरा बदन थरथराया और दीप्ति के मुहं से भी आह सी निकली "शोभा, देखो मेरा लंड कितना बड़ा हो गया है तेरी बुर देख कर ।" शोभा का दहिना हाथ खुद बा खुद जेठानी की उस विशालकाय लंड के चारों तरफ़ लिपट गई । दीप्ति ने एक बार शोभा की नाभि के पास चूमी और करवट बदलते हुये खुद शोभा के अधनन्गे बदन के पास जाकर लेट गई । शोभा ने दुबारा से जेठानी के सख्त लंड को अपनी मुठ्ठी में भर लिया । उत्तेजना मारे दीप्ति उसके ऊपर चढ़ चुकी थी ।

शोभा ने सोफ़े पर लेट गयी और दीप्ति ने भी उसकी टांगों के बीच में जगह बनाते हुये उंगलियों से पैन्टी को सरका कर उतार दिया । काफ़ी मादक दृश्य था । दो सैक्सी औरतें, एक सोफ़े पर साड़ी और पेटीकोट उठाये बैठी है और दूसरी उसकी टांगों के बीच में ब्लाऊज खोले बैठी मुहं को गदराई जांघों के बीच में दबाये तड़प रही है । दीप्ति ने शोभा की चूत के पास अपने होंठ रख दिये । शोभा के अन्दरूनी अंगों पर बहता पानी दीप्ति के भी गालों पर चुपड़ गया । इतना करने के बाद दीप्ति शोभा के गले से लिपट कर अपने स्तनों पर चुभते शोभा के मन्गलसूत्र को एक तरफ़ हटाते हुये कहा " तुने किसी ब्लू फ़िल्म देखी है? ""हाँ दीदी, देखा तो मैनें भी है । लेकिन उसके बाद क्या होता है मुझे कुछ पता नहीं । तुम्हारे देवर साहब अपनी उन्गलियां तो चलाते थे मेरी चूत पर और मुझे काफ़ी मजा भी आता था लेकिन लंड से चुदाई तो अलग ही चीज़ है । उनके लंड से चुदने के बाद से तो मुझे इन तरीकों का कभी ध्यान भी नहीं आया ।" शोभा बोली ।

दीप्ति ने दुबारा से घुटने जमीन पर टिकाते हुये अपनी जीभ देवरानी की टांगों के जोड़ के पास घुसा दी । खुद की बदन में लगी आग के कारण उसे मालूम था की शोभा को अब क्या चाहिये । पहले तो दीप्ति ने जीभ को शोभा की मोटी मोटी जांघों पर नचाया फ़िर थूक से गीली हुई घुंघराली झांटों को एक तरफ़ करते हुये शोभा की रिसती बुर को पूरी लम्बाई में एक साथ चाटा । "उई मां...छोटीईईईईई", शोभा ने गहरी सिसकी भरी । "क्या हुआ शोभा?" भोली बनते हुये दीप्ति ने पूछा जैसे कुछ जानती ही ना हो । "आपकी जीभ.." शोभा का पूरा बदन कांप रहा था । उसकी गांड अपने आप ही दीप्ति के चेहरे पर ठीक वैसे ही झटके देने लगी जैसे लंड चुसाई के वक्त कुमार अपनी कमर हिलाकर उसका मुहं चोदता था । दीप्ति ने महसूस किया की शोभा की चूत ने खुल कर उसकी जीभ के लिये ज्यादा जगह बना ली थी । शोभा ने अपनी टांगें चौड़ा कर दी ताकि जेठानी की जुबान ज्यादा से ज्यादा गहराई तक पहुंच सके । हालांकि चूत चाटने में दीप्ति को कोई अनुभव नहीं था पर उसे पता था कि देवरानी को सबसे ज्यादा मजा कहाँ आएगा ।

दीप्ति ने जीभ को सिकोड़ कर थोड़ा नुकीला बनाय़ा और शोभा की चूत के ऊपरी हिस्से पर आहिस्ते से फ़िराया । शोभा के मुहं से घुटी हुई सी चीख निकली और उंगलियां दीप्ति के सिर पर जकड़ गयीं । दुबारा दीप्ति ने फ़िर से जीभ को उसी चिकने रास्ते पर फ़िराया तो वही हाल । शोभा फ़िर से होंठ दबा कर चीखी । अनजाने में ही सही दीप्ति का निशाना सही बैठ गया था । शोभा की अनछुयी क्लिट सर उठाने लगी । दीप्ति भी पूरे मनोयोग से शोभा के चोचले को चाटने चूसने लगी गई । इधर शोभा को चूत के साथ साथ अपने चूचों में भी दर्द महसूस होने लगा । बिचारे उसके स्तन अभी तक ब्रा और ब्लाउज की कैद में थे । शोभा ने दीप्ति के के सिर से हाथ हटा ब्लाऊज के सारे हुक खींच कर तोड़ डाले । हुक टूटने की आवाज सुनकर दीप्ति ने सिर उठाय़ा और छोटी सी रेशमी ब्रा में जकड़े शोभा के दोनों कबूतरों को निहारा । शोभा की ब्रा का हुक पीछे पीठ पर था पर दीप्ति इन्तजार नहीं कर सकती थी । दोनों हाथों से खींच कर उसने शोभा की ब्रा को ऊपर सरकाया और तुरन्त ही आजाद हुये दोनों चूचों को दबोच लिया । शोभा ने किसी तरह खुद पर काबू करते हुये जल्दी से अपन ब्लाऊज बदन से अलग किया और फ़िर हाथ पीछे ले जाकर बाधा बन रही उस कमबख्त ब्रा को भी खोल कर निकाल फ़ैंका । दो सैकण्ड पहले ही दीप्ति की जीभ ने शोभा की चूत का साथ छोड़ा था ताकि वो उसके स्तनों को थाम सके परन्तु अब शोभा को चैन नहीं था ।

अपने चूचों पर दीप्ति के हाथ जहां उसे मस्त किये जा रहे थे वहीं चूत पर जेठानी की जीभ का सुकून वो छोड़ना नहीं चाहती थी । मन में सोचा कि जेठानी को भी ऐसे ही प्यार की जरुरत है पर इस वक्त वो अपने जिस्म के हाथों मजबूर हो स्वार्थी हो गयी थी । शोभा ने पास ही पड़े एक कुशन को उठा अपने चुतड़ों के नीचे व्यवस्थित किया । इस प्रकार उसकी टपकती चूत और ज्यादा खुल गय़ी । दीप्ति भी शोभा का इशारा समझ कर वापिस अपने मनपसन्द काम में जुट गई । कुशन उठाते वक्त शोभा को अहसास हुआ कि इस समय दोनों कहां और किस अवस्था में हैं । घर के हॉल में बीचों बीच दोनों महिलायें नंगे जिस्मों को लिये वासना और प्यार से भरी हुई एक दूसरे कि बाहों में समाई थीं । किसी भी क्षण घर का कोई भी पुरुष यहां आकर उन दोनों को रंगे हाथों पकड़ सकता था । परंतु जीवन में पहली बार किसी दूसरी औरत के साथ संभोग के लिये इतना खतरा लेना अनुचित नहीं था । शोभा की खुली चूत दीप्ति के मुहं में फ़ुदक रही थी और उसकी जीभ भी शोभा की चूत के अन्दर नई नई गहराईयां नापने के साथ हर बार एक नई सनसनी पैदा कर रही थी । किसी मर्द के या कहे कुमार के लंड से चुदते वक्त भी सिर्फ़ चूत की दीवारें ही रगड़ती थी ।

लेकिन दीप्ति की जीभ तो अन्दर कहीं गहरे में बच्चेदानी तक असर कर रही थी । पूरे शरीर में उठती आनन्ददायक पीड़ा ये सिद्ध करने के लिये काफ़ी थी कि किसी भी औरत के बदन को सिर्फ़ एक छोटे से बिन्दु से कैसे काबू में किया जा सकता है । कुछ ही क्षण में दीप्ति को अपनी जुबान पर शोभा की चूत का पानी महसूस हुआ । देखते ही देखते चूत में से झरना सा बह निकला । हे भगवान, इस औरत का पानी पीकर तो किसी प्यासे की प्यास बुझ जाये । दीप्ति को अपनी बदन में उठती तेज गरमी सता रहा था । परन्तु अभी देवरानी का पूरी तरह से तृप्त होना जरूरी था ताकि वो फ़िर उसके के साथ भी यही सब दोहरा सके । शायद शोभा को भी चूत में खालीपन महसूस हो रहा होगा । ऐसा सोच दीप्ति ने तुरन्त ही अपनी दो उन्गलियों को जोड़ कर उस तपती टपकती चूत में पैवस्त कर दिया । सही बात है भाई, एक औरत ही दूसरी औरत की जरुरत को समझ सकती है, शोभा दीप्ति के इस कारनामे से सांतवे आसमान पर पहुंच गई । उसके गले से घुटी घुटी आवाजें निकलने लगी और चूत ने दीप्ति की उन्गलियों को कसके जकड़ लिया । उधर दीप्ति के दिमाग में भी एक नई शरारत सूझी और उसने चूत के अन्दर एक उन्गली को हल्के से मोड़ लिया ।

अब कसी हुय़ चूत की दिवारों को इस उन्गली के नाखून से खुरचने लगी । हालांकि दीप्ति शोभा को और ज्यादा पीड़ा नहीं देना चाहती थी । कहीं ऐसा ना हो कि अत्यधिक आनन्द के मारे जोर से चीख पड़े और उनके पति जाग कर यहां आ जायें । शोभा भी होठों को दातों में दबाये ये सुख भरी तकलीफ़ सहन किये जा रही थी । अचानक से शोभा छूटी । सैक्स में इतने ऊंचे बिन्दु तक पहुंचने के बाद शोभा का शरीर उसके काबू में नहीं रह गया । रह रह कर नितम्ब अपने आप ही उछलने लगे मानो किसी काल्पनिक लंड को चोद रहे हो । दीप्ति पूरे यत्न से शोभा की चूत पर अपने मुहं की पकड़ बनाये रख रही थी । लेकिन शोभा कुछ क्षणों के लिये पागल हो चुकी थी । एक ही साथ हंसने और रोने लगी । "हां दीदी हां । यहीं बस यहीं...और चाट ना प्लीज । उई मां. . . मैं गईईईई..आई लव यू डार्लिंग.." दीप्ति के बदन पर हाथ फ़िराते हुये शोभा कुछ भी बक रही थी । एक साथ आये कई आर्गेज्मों का नतीजा था ये । "कभी कुमार भी मुझे इतना मजा नहीं दे पाया....आह आह.. बस.." शोभा ने दीप्ति को अपने ऊपर खींचा और उसका चेहरा अपने चेहरे के सामने किया । दीप्ति के गालों और होठों पर उसकी खुद की चूत का रस चुपड़ा हुआ था परन्तु इस सब से शोभा को कोई मतलब नहीं था ।

ये वक्त शोभा को धन्यवाद देने का था । दीप्ति ने शोभा को जोर से भींचा और अपने होठों को उसके होठों पर रख दिया । शोभा भी अपनी जेठानी के पहलू में समा गई । दीप्ति के स्तन उसके भारी भरे हुये स्तनों के नीचे दबे पड़े गुदगुदी कर रहे थे । शोभा को सहलाते हुये दीप्ति पूछ बैठी, "क्या कुमार ने ये सब किया था?" शोभा ने ना में सिर हिलया । दोनों औरतों के बीच एक नया रिश्ता कायम हो चुका था । दीप्ति थोड़ा सा शरमाई और शोभा के पूरे बदन पर हाथ फ़िराते हुये सोचने लगी कि कहां से शुरु करे । पता नहीं, लेकिन दीप्ति उसे वो सब देना चाहती थी जो एक मर्द एक औरत के बदन में ढूंढता है । शोभा के हाथों ने दीप्ति की सारी को पकड़ कर उसकी कमर पर इकट्ठा कर दिया । दोनों हाथों से दीप्ति की खुली हुई विशाल गांड सहलाते हुये सोच रही थी कि अब उसे भी जेठानी की लंड चाटनी होगी ।

शोभा ने दीप्ति को अपने ऊपर से हटने का इशारा दिया । दीप्ति अचंभित सी जब खड़ी हुई तो शोभा ने उसकी अधखुली साड़ी को खींच कर उसके शरीर से अलग कर दिया । उसके सामने खड़ी औरत के चूचें उत्तेजना के मारे पत्थर की तरह कठोर हो गये थे । दोनों निप्पल भी बिचारी तने रह कर दुख रहे होंगे । दीप्ति ने अपने बाल खोल दिये । उसका ये रुप क्या औरत क्या मर्द, सभी को पागल करने के लिये काफ़ी था । शोभा ने पेटीकोट के ऊपर से ही दोनों हथेलियों से जेठानी की चौडी गांड को दबोचा । थोङा उचक कर उसके होठों को अपने होठों की गिरफ़्त में ले लिया और अपनी जीभ को उसके मुहं मे अन्दर बाहर करने लगी । "लेट जाओ, मैं तुम्हारा बदला चुकाना चाहती हूँ. मैं भी तुम्हें जी भर के प्यार करना चाहती हूं." शोभा की इच्छा सुनकर दीप्ति टेबिल और सोफ़े के बीच में अपनी खुली हुई साड़ी को बिछा उसी पर लेट गय़ी । ""पता नहीं जितना तुम जानती हो उतना मैं कर पाऊंगी या नहीं लेकिन मुझे एक बार ट्राई करने दो" शोभा उसके ऊपर आती हुई बोली ।

पहले की भांति शोभा ने फ़िर से अपने स्तनों को दीप्ति के चेहरे के सामने नचाकर उसे सताना शुरु कर दिया । दीप्ति ने गर्दन उठा उसके स्तनों को होठों से छुने की असफ़ल कोशिश की तो शोभा खिलखिला कर हँस पड़ी । पीछे सरकते हुये शोभा अब दीप्ति की जांघों पर बैठ गय़ी और उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया । दोनों हाथों से पकड़ कर पहले पेटिकोट को पैंटी की इलास्टिक तक खींचा और फ़िर पैंटी को भी पेटीकोट के साथ ही उतारने लगी । दीप्ति ने तुरन्त ही कमर उठा कर दोनों वस्त्रों को अपने भारी नितम्बों से नीचे सरकाने में मदद की । पैन्टी लंड के पास पूरी गीली हो चुकी थी तो उतरते समय चप्प की आवाज के साथ सरकी । अब सिर्फ़ कन्धों पर झूलते खुले हुए ब्रा और ब्लाऊज के अलावा दीप्ति भी पूरी तरह नन्गी थी । शोभा ने प्यार से जेठानी की नाभी के नीचे काले घने बाल रहित मूषल लंड को निहारा जो करीब 12  इंच का था और निचे दो बडे अंडे जैसे अँडकोष । अपनी बहन जैसी जेठानी के सेक्सी औरती बदन पे ये पुरुषांग. . .जो एक लडके की माँ भी है, ये विचार मन मेँ आते ही शोभा के मुहं में ढेर सारी लार आने लगी । हाय राम ये कैसी औरत बनाई है? धीरे से शोभा ने दीप्ति की एक टांग को उठा कर टेबिल पर रख दिया और दूसरी को सोफ़े पर ।

शोभा तो उन दो उठी हुई टांगों के बीच में घुस कर उस बिचारी लंड पर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी । शोभा का अनुभव भले ही कम था परन्तु तीव्र इच्छाशक्ति के कारण अपनी प्यारी जेठानी की लंड को जी भर के चाट सहला रही थी । अब किसी को प्यार करने के लिये कोई कायदा कानून तो होता नहीं भाई और फ़िर ये तो खेल ही अवैध संबंधों का चल रहा था । शोभा के इस जोश भरे धावे को अपनी तने लंड पर सहना दीप्ति के लिये जरा मुश्किल हो रहा था । लेकिन शोभा जो जैसे जानवर हो गयी थी । बलपूर्वक दीप्ति को लिटाये रख कर क्या जांघ, क्या लंड, क्या अंडकोष, क्या गांड सब जगह अपनी बेरहमी के निशान छोड़ रही थी । "शोभा, जरा आराम से, प्लीज" । दीप्ति ने याचना की । पर शोभा के कान तो बन्द हो गये थे । मुहं से गुर्राहट का स्वर निकल रहा था और लपलपाती जीभ जेठानी की लाल सुपाडे पर फिरा रही थी । अपने दांतों का भी भरपूर इस्तेमाल कर रही थी लेटी पड़ी दीप्ति पर । पहले जेठानी की अन्दरुनी जांघ के चर्बीदार हिस्से को जी भर के खाया । फ़िर काले झाँटो से भरी लंड को मुठियाती हुई बडे-बडे अंडोँ को चाटने लगी । और तुरन्त ही घांव पर मरहम लगाने के उद्देश्य से अपनी मुंह मेँ दीप्ति का पूरा का पूरा अंडकोष मुंह में भर लिया ।

दीप्ति का दर्द और उत्तेजना के मारे बुरा हाल था । शोभा अगर ऐसे ही करती रही तो उसकी लंड अगले दो दिन तक किसी बुर चोदने के काबिल नहीं रहेगा । होंठों से थूक बहकर कान तक आ गया था । दीप्ति ने दोनों हाथों को ऊपर उठा, एक से टेबिल और दूसरे से सोफ़े का किनारा थाम लिया । उधर शोभा भी तरक्की पर थी । शोभा ने तो एक उन्गलि गांड के अन्दर डाली थी । शोभा ने एक साथ दो उन्गलियां दीप्ति की छेद घुसा दी तो उसकी मुहं से जोर से आह निकली । लेकिन शोभा ने इस सब की परवाह किये बगैर अपना दुसरी हाथ से जेठानी की विशाल लंड को ऊपर-निचे करना जारी रखा । दीप्ति का शरीर भी इस हस्त चुदाई की ताल के साथ ऊपर नीचे होने लगा । तभी शोभा को याद आया की कैसे उसने अजय की सुपाडा को चूसा था और फ़िर वो किस तरह से झड़ रहा था ।

शोभा के होठों ने उसकी उन्गलियों का साथ पकड़ा और लगे दीप्ति कि लंड के सुपाडे को सहलाने । थोड़ी ही देर में सुपाडी फुल कर लाल हो गया । हाथ से जेठानी की लंड चोदन जारी रख कर शोभा की जीभ उस लाल सुपाडी पर सरकी । दीप्ति के मुहं से चीख फ़ूट पड़ी "शोभा. . ईईईईईई, चुसो जोर से, मारो मेरी लंड.....", "माई गॉड, तुम सच में, सच में...ओह्ह्ह मां" । "क्या सच में? हां? क्या? क्या हूं मैं? बोलो?" शोभा ने दीप्ति के ऊपर चढ़ते हुये अपना रस से सना मुखड़ा जेठानी के चेहरे के सामने किया । हरेक क्या-क्या के साथ उसने जेठानी की लंड को कस के मुठ्ठी मेँ भर उपर-निचे कर रही थी । "रंडी हो तुम शोभा, रंडीईईई...", "ओह ईईई, और चूसो ना प्लीईईईज, मुझे तुम्हारी पूरी जीभ चाहिये अपनी सुपाडी पर ..." दीप्ति मस्ती में कराही । "और मेरी हथेली? ये नहीं चाहिये आपको?" एक झटके में अपना हाथ जेठानी की फुंकार मारती लंड में से खींच लिया ।

दीप्ति ने हाथ बढ़ा शोभा की कलाई को थाम लिया। "नहीं शोभा ऐसा मत करो । मुझे सब कुछ चाहिये । सब कुछ जो तुम्हारे पास है । वासना और वास्तविकता के बीच फ़र्क करना बहुत जरुरी था । खुले हॉल मेँ किसी भी वक्त किसी के अन्दर आने का जोखिम तो था ही । पर देह की सुलगती प्यास में दोनों दीन दुनिया से बेखबर हो चुके थे । दीप्ति पूरी तरह से शोभा के ऊपर आ चुकी थीं । शोभा तो बस जैसे इसी मौके की तलाश में थी । तुरन्त ही उसके हाथों ने आगे बढ़कर जेठानी के विशाल थनों को दबोच लिया । एक चूचें की निप्पल को होठों मे दबा वो जेठानी की जवानी का रस पीने में मश्गूल हो गई तो दूसरी तरफ़ दीप्ति ने भी खुद को देवरनी के ऊपर ठीक से व्यवस्थित करती हुई अपनी विशाल हथौड़े जैसे लंड को शोभा की झांटेदार बुर की गुलाबी छेद मेँ दबाया । जैसे ही चूत की मुलायम पन्खुड़ियों ने दीप्ति के पौरुष को अन्दर समाया, दीप्ति हुंकारी "आह!. बहुत गरम है छोटी तेरी चूत, मैं झड़ जाऊंगी" । दीप्ति ने देवरानी की विशाल उभरी गांड को हथेली मेँ दबाने के साथ-साथ अपनी गांड को उछालती हुई अपनी पूरी लंड शोभा की रिसती चूत में अन्दर बाहर करने लगी । आह! आह! हाय! मां!" दीप्ति चीख पड़ी । शोभा समझ गयी कि जेठानी की इन आवाजों से कोई न कोई जाग जायेगा । चाची ने तुरन्त ही अपने रसीले होंठ दीप्ति के होठों पर रख दिये । "म्ममह" दीप्ति शोभा के मुंह मे कराह रही थी । "खट खट" अचानक ही किसी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया "माँ, सब ठीक तो है ना?" अजय का स्वर सुनाई दिया । शायद उसे कुछ आवाजें सुनाय़ी दे गई थी और चिन्तावश वो मम्मी को देखने उसके कमरे के दरवाजे तक चला आया था । कमरे के अन्दर आना अजय ने दो महीने पहले ही छोड़ दिया था ।

"हां - बेटा, सब - ठीक - है" हर शब्द के बीच में विराम का कारण दीप्ति की उछलती गांड थी जो शोभा को रुकने ही नहीं दे रही थी और उसकी चुत मेँ अंदर बाहर कर रही थी । दीप्ति के दिमाग में हर सम्भावित खतरे की तस्वीर मौजूद थी पर वो तो अपनी लंड के हाथों लाचार थी । दो क्षण रुकने के बाद दीप्ति फ़िर से शोभा को चोदने मेँ लिप्त हो गयीं । पूरे हॉल मेँ फच...फच...की आवाज गुंज रहा था । दीप्ति अभी तक झड़ी नहीं थी । शोभा ने तो सोचा था कि औरत की लंड है जल्दी ही पानी निकाल देगा लेकिन दीप्ति तो पहले ही एक बार लंड का विर्य निकाल चुकी थी । पहली बार शोभा के हाथों से । अपनी चिकनी चूत के भीतर तक भरा हुआ जेठानी की 12  इंच का लंड अन्दर गहराईयों को अच्छे से नाप रहा था । दोनों ने ही कामासन में बिना कोई परिवर्तन किये एक दूसरे को चोदना बदस्तूर जारी रखा । फ़िर तीसरी बार दीप्ति को अपनी लंड में एक सैलाब उठता महसूस हुआ । दोनोँ के मुहं से घुटी घुटी आवाजें निकल रही थी । ये निषिद्ध सेक्स के आनन्द की परम सीमा थी । शोभा जिस जेठानी को वह बडी बहन माना है आज उस औरत ने अपनी लंड से उसे चोदी जा रही थी । और क्या पुरुष के बराबर थी उनकी जेठानी । अचानक हॉल का दरवाजा खुला । अजय दरवाजे की आड़ लेकर ही खड़ा हुआ था । "मम्मी, सबकुछ ठीक है ना, दीप्ति को फ़िर से आवाजें सुनायी दी थी ।" शायद अजय ने सब कुछ देखा लिया था । "कुछ नहीं बेटा". दीप्ति ने हांफती हुई आवाज लगाई । उसको तो सिर्फ़ अपनी देवरानी की पनीयाई चूत से मतलब थी । शोभा को बिस्तर पर पटक कर दीप्ति फिर उसके ऊपर आ गई । "रुको, दीदी" शोभा ने जेठानी को रोका । शोभा ने पैर के पास पड़ी अपनी पैन्टी को उठाकर पहले दीप्ति की लंड को पोंछा और फ़िर अपनी चूत से रिस रहे रस को भी साफ़ किया । काफ़ी देर हो गयी थी गीली चुदाई करते हुये । शोभा अब जेठानी की सुखे लंड को अपनी चूत में महसूस करना चाहती थी ।

दुसरे ही क्षण दिप्ती ने एक ही झटके में अपना पूरा का पूरा लंड शोभा की चूत में घुसेड़ा तो वो जैसे चूत के सारे टान्के खोलता चला गया । दस इन्च लम्बे और चार इन्च मोटे लंड से और क्या उम्मीद की जा सकती है । उसे समझ में आ गया कि वास्तव में वो चिकना द्रव्य कितना जरूरी था, उसने आँखेँ बन्द कर ली । दिप्ती की लंड किसी मोटर पिस्टन की भांति शोभा कि चूत मेँ अंदर-बाहर हो रहा था । शोभा ने जेठानी को बाहोँ मेँ कस के भर लिया और दोनोँ पैर उसकी कमर मेँ लपेट लिया । दोनोँ के स्तन एक दुसरे से रगड खा रहे थे । पिछे ड्रेसिँ-टेबल पर एक बडा शीशा था । शोभा जब आँखेँ खोल सामने पडे शीशे मेँ नजर गडाई तो जेठानी की फैली हुई विशाल गांड साफ दिखाई पडा जो तेजी से हवा मेँ उछल रहा था । दीप्ति के भारी गांड के दरार के निचे बडी सी लंड उसकी बुर मेँ अंदर बाहर हो रहा था साथ मेँ दो बडे अंडे लहरा रहे थे । दीप्ति के हर धक्के के साथ ही शोभा की जान सी निकल रही थी । दिप्ती की तेजी और ताकत का मुकाबला नहीं था । नाखूनों को जेठानी के कन्धों पर गड़ा कर आखें बन्द कर ली । हर एक मिनट पर आते आर्गैसम से चूत में सैलाब सा आ गया था । कई बार जेठानी के स्तनोँ पर दांत गड़ाए । लेकिन इससे तो दीप्ति की उत्तेजना में और वृद्धि हो गई । चन्द वहशी ठेलों के पश्चात दिप्ती ने भी चरम शिखर को प्राप्त कर ली ।

"शोभा,शोभा..हां शोभा, मेरी पानी निकल रही है । मैं अपना वीर्य तुम्हारी बुर में ही खाली कर रही हूं. आह ।" कहती हुई दीप्ति एक बार जोर से अपनी भारी गांड हवा मेँ उछाली और शोभा की बुर मेँ जड तक लंड पेल दी । शुरुआती स्खलन तीव्र किन्तु छोटा था । लेकिन उसके बाद तो जैसे वीर्य की बाढ़ ही आ गयी । शोभा ने दिप्ती को अपने बदन से चिपका लिया । वीर्य की हर पिचकारी के बाद वो अपनी देवरानी के नितम्बों को निचोड़ती । कभी जेठानी की भारी गांड को मसलती कभी उसकी पीठ पर थपकी देती । दिप्ती का बदन अभी तक झटके ले रही थी उसने शोभा के दोनो स्तनों के बीच अपना सिर छुपा लिया । दोनों शांत हुये, इस समय अपने ही देवरानी की बुर चोदने के बाद दीप्ति के अंग अंग में एक मीठा सा दर्द हो रहा था, लेकिन अब वहां से जाना जरुरी था ।

शोभा को धकेल कर साइड से सुलाया और दीप्ति अपने कपड़े ढूढने लगीं । बिस्तर के पास पड़ा हुया अपना पेटीकोट उठा कर कमर तक चढ़ाया, साड़ी को इकठ्ठा कर के बदन के चारों तरफ़ शॉल की तरह लपेट लिया । ब्लाऊज को वैसे ही एक हाथ से साड़ी पकड़े और दुसरे से ब्रा, पैंटी और पेटीकोट का नाड़ा दबाये दीप्ति कमरे से बाहर निकल गईं । शोभा भी अपने कमरे मेँ चली गई । अपने कमरे का दरवाजा बन्द करते वक्त दीप्ति को अजय के कमरे के दरवाजे के धीरे से बन्द होने की आवाज सुनाई दी । दीप्ति के मन मेँ अजीब शंका जाग उठा, कहीँ उनका बेटा ये सब देख न लिया हो ! कहीँ उसकी भेद न देख लिया हो । लेकिन ये सब सोचने का समय कहां था । उसकी लंड तो शोभा की रसीली बुर की याद मेँ अब तक आधा तन कर ही था । आज की चुदाई ये साबित करने के लिये काफ़ी थी कि 40 की उमर में भी उसकी लंड की ताकत ढली नहीँ थी । दीप्ति ने सारे कपड़े दरवाजे के पास ही छोड़ दिये और पेटीकोट से अपनी जांघों और लंड को पोंछा और झट से नाईटी पहन कर गोपाल के साथ बिस्तर में घुस गयीं । गोपाल पूरी तरह से सो नहीं रहा था, बीवी के कमरे में आने की आहट पाकर वो जाग गया "कुछ सुना तुमने, दीप्ति". "कुमार और शोभा इस उमर में भी कितने जोश से एक दूसरे को चोद रहे थे ।" वो तो मैने सुना, काफ़ी देर हो गई ना उनको खत्म करके तो." दीप्ति ने धड़कते दिल से पूछा । कहीं शोभा और उसकी चुदाई का शोर उसके पति ने ना सुन लिया हो । अपनी और शोभा की जन्गली चुदाई ने दोनों को ही दीन दुनिया भूला दी थी । "कहां बहुत देर पहले? अभी दो मिनट पहले ही तो खत्म किया है । दो घन्टे से चल रही थी चुदाई ।

कल दोनों शायद देर से ही उठेंगे । दीप्ति के तो होश ही गुम हो गये । वास्तव में उसके पति ने उन दोनोँ की चुदाई की आवाजें सुनी थी, किस्मत ही अच्छी है कि गोपाल उन आवाजों को शोभा और कुमार की मान बैठा था । तभी गोपाल का हाथ उसकी गांड पर आ गया । "बड़ी देर कर दी जानेमन, सो गयीं थीं क्या?" दीप्ति की नाईटी को ऊपर करते हुए कमर तक नंगा किया । "आज उस फ़िल्म में देखा, दीप्ति चाहकर भी गोपाल को रोक नहीं सकती थी । गोपाल ने दोनो हाथों से अपनी पत्नी की फ़ूली हूई गांड को दबोचा और एक ही झटके में अपना चार इंच का लंड उसकी गांड के छेद में पेल दिया । शायद उस फ़िल्म का ही असर है" ।

दीप्ति ने अपने मुरझे लंड को हाथ मेँ लेकर सहलाने लगी । गोपाल बिना रुके ताबड़ तोड़ धक्के लगाने लगा । दीप्ति भी फ़िर से उत्तेजित हो चली थीं । गोपाल ने अब गांड को छोड़ दीप्ति के ऊपर झुकते हुये उनके मुम्मे एक हाथ में भर लिये और दुसरे हाथ से अपनी पत्नी की लंड को मुठियाने लगा । दीप्ति की गांड को अपनी कमर से चिपका कर कुमार जोर जोर से मुठियाने लगा । "पता है, शोभा कितना चीख चिल्ला रही थी । शर्म और उत्तेजना की मिली जुली भावना ने दीप्ति के दिलोदिमाग को अपने काबू में कर लिया था । कुछ ही क्षणों में गोपाल के लंड ने उलटी कर दी.. दीप्ति की गांड में से सिकुड़ा हुआ लंड अपने आप बाहर निकल आया और व तुरन्त ही दूसरी तरफ़ करवट बदल कर सो गया । खैर, एक ही रात मेँ इतनी चोदाई के कारण दीप्ति का जिस्म थक कर चूर हो चुकी थी । लेकिन ये भी सच है कि आज जीवन में पहली बार उनको मालूम हुआ था कि चुदाई में तृप्ति किसे कहते हैं । दीप्ति ने करवट बदला और सोने की कोशिश करने लगी ।

पने देवरानी शोभा को पूरी तरह चोदने के बाद अगली सुबह दीप्ति उठीं तो उसकी पूरे बदन में मीठा मीठा दर्द हो रहा था । कमरे में कोई नहीं था । पति गोपाल कभी के उठ कर छोटे भाई के साथ सुबह की सैर के लिये जा चुके थे । दीप्ति हैंग ओवर (शराब पीने के कारण अगली सुबह व्यक्ति का सिर दुखता है, इसी को हैंग ओवर कहते है.) की वजह से सिर को दबाये चादर के नीचे बिस्तर में लेटी हुईं थीं । थोड़ा सामान्य हुईं तो पिछली रात की बातें याद आने लगीं । शराब के नशे मेँ कैसे एक अश्लील सिनेमा से उनके उत्तेजना बढीँ और अपनी लंड से पहली बार अपनी देवरानी की झांटेदार बुर की घनघोर चुदाई का आनन्द उठाया था और उन दोनों की आवाजें सुनकर अजय खुद दरवाजे तक चला आया था । इसी रात, जीवन में पहली बार पतिदेव ने भी पीछे से गांड मारी थी । अजय के बारे में सोचते ही उसे याद आया कि व घर की बडी बहु है और उसे अब तक उठ जाना चाहिये था । रात में जो कुछ भी हुआ वो अब उतना गलत नहीं लग रहा था । शायद उनकी भाग्य में अपनी देवरानी के द्वारा अपने लंड को मर्द बनाने का सौभाग्य लिखा था । पहली बार शोभा की बुर चोदी थी, इससे पहले हस्तमैथुन से और पति के द्वारा लाए गए एक फ्लॉसलाईट(मर्दोँ के हस्तमैथुन यन्त्र, एक नल जैसे चिज मेँ लंड डाल के पम्पिँ किया जाता है ) से अपनी लंड की गरमी को शांत करती थी । बूर चोदने मेँ मिला सुख दीप्ति पहले कभी नहीँ पाई थी ।

कमरे में बिखरे हुये कपड़े इकट्ठे करते दीप्ति को अब सब कुछ सामान्य लग रहा था । खैर, अब उनको एक संस्कारी बहु की तरह नीचे रसोई में जाकर देवरानी का हाथ बटाना था । उधर ये शंका भी कि शायद अजय ने कल रात को दोनों को संभोग करते देख लिया था... दीप्ति के मन में डर पैदा कर रही थी । दीप्ति रसोई में घुसी तो शोभा सब के लिये चाय बना रही थी । "गुड माँर्निंग, दीदी!", "ओह, गुड माँर्निंग शोभा ।" दीप्ति ने जवाब दिया । तभी अजय वहां पानी लेने आ गया । दीप्ति तो जड़वत रह गई । कहीं अजय ने सच में अपनी माँ को शोभा की बुर मेँ चोदते देख तो नहीं लिया, या वो सिर्फ़ अन्दाजा लगा रही हैं ।

"सो, कैसा रहा सब कुछ माँ ।" अजय ने सामान्य बनते हुये पूछा । "बेटा, कल शाम को शराब पीने के बाद, हम सब को थोड़ा नशा हो गया था ।" कहते हुये दीप्ति के हाथ काँप रहे थे । "कल रात को मजा आया कि नहीं ।" आखिरकार अजय अपना गुस्सा जाहिर कर ही डाला । अब शक की कोई गुन्जाईश नहीं थी की अजय ने कल रात मम्मी और चाची का चोदाई देख लिया था और मम्मी की मूषल लंड को भी । "देखो बेटा, ये सब गलती से हुआ ।" अब दीप्ति भी टूट गई । दिल जोरो से धड़क रहा था और तेजी से चलती सांसो से सीना भी ऊपर नीचे हो रहा था । अजय कुछ नहीँ बोला और सिधे अपने कमरे मेँ चला गया । शर्म के मारे दीप्ति के दोनों गाल लाल हो गये थे ।

अजय बचपन से अपने माता पिता के साथ एक ही कमरे में सोता आया था । जब वो तेरह साल का हुआ तो एक दिन दीप्ति को उसके बिस्तर में कुछ धब्बे मिले । उस दिन से उसने अजय का दूसरे कमरे में सोने का इन्तजाम कर दिया और साथ ही उसे नहलाना और उसके कपड़े बदलना भी बन्द कर दिया ।

अपनी इकलौते बेटे की मन से सारे उलझनोँ को मिटाना होगा । और अब दीप्ति को आज रात तक चैन नहीं लेने देगा । गोपाल ने ऑफ़िस का कुछ जरूरी काम बता वहां से विदा ली । सवेरे जब चाय बना कर उसने सब को आवाज लगाई तो अजय सबसे आखिर में पूरी तरह से तैयार हो कर डाईनिंग टेबिल पर आया था और पूरे दिन के लिये कॉलेज जाने का बहाना बना कर निकल गया और फ़िर दीप्ति के सामने नहीं आया । दीप्ति समझ गई ये सब पिछले रात शोभा को चोदने का नतीजा जो अजय ने देख लिया था । अजय को उसकी रहस्य का पता चल गया था । दीप्ति अपने कमरे में बैठी कुछ सोच रही थी । गोपाल सो रहे थे । आज का पूरा दिन मानसिक और शारीरिक उथल पुथल से भरा रहा था । दीप्ति ने आज पूरे दिन अजय पर नज़र रखी थी । अजय दिन भर उनसे बातेँ तक नहीँ किया । एक वास्तविकता ये भी थी कि वो अजय की मां थी । ममता और वासना की मिली जुली भावनाओं से दीप्ति के दिमाग में हलचल सी मची हुई थी । लेकिन जल्द ही अपने को काबू में कर लिया । दिमाग अब सिर्फ़ अजय के बरताव के बारे में सोचने लगा । बेचारा क्या सोच रहा होगा अपने माँ के बारे मेँ । माँ औरत है या मर्द । इन सब विचारों से दीप्ति का शरीर कांप रहा था । अब निर्णय की घड़ी पास ही थी । दीप्ति अजय के कमरे मे दबे पांव घुसी । आज रात अपने बच्चे का सारा उलझनेँ दुर करना चाहती थी । रात होने का इंतजार करने लगी ।

रात को जब थोड़ी देर के लिये दीप्ति की आंख भी लग गयी । अचानक अजय के कमरे से कुछ आवाज आयी तो वो जाग गयी, धीरे से वो कमरे के अन्दर दाखिल हुयी और अजय के बिस्तर के पास पहुँच गयी । आंखें जअब अन्धेरे की अभ्यस्त हुयीं तो देखा कि अजय चादर के अन्दर हाथ डाले किसी चीज को ज़ोर ज़ोर से हिला रहा था । अजय, कमरे में अपनी मां कि मौजूदगी से अनभिज्ञ मुट्ठ मारने में व्यस्त था । शायद अजय कल की रात को अपनी माँ और चाची के करतुत को सपनों में ही दुहरा रहा था । "आह, चाचीईईई" अजय की कराह सुनकर दीप्ति को कोई शक नहीं रह गया कि अजय उसकी सच्चाई जान चुका था । शोभा और अपने के लिये उनका मन घृणा से भर उठा ।

आखिर क्यूं हो गया ऐसा ? आज उनका लाड़ला ठीक उनके ही सामने कैसा तड़प रहा है । और वो भी उस शोभा का नाम ले कर, नहीं । अजय को और तड़पने की जरुरत नहीं है । उसकी मां है यहां पर उसकी हर ज़रुरत को पूरा करने के लिये । अजय के लिये उनके निर्लोभ प्रेम और इस कृत्य के बाद में होने वाले असर ने क्षण भर के लिये दीप्ति को रोक लिया । अगर उनके पति अजय के पिता को कुछ भी पता चल गया तो ? कहीं अजय ये सोचकर की उसकी मां एक सामान्य औरत नहीँ है उन्हें नकार दे तो ? तो, तो, तो? बाकी सब की उसे इतनी चिन्ता नहीं थी । और अपने पति को वो सब कुछ खुद ही बता कर समझा सकती थी कि अजय की जरुरतों को पूरा करना कितना आवश्यक था । नहीं तो जवान लड़का किसी भी बाजारु औरत या मर्द के साथ आवारागर्दी करते हुये खुद को किसी भी बिमारी और परेशानी में डाल सकता था । पता नही कब, लेकिन दीप्ति चलती हुई सीधे अजय की तरफ़ बिस्तर के पास जाकर खड़ी हो गईं । अजय ने भी एक साये को भांप लिया । तुरन्त ही समझ गया की ये शख्स कोई औरत ही है और मम्मी ही होगी । पिछले रात की द्रुश्य मन मेँ आते ही अपने लन्ड पर उसकी पकड़ मजबूत हो गयी । बचपन से देखती आई उसकी ममतामयी मम्मी बाकी औरतोँ से कितनी भिन्न है, उनकी गठीले औरत की बदन पर ईतना बडा पुरुषत्व ! मम्मी को औरत नाम दिया जाए या मर्द । कितना लम्बा और मोटा था मम्मी का लंड और क्या चोदाई कर रही थी चाची की बुर मेँ ! किसी hardcore porn फिल्म से कम नहीँ । कितना परेशान था सवेरे से । दसियों बार मुत्ठ मार मार कर टट्टें खाली कर चुका था । लेकिन अब मम्मी उसके पास थी । और वो ही उसको सही तरीके से शान्त कर पायेंगी ।

दीप्ति कांपते कदमों से अजय कि तरफ़ बढ़ी । सही और गलत का द्वंद्ध अभी तक उसके दिमाग में चल रहा था । डर था कि कहीं अजय उससे नफ़रत ना करने लगे । तो वो क्या करेगी ? कहीं वो खुद ही अपने आप से नफ़रत ना करने लगे । इन सारे शकों के बावजूद व अजय को धीरे से पुकारा

"अजय बेटा तुम अभी तक सोए नहीँ ।" दीप्ति बेटे से पुछी । अजय ने मम्मी की बात का कोई जवाब नहीँ दिया । अजय को चुप देख दीप्ति दोबारा पुछी- "तुम अभी तक जाग रहे हो बेटा । "

"ये सब क्या है मम्मी, मेरा तो कुछ समझ नहीँ आ रहा है पागल हो जाउंगा ।" अजय गुस्से से बोला ।

दीप्ति को झटका लगा । कैसे बेटे को समझाए । लेकिन व आज सारी बात का खुलासा करेगी । यही सोचते हुए दीप्ति बोली-"बेटा, मैँ तुम्हारी माँ ही हुं, पर मेरे शरीर मेँ बदकिस्मत से पुरुषोँ की निशानी आ चुकी है । पर बेटा मैँ तुम्हेँ अब भी उतना ही प्यार करती हुं जितना पहले करती थी ।" कहने के साथ दीप्ति की आंखोँ से आंसु टपक पडे ।
मम्मी की आंखोँ मेँ पछतावे के आंसु देख अजय का गुस्सा एकदम ठंडा पठ गया । मम्मी की एक हाथ को हाथ मेँ लिए बोला-"सॉरी मम्मी, मुझे ये सब बातेँ मालुम नहीँ था, व तो आपको चाची के साथ देखा और बस.....।"
दीप्ति आंखोँ मेँ आए आंसु पोछा और चेहरे पर मुस्कराहट लाती हुई बोली- "सॉरी बेटा, मुझे इस तरह हॉल मेँ तुम्हारे चाची के साथ नहीँ करना चाहिए था । पर बेटा न चाहते हुए भी मुझे इस पुरुषांग को अपनी नारी शरीर मेँ अपनाना पडा ।"

"नहीँ मम्मी, अब मुझे आपसे कोई शिकायत नहीँ । पर क्या आपको ऐसी ही रहनी पडेगी ।"

"अब मेरी इस बदलाव के कारण मेरी शरीर की जरुरतेँ भी बदल गई । और शरीर की मांग को पुरा करने के लिए ही मैँने तुम्हारी चाची के साथ हो गई । मजबुरी मेँ मुझे अब इसी पुरुषत्व को अपना कर जिन्दगी गुजारनी होगी । ऐसा नहीँ करती तो बेटा मैँ आज तुम्हारी मम्मी नहीँ रहती बल्की एक मर्द बन गई होती ।" दीप्ति ने बातेँ खतम की । मम्मी की बातेँ सुनकर अब अजय का मन साफ हो चुका था । व माँ के गोद मेँ सर रखते हुए बोला-"मैँ आपके साथ हुं मम्मी, आप मेरी प्यारी मम्मी हो ।"

"क्या आप इसी शरीर के साथ पूरी उम्र बिताऐंगी? अचानक आपकी शरीर मेँ ये बदलाव कैसे आया ।" अजय ने पुछा ।

अपने बेटे के सवाल का जवाब देती हुई दीप्ति बोली-
"बेटा, मैँ तो पूरी तरह से मर्द बनने जा रही थी । पर सामाजिक नियमोँ का उलंघन करके मैँ पुरुष बनना नहीँ चाहती थी । इसिलीए हमने डॉक्टरोँ के सलाह लिए और मेरी बदलती शरीर को रोक लिया । पुरे शरीर पहले जैसा स्त्री का ही रहा लेकिन मेरे शरीर मेँ लंड और अंडकोष बढ चुका था । इसे हटाना बहुत मुस्किल काम था । जब डॉक्टरोँ ने बताया की मैँ इसी के साथ भी खुशी से जी सकती हुं तो तुम्हारे पिताजी और मैँ खुशी-खुशी इसे ग्रहण किया । जो तुमने कल देखा वही सच है । अब मैँ भी इस सच को मानसिक तौर से अपना लिया है ।" दीप्ति आँसूओँ को पोछती हुई बोली ।

"लेकिन अब मैं आ गयी हूँ, तुम्हें मुठ मारने की कोई जरुरत नहीं ।" कहने के साथ ही मम्मी ने चादर के अन्दर हाथ डाल कर लन्ड के ऊपर जमे अजय के हाथों को अपने दोनो हाथों से ढक लिया । अब जैसे जैसे मम्मी लन्ड पर हाथ ऊपर नीचे करती अजय का हाथ भी खुद बा खुद उपर नीचे होता. "मम्मी" अजय ने फ़ुसफ़ुसाया । अपना हाथ लन्ड से अलग कर अजय उठ खडा हुआ और अपनी मम्मी को बिस्तर पर लिटा दिया । मम्मी की साडी को पेटीकोट समेत कमर के उपर तक सरका दिया और अपनी माँ के 8 इंच के मुरझा पडा लंड को मुठ्ठी मेँ भर लिया । दीप्ति ने अपनी बेटे के हाथों को पूरी आजादी दे दी उस शानदार खिलौने से खेलने की । अपने सपनों की मलिका को पास पाकर अजय का लन्ड भी फुल गया । अजय ने मम्मी के लन्ड पर उन्गलियां फ़िराईं तो उसकी नसों में बहता गरम खून साफ़ महसूस हुआ । आंखे बन्द करके पूरे ध्यान से मम्मी की उस महान औजार को दोनो हाथों से मसलने लगा । मम्मी की ये लन्ड इतना कठोर, इतना तगड़ा, इससे पहले अपनी जिन्दगी में उसने कभी औरत की ऐसे लन्ड को हाथ में नहीं लिया था ।

याद नहीं अजय के जन्म के बाद क्या दवा खाया था कि आज उसकी औरत के बदन पे ये लन्ड उग अया जो अपने पति, बेटे के लंड से भी कहीं आगे था । अपने ही ख्यालों में डूबी हुई उस मां को ये भी याद नहीं रहा कि कब अजय की मुट्ठी ने उसकी लंड को कसके दबाकर जोर जोर से दुहना चालू कर दिया । लन्ड की मखमली खाल खीचने से दीप्ति दर्द से कराह उठी । हाथ बढ़ा कर दीप्ति ने बेटे की अनियंत्रित कलाई को थामी । अजय ने दूसरे हाथ से अपनी मम्मी की चुचियोँ को सहलाया । खुद को घुटनों के बल बिस्तर के पास ही स्थापित करती हुई अजय ने
मम्मी की लन्ड को मुठियाना चालू रखा और आनन्द देने के काम में लग गया । "हाँ आआआआहहहह" । शरीर पर दौड़ती जादुई उन्गलियों का असर था ये, और ज्यादा आनन्द की चाह में दीप्ति बेकरारी में अपनी कमर हिलाने लगी ।

तुरन्त ही झुकते हुये अजय ने पूरा मुहं खोला और मम्मी की तन्नाये लंड को निगल लिया । उसके होंठ मम्मी की लंड के निचले हिस्से पर जमे हुये थे । दीप्ति के हाथ अजय के कन्धों पर जम कर उसे अपने पास खीचने लगे । अन्धेरी रात में अजय भी उस मादा शरीर को अपने पूरे बदन पर महसूस करना चाहता था । लेकिन उसकी मम्मी ने तो पूरे कपड़े पहने हुये है । दीप्ति की उत्तेजना अपने चरम पर थी । उधर अजय ने भी शरीर को थोड़ा और झुकाते हुए मम्मी की खड़ी लंड तक पहुंचने की चेष्टा की । जो शोभा ने किया वो वह भी कर सकता है । तो क्या हुआ अगर लंड चूसने का उसका अनुभव जीरो है, भावनायें तो प्रबल हैं ना । एक बार के लिये उसे ये सब लार का समुन्दर सा बह रहा था । आखिर पहली बार कोई औरत की लंड गलत लगा किन्तु अपने ही मम्मी के साथ सैक्स करने से ज्यादा गलत भला क्या होता ।

मन थोड़ा अजीब सा हो रहा था लेकिन फ़िर उसकी लंड का ख्याल आते ही नया जोश भर गया । अगर उसने आज मम्मी की लंड नहीं चूसा तो वह कल फ़िर से इस आनन्द को पाने के लिये शोभा के पास जा सकती है । अजय अब अपनी माँ का चेहरा देखना चाहता था वही चेहरा जो किसी देवी की मूर्ति की तरह चमक रहा था । हाथ बढ़ाकर बिस्तर के पास की लैम्प जलाई तो लम्बे बालों मे ढका चेहरा आज कुछ बदला हुआ लगा । दीप्ति ने अपना चेहरा अजय की तरफ़ घुमायी । दीप्ति समझ गईं अभी नहीं तो कभी नहीं वाली स्थिति आ खड़ी हुई है । अगर उन्होनें वासना और अनुभव का सहारा नहीं लिया तो इस मानसिक बाधा को पार नहीं कर पायेंगी और फ़िर अजय भी कभी उनका नहीं हो पायेगा । अपनी लंड चुसवाते हुए भी दीप्ति के दिल में सिर्फ़ एक ही जज्बा था कि वो अजय को सैक्स के चरम पर अपने साथ ले जायेगी जहां व सब कुछ भूल कर बस लडके को चोदेगी । दो मिनट पहले के मानसिक आघात के बाद दीप्ति का लंड थोड़ा नरम पड़ गया था वो फ़िर से अपने शबाब पर लौट आया । मां के लम्बे बाल अलग ही रेशमी अहसास पैदा कर रहे थे ।

पिछली रात से बहुत ज्यादा अलग ना सही लेकीन काफ़ी मजेदार था ये सब । दीप्ति ने भी अब सब कुछ सोचना छोड़ कर बेटे के सिर को हाथों से थाम लिया और फ़िर अपनी भारी नितम्ब उछालती हुई बेटे के मुहं को चोदने लगी । दीप्ति का नियंत्रण खत्म हो गया । वो अभी झड़ना नहीं चाहती थी परन्तु जोश, वो गर्मी और मुहं से आती गोंगों की आवाजों से आपा खो कर उसकी वीर्य बह निकली."उई मां" दीप्ति सीत्कारी । अजय सब समझ गया । मम्मी छूटने वाली थी । उसकी लंड की नसों मे बहते वीर्य का आभास पाकर अजय ने अपना मुहं हटाय़ा और मुट्ठी में जकड़ कर मम्मी की लंड को पम्प करने लगा ।
अजय का लंड भी फुंकर मारने लगा था । ये देखते हुए दीप्ति अपनी लंड से अजय का हटा दिया और अपनी लंड को अजय के लंड से भिडा दी । मम्मी अब दोनोँ के लंड को अपनी मुठ्ठी मेँ पकड ली और एकसाथ दोनोँ लंड को मुठियाने लगी । अजय माँ की चिकनी लंड का घर्षण अपने लंड पर महसूस कर रहा था ।
"मेरा निकलने वाला है मम्मी ।" अजय बोला ।
"थोडा रुक जाओ बेटा एकसाथ ऑर्गाजम करते हैँ ।" शोभा हाँफती हुई बोली ।
"OK माँ ।" अजय राजी हो गया । दीप्ति दोनोँ के लंड मुठियाना चालु रखा । उसकी हाथ तेजी से चलने लगी । मम्मी की भारी नितम्ब बिस्तर पर उछलने लगा था । अजय अपनी दोनोँ हाथ से माँ के कंधा पकड के रखा था । दोनोँ के लंड फुल गए थे और सुपाडेँ एकदम लाल हो चुके थे ।
"मम्मी...मैँ...अब रहा नहीँ जाता ।" अजय दर्द मेँ कराह उठा ।
"बस एक और सेकॉन्ड रुक जाओ बेटा ।" दीप्ति उत्तेजना मेँ कांपती हुई बोली ।
फिर दीप्ति दोनोँ के लंड को मजबुती से पकडती हुई एक पिस्टन के भांति अपनी हाथ उपर-निचे करने लगी । दोनोँ के नंगे शरीर उत्तेजना के मारे कांप रहे थे, धडकनेँ बढ चुकी थी । तभी मम्मी की आवाज सुनते ही अजय का धर्य का बांध टुट गया और उसके लंड से विर्य की धार निकल पडी और दीप्ति भी कराह उठी मानो रो पडेगी, आआआई....ईईई... के साथ ही दीप्ति ने जोर से गांड उछाली और एक पिचकारी के साथ मम्मी की गुलाबी सुपाड़े में से वीर्य की धार छूट कर सीधे अजय के पेट पर पड़ी । दीप्ति ने दोनो आंखें बन्द कर लीं । दीप्ति की हाथ दोनों के वीर्य से सना हुआ था । अभी तक झटके लेती हुई अपनी लंड के साथ अजय के लंड को भी दीप्ति ने निचोड़ निचोड़ कर खाली कर दिया । मां के हाथ और पेटीकोट उसकी वीर्य से सने हुये थे । दीप्ति ने अजय की जांघों पर सिमटी पड़ी चादर से अपनी लंड रगड़ कर साफ़ की । अजय ने बिस्तर पर एक तरफ़ हटते हुये अपनी मां के लिये जगह बना ली । दीप्ति भी अजय के पास ही बिस्तर पर लेट गयी । खुद को इस तरह से व्यवस्थित किया की अजय का चेहरा ठीक उनके स्तनों के सामने हो और लंड उसके हाथ में । ब्लाउज के सारे बटन खोल कर दीप्ति ने उसे अपने बदन से आज़ादी दे दी ।

अजय की आंखों के सामने मां की नन्गी जवानी बिखरी पड़ी थी । जबसे सैक्स शब्द का मतलब समझने लगा था उसकी मां ने कभी भी उसे अपने इस रूप का दर्शन नहीं दिया था । अजय का सिर पकड़ दीप्ति ने उसे अपने चूंचों मे छिपा लिया । अजय थोड़ा सा कुनमुनाया. "श्श्श्श". "मेरे बच्चे, तेरे लिये तेरी मां ही सब कुछ है । अजय के होठों ने अपने आप ही मां के निप्पलों को ढूंढ लिया । जीवन में पहली बार ना सही लेकिन इस समय अपनी मां के शरीर से अपनी भूख मिटाने का ये अनोखा ही तरीका था । मां के दोनों निप्पल बुरी तरह से तने हुये थे । शायद बहुत उत्तेजित थी । अपने बेटे के लिये उसकी मां ने अपने आनन्द की परवाह भी ना की । अजय का मन दीप्ति के लिये प्यार और सम्मान से भर गया । मां बेटे एक दूसरे से बेल की तरह लपटे पड़े थे । अजय का एक पावं दीप्ति की कमर को जकड़े था तो हाथ और होंठ मां के सख्त हुये उरोजोँ पर मालिश कर रहे थे । दीप्ति की लंड में भी धीरे धीरे जान लौटने लगी । पर दिन भर का थका अजय जल्दी ही अपनी ममतामयी मां के आगोश में सो गया । दीप्ति थोड़ी सी हताश तो थी किन्तु अजय की जरुरतों को खुद से पहले पूरा करना उनकी आदत में था । खुद की टांगों के बीच में आग ही लगी थी पर अजय को जन्मजात अवस्था में खुद से लिपटा कर सोना उसे सुख दे रहा था । थोङी देर में दीप्ति भी नींद के आगोश में समा गयी । जो कुछ भी उन दोनों के बीच हुआ वो तो एक बड़े खेल की शुरुआत भर था । एक ऐसा खेल जो इस घर में अब हर रात खेला जाने वाला था ।

पिछले चौबीस घन्टों में अपने ही घर की सीधी सादी दिखने वाली भद्र महिला के साथ हुये उसके अनुभव को याद करके अजय का लंड फ़िर तेजी से सिर उठाने लगा । बिस्तर पर उसकी मां दीप्ति जन्मजात नन्गी अवस्था में उसकी बाहों में पड़ी हुयीं थीं । मां के मूषल लंड को याद करके अजय का हाथ अपने आप ही मम्मी के मुरझे लंड पर पहुंच गया । हथेली में लंड को भर कर अजय हौले हौले से दबाने लगा । शायद मां जाग जाये । अजय ने धीरे से मां की तरफ़ करवट बदलते हुये अपना लंड उनके भारी नितंबों की दरार में घुसेड़ दिया । अपनी गांड पर दबाब पाकर मां की आंखें खुल गईं । "अजय, ये क्या कर रहे हो?", मां बुदबुदाईं । अजय ने जवाब में अपने गरम तपते होंठों से माँ के कानों को चूमा । बस इतना करना ही काफ़ी था उस उत्तेजना से पागल हुई औरत के लिये । दीप्ति ने खुद पीठ के बल लेटते हुये अजय के हाथों को खींच कर अपनी झांटो के पास रखा और एक पैर सिकोड़ कर घुटना मोड़ते हुये उसे अपनी मुरझी हुई लंड के पूरे दर्शन कराये । अजय ने मां की झांटो भरी लंड पर उन्गलियां फ़िराई ।

अजय शायद ये सब सीखने में सबसे तेज था । थोडी देर ध्यान से देखने के बाद बुद्धीमत्ता दिखाते हुये उसने अपनी उन्गली को मां की गांड के छेद के पास से कम बालों वाली जगह से ठीक ऊपर की तरफ़ ठेला और अंडकोष को सहलाने लगा । इस तरह धीरे धीरे ही सही अजय अपनी मां की लंड को मसलने लगा । मां सिसकी और अपनी गदराए जांघोँ को और ज्यादा खोल दिया । साथ ही माँ की झाँटोँ से भरी पूरा लंड और बडे-बडे अंडकोष अजय के सामने आ गया ।. अब एक हाथ से काम नही चलने वाला था । अजय ने कुहनियों के बल मां के ऊपर झुकते हुये एक और उन्गली को अपनी मां की गांड के छेद को घिसने की जिम्मेदारी सौंप दी । "आह, मेरे बच्चे", अत्यधिक उत्तेजना से दीप्ति चींख पड़ी । बाल पकड़ कर अजय का चेहरा अपनी तरफ़ खींचा और अपने रसीलें गरम होंठ उसके होठों पर रख दिये । आग में जैसे घी ही डाल दिया दीप्ति ने ।


दीप्ति ने बिस्तर पर बिखरे हुये नाईट गाऊन को उठा अपनी लंड को रगड़ रगड़ कर साफ़ किया । सवेरे से बनाया प्लान अब तक सही तरीके से काम कर रहा था । अजय को अपना सैक्स गुलाम बनाने की प्रक्रिया का अन्तिम चरण आ गया था । दीप्ति ने अजय के छोटे लंड को मुत्ठी में जकड़ा और घुटनों के बल अजय के उपर झुकते हुये बहुत धीरे से अपनी लंड को अजय के मुंह के अन्दर समा दिया । पूरी प्रक्रिया अजय के लिये किसी परीक्षा से कम नहीं थी । "हां मां, प्लीज, फ़क मी, फ़क मी...ओह फ़क" जोर जोर से चिल्लाता हुआ अजय अपनी ही मां की लंड को चुसे जा रहा था । अजय के चेहरे को हाथों में लेते हुये दीप्ति ने उसे आदेश दिया "अजय, देखो मेरी तरफ़" । धीरे धीरे एक ताल से कमर हिलाते हुये वो अपनी लंड की भरपूर सेवा कर रही थीं ।

उस तगड़े हथियार का एक वार भी अपनी हाथ से खाली नहीं जाने दिया । वो नहीं चाहती थी की अजय को कुछ भी गलत महसूस हो । "मै कौन हूं तुम्हारी?" लंड को अजय के होँठोँ पर फ़ुदकाते हुए पूछा । "म्म्मां" अजय हकलाते हुये बोला । इस रात में इस वक्त जब ये औरत उसके साथ हमबिस्तर हो रही है तो उसे याद नहीं रहा की मां किसे कहते है । "मैं वो औरत हूं जो इतने सालों से तुम्हारी हर जरूरत को पूरा करती आई है । है कि नहीं?" दीप्ति ने पासा फ़ैंका । आगे झुकते हुये एक ही झटके में अपना पूरा लंड अजय के मुंह में डाल दिया । "आआआआआह, हां मां, तुम्हीं मेरे लिये सब कुछ हो!" अजय हांफ़ रहा था । उसके हाथों ने मां की चिकनी उभरी गांड को पकड़ कर नीचे की ओर खींचा । दीप्ति ने अपने नितंबों को थोड़ा ऊपर कर दुबारा से लंड को बेटे के मुंह के अंदर तक पेल दिया और कमर ऊपर उछालते हुये मुंह में जबर्दस्त धक्के लगाने लगी ।

अजय के ऊपर झुकते हुये दीप्ति ने सही आसन जमाया । "अजय, अब तुम जो चाहो वो करो । ठीक है" दीप्ति की मुस्कुराहट में वासना और ममता का सम्मिश्रण था । अजय ने सिर उठा कर मां के निप्पलों को होठों के बीच दबा लिया । दीप्ति के स्तनों से बहता हुआ करन्ट सीधा उनकी लंड में पहुंचा । हांलाकि दोनों ही ने अपनी सही गति को बनाये रखा । जवान जोड़ों के विपरीत उनके पास घर की चारदीवारी और पूरी रात थी । दीप्ति ने खुद को एक हाथ अपनी लंड को सहलाते हुये दूसरे हाथ से अपनी चूचीं पकड़ कर अजय के मुहं में घुसेड़ दी । अजय ने भी भूखे जानवर की तरह बेरहमी से उन दो सुन्दर स्तनों का मान मर्दन शुरु कर दिया । मां के हाथ की जगह अपना हाथ इस्तेमाल करते हुये अजय ने निप्पल को जोर से उमेठा । नीचे मां और पुत्र अपनी-अपनी लंड हिलते हुये दोनों के बीच उत्तेजना को नियन्त्रण में रख रही थी । अब मां ने आसन बदलते हुये एक नया प्रयोग करने का मन बनाया । मम्मी की टांगों को चौड़ा करके अजय उनके बीच में बैठा तो उसका लंड खड़ी अवस्था में ही मां के तने हुए लंड से जा भिड़ा ।

उसका ४ इंच का लंड  माँ के १२ इंच के लंड  के सामने बहुत कमजोर लग रहा था

2 सेकेन्ड पहले भी ये लंड यहीं था लेकीन उस वक्त यह उनके अन्दर समाया हुआ था । अजय को गोद में बैठा कर दीप्ति ने एक बार फ़िर से अपनी लंड के साथ बेटे के लंड को अपनी मुठ्ठी में भरा । दोनोँ लंड के सुपाड़े के ऊपर के फोर-स्कीन फ़िसल रहे थे । "ऊईईई माआआं" दीप्ति सीत्कारी । दीप्ति ने बेटे के कन्धे पर दांत गड़ा दिये । इतना ज्यादा आनन्द दीप्ति के लिये अब असहनीय हो रहा था । मां पुत्र की ये सैक्सी कुश्ती सिसकियों और कराहों के साथ कुछ क्षण और चली ।" माँ तुम्हारा लैंड बहत बड़ा और ताक़तवर है, मेरे लैंड में दर्द होने लगता है " यह सुन कर दीप्ती को शर्म आ गयी।  पसीने से तर दोनों थक कर चूर हो चूके थे पर अभी तक इस राऊंड में चरम तक कोई भी नहीं पहुंचा था । थोड़ी देर रुक कर दीप्ति अपने लाड़ले बेटे के सीने को चूसने लगी और चेहरे को चूमने चाटने लगी । मां के जोश को देख कर बेटा समझ गया ।माँ तुम मुघे चाची समघ केर चोद तो नहीं दोगी ?

दीप्ति के गुलाबी होंठों पर जीत की मुस्कान बिखर गई । इतनी देर से चल रहे इस हस्तमैथुन कार्यक्रम से दोनोँ के लंड का तो बुरा हाल था । "अजय बेटा । बस बहुत हो गया । अब मैँ झड़ रही हुं । मां कल भी तेरे पास आयेगी" दीप्ति हांफ़ने लगी थी । अजय का भी हाल बुरा था । उसके दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था । समझ में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे । बस माँ के फ़ुदकते हुये मुम्मों को हाथ के पंजों में दबा कमर उछाल रहा था । "ऊहहहहहहहहहह! हां! ऊइइइ मांआआ!" चेहरे पर असीम आनन्द की लहर लिये दीप्ति बिना किसी दया के दोनोँ के मुस्टंडे लंड को जोर जोर से आगे-पिछे करने लगी । "आ आजा बेटा, खुश कर दे अपनी मां को", अजय को पुचकारते हुये बोली । इन शब्दों ने जादू कर दिया । अजय रुक गया । दोनों जानते थे कि अभी ये कार्यक्रम कफ़ी देर तक चल सकता है लेकिन उन दोनों के इस अद्भुत मिलन की साथी उन आवाजों को सुनकर गोपाल किसी भी वक्त जाग सकते थे और यहां कमरे में आकर अपने ही घर में चलती इस पाप लीला को देख सकते थे । काफ़ी कुछ खत्म हो सकता था उसके बाद और दोनों ही ऐसी कोई स्थिति नहीं चाहते थे । अजय ने धक्के देना बन्द कर आंखे मूंद ली । मम्मी की लंड ने गरम खौलते हुये वीर्य की बौछारे उड़ेल दी । "ओह" दीप्ति चीख पड़ी । जैसे ही विर्य की पहली बौछार का अनुभव उन्हें हुआ बेटे को कस के भींच लिया । अगले पांच मिनट तक दीप्ति की लंड से वीर्य की कई छोटी बड़ी फ़ुहारें निकलती रहीं । थोड़ी देर बाद जब ज्वार उतरा तो दीप्ति बेटे के शरीर पर ही लेट गय़ीं । भारी भरकम स्तन अजय की छातियों से दबे हुये थे । दोनोँ के लंड एक दुसरे से रगड खा रहे थे । अजय ने मां के माथे को चूमा और गर्दन को सहलाया । "मां, मैं हमेशा सिर्फ़ तुम्हारा रहूंगा । तुम जब चाहो जैसे चाहो मेरे संग सैक्स कर सकती हो ।

इसी तरह घर का माहोल चलता रहा । दीप्ति अपने बेटे और शोभा के साथ अलग-अलग समय पर अपनी कामवासना पुरी करती रही । एक दिन रात को शोभा की आंखें थकान और नींद से बोझिल हो चली थी और दिमाग अब भी पिछले २-३ महीनों के घटनाक्रम को याद कर रहा था । अचानक ही कितना कुछ बदल गया था उसके सैक्स जीवन में । पहले अपने ही बहन जैसी जेठानी की बदली हुई लिँग और अकस्मात ही बना उसका सेक्स संबंध फ़िर जेठानी के द्वारा संभोग के दौरान नये नये प्रयोग किसी मादा शरीर से मिला अनुभव नितांत अनूठा था । पर रात में इस समय बिस्तर में किसी पुरुष के भारी कठोर शरीर से दबने और कुचले जाने का अपना अलग ही आनन्द है । जेठानी औरत तो थी ही पर उसकी विशाल लंड मेँ गजब का ताकत था । जेठानी की चोदाई से मिली आनंद पहले कभी नहीँ मिली थी उसे । बडी बेरहमी से उसे चोदा था जेठानी ने । काश! दीप्ति इस समय उसके पास होती । दुसरा था भतीजा अजय जो अभी नौजवान है और उसे बड़ी आसानी प्रलोभन देकर अपनी चूत चटवाई जा सकती है । फ़िर वो दीप्ति की लंड की तरह ही उसके मुहं पर भी वैसे ही पानी बरसायेगा । मजा आ जायेगा । पता नहीं कब इन विचारों में खोई हुई उसकी आंख लग गयी । देर रात्रि में जब प्यास लगने पर उठी तो पूरा घर गहन अन्धेरे में डूबा हुआ था । बिस्तर के दूसरी तरफ़ कुमार खर्राटे भर रहे थे । पानी पीने के लिये उसे रसोई में जाना पड़ेगा सोच कर बहुत आहिस्ते से अपने कमरे से बाहर निकली । सामने ही अजय का कमरा था ।

शोभा चुपके से अजय के कमरे का दरवाजा खोला और दबे पांव भीतर दाखिल हो गई । कमरे में घुसते ही उसने किसी मादा शरीर को अजय के शरीर पर धीरे धीरे उछलते देखा । दीप्ति के अलावा और कौन हो सकता है इस वक्त इस घर में जो अजय के इतना करीब हो । अजय की कमर पर सवार उसके लन्ड को अपनी भारी गांड के छेद में समाये दीप्ति तालबद्ध तरीके से गांड मरवा रही थी । खिड़की से आती स्ट्रीट लाईट की मन्द रोशनी में उसके उछलते चूंचे और मुहं से निकलती धीमी कराहो से दीप्ति की मनोस्थिति का आंकलन करना मुश्किल नहीं था । "अभी अभी मुझे चोदी है और फ़िर से अपने बेटे के ऊपर चढ़ गई" मन ही मन दीप्ति को गन्दी गन्दी गालियां बक रही थी शोभा । खुद के तन भी वही आग लगी हुई थी ।

उधर दीप्ति पूरे जोशो खरोश के साथ अजय से चुदने में लगी हुई थी । रह रहकर उसके हाथों की चूड़ियां खनक रही थी । दीप्ति की 8 इंच लम्बा और मोटा लंड उछलने से हवा मेँ लहरा रहा था और गले में पड़ा मंगल्सूत्र भी दोनों स्तनों के बीच उछल कर थपथपा कर उत्तेजक संगीत पैदा कर रहा था । ये सब शोभा की चूत में फ़िर से पानी बहाने के लिये पर्याप्त था । आभूषणों से लदी अजय के ऊपर उछलती जेठानी काम की देवी ही लग रही थी । दीप्ति की उछलती लंड देखते ही शोभा की पहले से नम बुर की दिवारोँ ने अब रिसना चालु कर दिया था । शोभा को अब मम्मी की लंड चाहिये था । सिर्फ़ पत्थर की तरह सख्त जेठानी की लंड ही उसे तसल्ली दे पायेगी । अब यहां खड़े रह कर मां पुत्र की काम क्रीड़ा देखने भर से काम नहीं चलने वाला था । शोभा मजबूत कदमों के साथ दीप्ति की और बढ़ी और पीछे से उसका कन्धा थाम कर अपनी और खींचा । हाथ आगे बढ़ा शोभा ने दीप्ति के उछलते कूदते स्तनों को भी हथेलियों में भर लिया । कोई और समय होता तो दीप्ति शायद उसे रोक पाती पर इस क्षण तो वो एक उत्तेजना से गुजर रही थी । अजय नीचे से आंख बन्द किये माँ के गांड मेँ धक्के पर धक्के लगा रहा था । इधर दीप्ति को झटका तो लगा पर इस समय स्तनों को सहलाते दबाते शोभा के मुलायम हाथ उसे भा रहे थे । कुछ ही क्षण में आने वाली नई स्थिति को सोचने का समय नहीं था अभी उसके पास । शोभा को बाहों में भर दीप्ति उसके सहारे से अजय के तने हथौड़े पर कुछ ज्यादा ही जोश से कूदने लगी । "शोभा--आह--आआह", दीप्ति अपनी लंड में उठती विर्य की लहरों से जोरो से सिसक पड़ी । वो भी थोड़ी देर पहले ही अजय के कमरे में आई थी । शोभा की तरह उसकी लंड की आग भी एक बार में ठंडी नहीं हुई थी और फिर चोदने के बाद गांड नहीं मराई थी ।

आज अजय की बजाय अपनी प्यास बुझाने के उद्देश्य से चुदाई कर रही थी । अजय की जब नींद खुली तो मां बेदर्दी से उसके फ़ूले हुये लंड को अपनी गांड में समाये उठक बैठक लगा रही थी और माँ के आधे तने मूषल लंड और अंडकोष उसके पेट पर रगड खा रहे थे । लाचार अजय एक हाथ बढा कर माँ के लंड को पकड लिया और माँ के उछलने से लंड अपने आप पम्प होता गया । आज रात अपनी मां की इस हिंसक करतूत से संभल भी नहीं पाया था कि दरवाजे से किसी और को भी कमरे में चुपचाप आते देख कर हैरान रह गया । पर किसी भी तरह के विरोद्ध की अवस्था में नहीं छोड़ था आज तो मां ने ।

"शोभा तुम्हें यहां नहीं आना चाहिये था, प्लीज चली जाओ ।" दीप्ति विनती कर रही थी । शोभा के गदराये बदन को बाहों में लपेटे दीप्ति उसकी हथेलियों को अपने दुखते स्तनों पर फ़िरता महसूस कर उसकी उत्तेजना बढ गई । लेकिन अपने बेटे के सामने.. नहीं नहीं । रोकना होगा ये सब ।

किन्तु किशोर अजय का लंड तो मां के मुख से अपनी चाची का नाम सुनकर और ज्यादा कठोर हो गया । दीप्ति ने शोभा को धक्का देने की कोशिश की और इस हाथापाई में शोभा के बदन पर लिपटी एक मात्र रेशमी चादर खुल कर गिर पड़ी । हॉल से आकर थकी हुई शोभा नंगी ही अपने बिस्तर में घुस गई थी । जब पानी पीने के लिये उठी तो मर्यादावश बिस्तर पर पड़ी चादर को ही लपेट कर बाहर आ गई थी । शोभा के नंगे बदन का स्पर्श पा दीप्ति के तन बदन में बिजली सी दौड़ गई, उसकी सोया लंड जाग उठा । एकाएक उसका विरोध भी ढीला पड़ गया । अजय के लंड को चोदते हुये दीप्ति और कस कर शोभा से लिपट गई । नीचे अजय अपनी माता की गिली हुई गांड के छेद को अपने लंड से भर रहा था तो ऊपर से चाची ने दाहिना हाथ आगे बढ़ा कर मम्मी की तने हुए लंड को कस के पकड ली । किसी अनुभवी खिलाड़ी की तरह शोभा चाची ने मम्मी के तने हुए लंड के फोर-स्कीन को उपर-निचे करते हुए लाल सुपाडे को अंदर बाहर करने लगी । लंड पर चाची की उन्गलियों का चिर परिचित स्पर्श पा मम्मी मजे में कराहा, "ईईईई". "हां शोभा", शोभा चाची ने भी नीचे देखते हुये हुंकार भरी । दीप्ति की गांड अजय के लंड के कारण चौड़ी हुई पड़ी थी और शोभा भी उसे बख्श नहीं रही थी । रह रह कर बार बार जेठानी के लंड के सुपाडे पर जिभ फिरा रही थी । दीप्ति बार बार अजय की जांघों पर ही अपनी भारी नितम्ब को गोल गोल घुमा और ज्यादा उत्तेजना पैदा करने की कोशिश कर रही थी ।

अजय के सामने ही शोभा एक हाथ से मम्मी की 12 इंच के लंड को पम्प कर रही थी और दूसरे से मम्मी के चूचों को निचोड़ रही थीं । चाची के होंठ मम्मी के होंठों से चिपके हुये थे और जीभ शायद कहीं मां के गहरे गले में गोते लगा रही थी । आंख के कोने से अजय ने चाची को मम्मी की लंड मुठियाते देखा तो झटके से चाची की स्तन को थाम लिया । अपना हाथ मम्मी की लंड पर से खींच कर चाची अजय के कानों मे फ़ुसफ़ुसाई "अजय, देखो तुम्हरी मम्मी क्या कर रही हैँ ? जिस्मों की उत्तेजना में कुछ भी स्वीकार कर लेना काफ़ी आसान होता है । हां, अपने बेटे के सामने दीप्ति पूरी तरह से चरित्रहीन साबित हो चुकी थी ।

उसके बेडरूम के बाहर वो सिर्फ़ उसकी मां थीं । वो भी उन दोनों के इस कृत्य का बदला चुकाने को उत्सुक था । पर किससे कहे, दोनों ही उससे उम्र में बड़ी होने के साथ साथ भारतीय पारिवारिक परम्परा के अनुसार सम्मानीय थी । और जब से अपनी मम्मी की रहस्य सामने आई है उसका तो चैन ही उड गया था । मम्मी को मर्द कहा जाए या औरत ! औरत की भी इतनी बडी लंड होती है ? मम्मी की चोदाई व अपनी आँखोँ से देख चुका है , बड़ी बेरहमी चाची की बुर मेँ चोद रही थी । कितनी ताकत थी मम्मी की लंड मेँ । दोनों ही के साथ उसका संबंध पूरी तरह से अवैध था । इसीलिये जब उसकी चाची ने मात्र एक चादर में लिपट कर उसके कमरे में प्रवेश किया और अपने भारी भारी स्तनों को मां के कन्धे से रगड़ना शुरु किया तो वो उन पर से अपनी नज़र ही नहीं हटा पाया । चाची की नाजुक उन्गलियां मम्मी के तने हुये लंड पर थिरक रही थीं तो बदन उसके पूरे शरीर से रगड़ खा रहा था ।

दोनों ही औरतों के बदन से निकला पसीने खुश्बू अजय को पागल किये जा रही थी । दीप्ति ने जब अजय को शोभा के नंगे शरीर पर आंखें गड़ाये देखा तो उन्हें भी अहसास हुआ कि अजय को भरपूर प्यार देने के बाद भी आज तक उसके दिल में अपनी चाची के लिये जगह बनी हुई है । दोनों औरतों के बदन के बीच में शोभा की चूत से निकलता आर्गैज्म का पानी भरपूर चिकनाहट पैदा कर रहा था ।

"देखो अजय" शोभा ने उसकी माँ के फ़ूले लंड पर नजरें जमाये हुए कहा । "कैसा कड़क हो गया है?" मम्मी की लंड को मुट्ठी में भरे भरे ही शोभा चाची धीरे से बोली । मम्मी के गले से आवाज नहीं निकल पाई । उत्तेजना में उन्होनें शोभा चाची के भारी नितम्बों को थाम कर उसे मसलने लगी ताकि फुंकार मारती हुई लंड की किसी से तो रगड़ मिले ।

शोभा ने चेहरा दीप्ति की तरफ़ घुमाया और अपने होंठ दीप्ति के रसीले होंठों पर रख दिये । होंठों को चूसते हुये भी उसने मम्मी के लंड को मुठियाना जारी रखा । नजाकत के साथ दीप्ति के सुपाड़े पर अंगूठा फ़िराने लगी । " ईईईईई", दीप्ति सिसक पड़ी । अंगूठे के दबाव से मम्मी की लंड में खून का दौड़ना तेज हो गया । मम्मी की लंड पर चाची की कसती मुट्ठी से मचल सा गया । दीप्ति की तो जान ही निकल गई । हे भगवान । इन सब कामों में शोभा पूरी सावधानी बरत रही थी कि किसी को भी कुछ भी जोर जबरदस्ती जैसा ना लगे । दीप्ति ने नीचे से अपनी चौडी गांड को उछाला शोभा कि मुट्ठी को चोदने का प्रयास किया पर तब तक शोभा ने अपनी मुट्ठी खोल सिर्फ़ सहारा देने के लिये लंड को दो उन्गलियों से पकड़ा हुआ था ।

तभी दीप्ति अजय के लंड पर से उठ खडी हुई और शोभा की बगल में लेट गई । दीप्ति ने कुछ बोलना चाहा पर समझ में नहीं आया कि क्या कहे । दिमाग पूरी तरह दिल से हारा हुआ अजय और शोभा के हाथों की कठपुतली सा बना हुआ था । चाची का इशारा पा अजय चेहरे को आगे खींच कर मम्मी की लंड अपनी खुले मुंह में उतार दिया । दीप्ति ने तुरन्त ही दोनों हाथों से बेटे का चेहरा दबा जानवरों की तरह धक्के लगा शुरु कर दिया । दीप्ति का लंड अजय के गले को अन्दर तक भरा हुआ था । दीप्ति की लंड अब जी भरकर बहना चाहती थी और उसके हाथ शोभा की बुर खोज रहे थे ताकि वापिस उसकी बुर में अपनी लंड डाल सके । पर शोभा तो पहले से ही मां बेटे का सम्पूर्ण मिलन करवाने में व्यस्त थी । एक हाथ की उन्गलियों से दीप्ति के लंड को थामे दूसरे से उसकी भारी गांड को सहला सहला कर जेठानी को और उकसा रही थी । "हां दीदी, शाबास, लंड को वैसे ही चटवाते रहो जैसे हम इससे अपनी चूत चुसवाना चाहते थे । दीप्ति के गालों से गाल रगड़ती हुई शोभा बोली । अजय चौंका । निश्चित ही दोनों औरते उसके ही बारे में बातें कर रही थी ।

आंखों के कोनों से दीप्ति ने शोभा के मोटे मोटे चूचों को झूलते देखा । इस स्थिति में भी वो उन दोनों को जी भर के निचोड़ना मसलना चाहती थी । लेकिन अपनी लंड चटवाने स्वाद भी वो छोड़ना नहीं चाहती थी । मन शोभा के लिये कृतज्ञ था कि उसने मां को अपने बेटे के और करीब ला दिया है । अजय जो अपनी आंखों के सामने अपनी जेठानी और अजय की उत्तेजक हरकतें देख रहा था, अब फ़िर से सक्रिय हो उठी । थोड़ा सा उठ कर उसने दोनों हाथों से दीप्ति के उछलते स्तनों को दबोच लिया । शोभा को भी अब खुल कर दोनों मां बेटे के बीच में आना ही पड़ा । दीप्ति के हाथ अपने चूचों पर पड़ते ही शोभा कराह उठी । अन्दर तक सिहर उठी शोभा चाची । मम्मी के खुले सिग्नल से उनकी चूत में चिकने पानी का दरिया बनना चालू हो गया ।

ठीक इसी तरह से अगर अजय मेरी चूत पर भी जीभ फ़िराये तो ? पहली बार तो बस चूम कर रह गया था । आज इसको सब कुछ सिखा दूंगी, यहीं इसकी मां के सामने । और इस तरह से दीप्ति के लिये भी रोज अपनी लंड चुसाई का इन्तजाम हो जायेगा । इन्ही ख्यालों में डूबी हुय़ी शोभा अजय की सीने को छोड़ जेठानी की विशाल गांड को सहलाने लगी । और दीप्ति अधीरतापूर्वक अपने फ़ड़कते लंड को अजय के मुख में पागलों की भांति पेल रही थी । अजय ने हाथ बढ़ा मम्मी के दूसरे निप्पल को मसलना चाहा परन्तु शोभा ने बीच में ही उसका हाथ थाम उसे रोक लिया । क्षण भर के लिये मां बेटे को छोड़ शोभा बिस्तर के सिरहाने पर जा कर बैठ गयी । मम्मी ने चारों तरफ़ नज़र घुमा चाची को देखने का असफ़ल प्रयास किया । अपनी जांघों को अजय की पीठ पर लपेटते हुये दीप्ति बेटे के मुहं को चोदने लगी । माथे पर एक गीले गरम चुम्बन से मम्मी की आंखें खुलीं । शोभा ने उनके पीछे से आकर ये आसन बनाया था । अपने खुले रेशमी बालों को मम्मी के स्तनोँ पर फ़ैला, होठों को खोल कर उसके होठों से भिड़ा दिया ।

शोभा चाची ने जब अपनी थूक सनी जीभ मम्मी के मुख में डाली तो जवाब में मम्मी ने भी लपककर अपनी जुबान को शोभा चाची के गरम मुख में सरका दिया । दोस्तों सम्भोग के समय होने वाली थूक के आदान प्रदान की ये प्रक्रिया बड़ी ही उत्तेजक एवं महत्वपूर्ण होती है । चाची के स्तन मम्मी के सिर पर टिके हुये थे और व उनको अपने मुहं में भरने के लिये उतावला हो रही थी । चाची का मंगलसूत्र उसके गालों से टकराकर ठंडा अहसास दे रहा था और साथ ही साथ उनके शादीशुदा होने की बात भी याद दिला रहा था । शायद इन्हीं विपरीत परिस्थितियों से निकल कर मम्मी भविष्य में जबर्दस्त चुदक्कड़ बन पायेंगी और फ़िर भीषण चुदाई का अनुभव पाने के लिये घर की ही एक भद्र महिला से ज्यादा भरोसेमंद साथी भला कौन मिलेगा ? चाची अब होठों को छोड़ अब मम्मी के उरोजोँ को चूमना लगीं । आगे सरकने से उनके स्तन मम्मी के चेहरे पर आ गये थे । जब मम्मी के होठों ने गदराये चूचों पर निप्पलों को तलाशा तो स्तनों मे अचानक उठी गुदगुदी से शोभा हंस पड़ी । कमरे के अन्दर का वातावरण अब तीनों प्राणियों के लिये काफ़ी सहज हो चला था

अजय अब सारी शर्म त्याग करके पूरी तरह से दोनों औरतों के मस्त बदन को भोगने के लिये तैयार हो चुका था । दीप्ति के दिमाग से भी बन्धन, मर्यादा और लज्जा जैसे विचार गायब हो चुके थे । अब उन्हें भी अपने बेटे के साथ साथ किसी तीसरे प्राणी के साथ प्रणय क्रीड़ा करने में भी कोई संकोच ना था । शोभा चाची की शरारतें भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी । मम्मी के पेट का सहारा ले वो बार बार शरीर ऊपर को उठा अपने चूचों को मम्मी के होठों की पहुंच से दूर कर देतीं । कभी मम्मी की जीभ निप्पलों पर बस फ़िर कर रह जाती तो बिचारे और उत्तेजित हो कर कड़क हो जाते । खुद ही उन दोनों तरसते यौवन कपोतों को जेठानी के मुहं में ठूस देना चाहती थी । और दीप्ति ने यहां भी उसे निराश नहीं किया । चाची की उछल-कूद से परेशान मम्मी ने अजय के सिर को छोड़ कर दोनों हाथों से चाची के झूलते स्तनों को कस कर पकड़ा और दोनों निप्पलों को एक दूसरे से भिड़ा कर एक साथ दातों के बीच में दबा लिया मानों कह रही हो कि अब कहां जाओगी बच कर । शोभा आंखें बन्द करके सर उठाये सिसक सिसक कर मम्मी की करतूतों का मजा ले रही थी । दीप्ति आज उनके साथ दुबारा से सहवास रत थी ।

शोभा ने जब आंखें खोली तो दीप्ति को अपनी तरफ़ ही देखते पाया । उसने अजय के मुहं में झटके लगाना बन्द कर दिया था । कमर पर लिपटी उसकी टांगें भी जब खुल कर बिस्तर पा आ गयी थी । जब शोभा ने सिर उठाया तो उसके चेहरे पर छाई वासना और तन्मयता से दीप्ति का दिल टूटने लगा । दोनों ने काफ़ी देर तक एक दूसरे की आंखों मे देखा । अजय उनके निप्पलों पर अपने होंठों से मालिश कर रहा था और इसी वजफ़ से रह रह कर चाची की चूत में बुलबुले उठ रहे थे । अपने प्लान की कामयाबी के लिये शोभा को अब आगे बढ़ना था ।

शोभा ने दीप्ति के सिर के पीछे यन्त्रवत उछलती अपनी कमर को रोका और आगे सरक आई । अजय ने मम्मी के लंड को कस के मुट्ठी में जकड़ लिया और होठों को सिर्फ़ सुपाड़े पर गोल गोल फ़िराने लगा । शोभा ने भी कुहनियों पर खुद को व्यवस्थित करते हुये भारी गांड को जेठानी के चेहरे पर जमा दिया । इस समय शोभा की गीली टपकती चूत दीप्ति के प्यासे होंठों से काफ़ी दूर थी । और मम्मी उत्तेजना में जीभ को घूमा घूमा कर चाची के तर योनि-प्रदेश तक पहुंचने का प्रयास कर रही थी इधर शोभा चाची ने अजय को उसके हाल पर छोड़ अपना ध्यान जेठानी दीप्ति के ऊपर लगा दिया । दीप्ति के चेहरे के पास जा शोभा ने उनके गालों को चूमा । दीप्ति ने भी जवाब में शोभा के दोनों होठों को अपने होठों की गिरफ़्त में ले लिया । दोनों औरते फ़िर से एक दूसरे में तल्लीन हो गईं । अजय ने सिर उठा कर देखा तो उसकी मां और चाची जैसे किसी दूसरे ही संसार में थी ।

दीप्ति के मुहं में जीभ फ़िराते हुये शोभा अजय की लार का स्वाद महसूस कर सकती थी उधर दीप्ति भी शोभा की जीभ पर खुद उसका, शोभा का और अजय का मिला जुला रस आराम से चाट पा रही थी । आज की रात तीनों ही प्राणी एकाकार हो गये थे । चाची ने दुबारा से मम्मी के खड़े मुस्टंडे लंड के एक तरफ़ अजय के होठों को जमा दूसरी तरफ़ से खुद पूरा मुहं खोल गरमा गरम रॉड को जकड़ लिया । अब इस तरीके से वो दोनों एक दूसरे को किस भी कर सकती थीं और दीप्ति का तन्नाया पुरुषांग भी उनके चार गरम होठों के बीच में आराम से फ़िसल सकता था । मम्मी ने जब ये दृश्य देखा तो मारे जोश के उसने शोभा चाची के दोनों नितम्बों को कस के जकड़ लिया । लेकिन चाची की चूत से बहते झरने को वो अपने प्यासे होठों तक नहीं ला पायी । गांड को नीचे खीचने पर शोभा के होंठ मम्मी के लंड का साथ छोड़ दे देते थे और शोभा चाची ये होने नहीं दे रही थीं । खैर मम्मी ने शोभा की कमर को चूमना चाटना चालू कर दिया । शोभा पूरी तन्मयता से जेठानी के मोटे लंड पर लार टपका उसे होठों से मल रही थी । अजय भी जल्द ही ये कला सीख गई । दोनों दीप्ति के उस कड़कड़ाते पुरुषांग को आइसक्रीम की तरह दोनों तरफ़ से एक साथ चूस रही थीं । बीच-बीच में चाची और अजय के होंठ कभी मिलते तो एक दूसरे को किस करने लगते और यकायक मम्मी की लंड पर दवाब बढ़ जाता । इतनी पूजा करने के बाद तो दीप्ति के लंड में जैसे नया स्वाद ही पैदा हो गया ।

इससे पहले व कभी एक साथ दो लोगोँ से अपनी लंड नहीँ चटवाई थी । या तो ये दूसरी औरत की खूश्बूदार लार है या फ़िर दीप्ति की मूषल लंड से रिसने वाले प्रि-कम जो चुतड के उछलते वक्त बह कर यहां जमा हो गया था । हां, पक्के तौर पर लंड की खाल पर नमकीन स्वाद दीप्ति के पसीने या सुपाड़े से रिसते चिकने पानी का ही था । शोभा के दिमाग में कुछ अलग ही खिचड़ी पक रही थी ।

मम्मी के लंड से होठों को हटा अपने गाल उससे सटा दिये । अजय ने भी चाची की देखा देखी अपने गाल को भी मम्मी के लंड से सटा दिय़ा । दीप्ति की लंड भी इधर उधर झटके खाता हुआ दोनों के ही चेहरों को अपने रस और उनके थूक के मिश्रण से पोतने लगा । इस तरह थोड़ी देर तक तड़पाने के बाद चाची ने मम्मी के लंड को अजय के हवाले कर दिया । अजय ने झट से मम्मी के लंड के फ़ूले हुये गुलाबी सुपाड़े पर होंठों को गोल करके सरका दिया । सुपाड़ा जब उसके गले के भीतरी नरम हिस्से से टकराया और थोड़ा सा गाड़ा तरल भी लन्ड से छूट गया । शायद मम्मी अब ज्यादा देर तक नहीं टिक पायेगा. "शोभा ? तुम किधर जा रही हो?", दीप्ति जल्दी ही झड़ने वाली थी और व ये पल उसके साथ बांटना चाहती थी । "आपके और अपने लिये इसको कुछ सिखाना बाकी है.." शोभा ने जवाब दिया । चाची का पूरा चेहरा भीग गया था । वो चिकना मिश्रण उनके गालों से बह कर गर्दन से होता हुआ दोनों चूचों के बीच में समा रहा था । चूत अब पानी से भरकर लबलबा रही थी । उसका छूटना जरुरी था । दीप्ति को आज बल्कि अभी इसी वक्त उनकी चूत को चाटना होगा तब तक जब तक की उन्हें आर्गेज्म नहीं आ जाता ।

शोभा ने हथेलियोँ से मम्मी के चुचियोँ को दबाती अपनी चूत को उसके मुहं के ठीक ऊपर हवा में व्यवस्थित किया । दीप्ति ने सिर को उठा जीभ की नोंक से चूत की पंखुड़ियों को सहलायी । सामने ही अजय अपनी मम्मी की लंड की चूसाई में व्यस्त था । अब शोभा की चूत जेठानी के मुहं में समाने के लिये तैयार थी और उसकी आंखों के सामने अजय अपनी माँ की लंड खाने में जुटी हुई थी । शोभा ने अपनी टांगें चौड़ा की ताकि नीचे बैठने में आसानी हो । मम्मी ने भी फ़ुर्ती दिखाते हुये चाची की नंगी कमर को जकड़ा और सहारा दे उनकी खुली चूत को अपने मुहं के ठीक ऊपर रखा । शोभा ने एक नाखून पेट में गड़ा उसे इशारा दिया तो मम्मी ने अपनी जीभ चूत के बीच में घुसेड़ दी । आधी लम्बाई तक चाची की चूत में जीभ सरकाने के बाद मम्मी ने उसे चूत की फ़ूली दीवारों पर फ़िराया और फ़िर किसी रसीले संतरे के फ़ांक के जैसे चाची की चूत के होंठों को चाटने लगी । शोभा को तो जैसे जन्नत का मज़ा आ रहा था पर अभी जेठानी की असली दीक्षा बाकी थी । चाची ने दो उन्गलियों से चूत के दरवाजे को चौड़ाया और खुद आगे पीछे होते हुये अपनी तनी हुई चिकनी क्लिट को मम्मी की जीभ पर मसला ।

"हांआआआ.. आह", चाची ने मम्मी को इशारा करने के लिये आवाज़ निकाली । जब मम्मी की जीभ क्लिट पर से हटी तो चाची शान्त बैठी रहीं । दुबारा मम्मी की जीभ ने जब क्लिट को सहलाया तो "हां.." की ध्वनि के साथ चाची ने नाखून मम्मी के पेट में गड़ा दिया । कुछ "हां हां" और थोड़े बहुत धक्कों के बाद मम्मी समझ गई की उनकी देवरानी क्या चाहती हैं । चाची की ट्रैनिंग पा मम्मी पूरे मनोयोग से उनकी चूत को चाटने चोदने में जुट गई । मम्मी का ध्यान अब अपने मोटे लन्ड और बेटे से हट गया था । शोभा चाची हथेलियां मम्मी के उरोजोँ पर जमाये दोनों आंखें बन्द किये उकड़ू अवस्था में बैठी हुई थीं । उनकी पूरी दुनिया इस समय मम्मी की जीभ और उनकी चूत के दाने में समाई हुई थी । मम्मी की जीभ में जादू था । जब पहली बार आईसक्रीम चाटने की भांति मम्मी ने अपनी जीभ को क्लिट पर फ़िराय़ा, लम्बे और टाईट स्ट्रोक, तो चाची की चूत बह निकली । कितनी देर से बिचारी दूसरों के आनन्द के लिये कुर्बानियां दिये जा रही थी । लेकिन अब भी काफ़ी धीरज और सावधानी की जरुरत थी । अजय जैसे कुशल मर्द तक उनकी पहुंच पूरी तरह से जेठानी के मूड पर ही निर्भर थी ।

चूत के दाने से उठी लहरें शोभा के पूरे शरीर में चींटी बन कर रेंगने लगी थीं । बार-बार जेठानी के स्तनोँ में नाखून गड़ा वो उनको रफ़्तार बढ़ाने के लिये उकसा रही थीं । दोनों जेठानी-देवरानी मुख मैथुन के मामले में अनुभवहीन थे किन्तु शोभा जो थोड़ी देर पहले ही अपनी जेठानी के साथ काम संसार के इस मजेदार रहस्य से परिचित हुई थी, जानती थी कि अगर जेठानी रफ़्तार के साथ छोटे स्ट्रोक से उसकी क्लिट
को सहलायेगी तो वो जल्दी ही आर्गैज्म की चरमसीमा पार कर लेंगी । "आह..और तेज..तेज !", शोभा अपने विशाल नितंबों को दीप्ति के ऊपर थोड़ा हिलाते हुये कराही । अजय के हाथ भी शोभा की आवाज सुन कर रुक गये । जब उसने चाची के चेहरे की तरफ़ देखा तो आश्चर्यचकित रह गया । दोनों आंखें बन्द किये चाची पसीने से लथपथ जैसे किसी तपस्या में लीन थी । चाची ने मम्मी के पेट पर उन्गलियों से छोटे घेरे बना जतला दिया कि उसे क्या पसन्द है । मम्मी भी तुरन्त ही चाची के निर्देश को समझ गई । जैसे ही मम्मी की जीभ सही जगह पर आती शोभा उसके जवान भरे हुये सीने पर चिकोटी काट लेती । अपनी चूत के मजे में उन्हें अब मम्मी के दर्द की भी परवाह नहीं थी ।

"ऊह.. आह.. आह.. उई मांआआआ... आह", शोभा के मुहं से हर सांस के साथ एक सीत्कार भी छुटती । पागलों की तरह सारे बाल खोल जोर जोर से सिर हिलाने लगी थीं । शर्मो हया से दूर शोर मचाती हुई शोभा को दीन दुनिया की कोई खबर ना थी । अभी तो खुद अगर कमरे में उसका पति भी आ जाता तो भी वो जेठानी के मुहं को ना छोड़ती थी । दीप्ति की जीभ इतने परिश्रम से थक गयी थी । क्षण भर के लिये रुका तो शोभा ने दोनों हाथों के नाखून उसकी खाल में गहरे घुसा दिये "नहीं दीदी अभी मत रुक.. प्लीज...आह" । बेचारा दीप्ति कितनी देर से अपनी देवरानी की हवस बुझाने में लगी हुई थी । चाची तो अपनी भारी भरकम गांड लेकर मम्मी के चेहरे के ऊपर ही बैठ गय़ीं थीं । फ़िर भी बिना कुछ बोले पूरी मेहनत से चाची को बराबर खुश कर रही थी । मम्मी का लंड थोड़ा मुरझा सा गया था । पूरा ध्यान जो देवरानी की चूत के चोंचले पर केन्द्रित था । अजय बिना पलकें झपकाये एकटक चाची की भारी चौडी नितम्ब मम्मी के मुहं पर उछलते देख रहा था । शोभा, उसकी चाची, इस वक्त पूरी तरह से वासना की मूर्ति बनी हुई थी । सब कुछ पूरी तरह से आदिम और पाशविक था । उसका अधेड़ मादा शरीर जैसे और कुछ नहीं जानता था ना कोई रिश्ता, ना कोई बंधन और ना कोई मान्यता । कमरे में उपस्थित तीनों लोगों में सिर्फ़ वही अकेली इस वक्त मैथुन क्रिया के चरम बिन्दु पर थीं । उनकी इन स्वभाविक भाव-भंगिमाओं से किसी ब्लू-फ़िल्म की नायिकायें भी शरमा जायेंगी । दीप्ति की समझ में आ गयी कि अगर किसी औरत को इस तरीके से इस हद तक गरम कर दिया जाये तो वो सब कुछ भूल कर उसकी गुलाम हो सकती है । दीप्ति के दिल में काफ़ी सालों से शोभा के अलग ही जज्बात थे ।
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शोभा ने ही पहली बार उसकी लंड को चूसा था और उसे चोद कर उसका कौमार्य भी भंग किया था । आज वही शोभा दुबारा से उसे एक नयी काम कला सीखा रही थीं और अगर इस समय उसके कारण शोभा के आनन्द में जरा भी कमी हुई तो ये उसके लिये शर्म की बात होगी । बाद में वो शोभा को अपने दिल की बात बतायेगी कि अब उसे किसी और से चुदने की जरुरत नहीं है । देवर से भी नहीं । उसे जो चाहिये जैसे चाहिये वो देगी । देवरानी की चूत को चाटने का हक अब सिर्फ़ उसकी है । दीप्ति ये भी नहीं जानती थी कि शोभा आज पहली बार ही मुख मैथुन कर रही है और वो ही उनकी जिन्दगी में ये सब करने वाली पहली औरत भी है ।

शोभा का चूत रस दीप्ति की क्षमता से कहीं ज्यादा था। सांस लेने के लिये दीप्ति ने अपना सिर थोड़ा सा घुमाया तो शोभा की चूत से उसकी जीभ बाहर फ़िसल गई । मारे हवस के चाची ने अपनी भारी गांड को पीछे ढकेला तो मम्मी की नाक उनकी बुर की फ़ांकों में घुस गई । शोभा ने उस बिचारी नाक को भी नहीं छोड़ा और लगी अपनी तनी हुई क्लिट को नाक की हड्डी पर रगड़ने । थोड़ी पस्त हो चुकी थी सो आगे को झुकते हुये जेठानी के स्तनोँ पर ही पसर गई शोभा । कमर ऊपर नीचे हिलाते हुये भी कुछ बड़बड़ा रही थी व । "हमारा अजय अब सब सीख गया दीदी...अब आप भी उससे अपनी लंड चटवा सकती हैँ । कभी भी..आह.." हर शब्द के साथ उसकी कमर तालबद्ध होकर दीप्ति के चेहरे पर रगड़ रही थी । आर्गैज्म की तेज धारें अब बहते पानी में बदल गई थी । दीप्ति को भी थोड़ी राहत मिली । अपना चेहरा देवरानी के चिकने चर्बीयुक्त नितम्बोँ पर रगड़ने लगी । शोभा को तुरन्त ही चूत में ढेर सारे छोटे किन्तु शक्तिशाली आर्गैज्मों का अहसास हुआ । मानों किसी ने जलती पटाखों की लड़ी घुसेड़ दी हो । शान्त होती शोभा के चेहरे पर असीम शान्ति पसर गई । दीप्ति को गले लगा वो उसका धन्यवाद व्यक्त करना चाहती थी ।

अजय आंख खोल कर सामने देखा तो चाची मम्मी के लंड को मसल रही थी । अजय ने आगे बढ़ माँ के सुपाड़े को अपने होंठों में दबा लिया । धीरे से दोनों टट्टों को हाथों से मसला और अपनी जीभ को सुपाड़े की खाल पर फ़िराया । तुरन्त ही दीप्ति के लंड ने 12  इंच का रुप धारण कर लिया । शोभा लंड को वही छोड़ अजय के चेहरे के पास जाकर होंठों पर किस करने लगी । दोनों ही एक दूसरे के मुहं में अपना अपना रस चख रहे थे ।

"अजय चलो.. गेट रैडी । वर्ना मम्मी नाराज हो जायेंगी" । शोभा ने अजय का ध्यान उसकी प्यासी मां की तरफ़ खींचा । अजय एक बार को तो समझ नहीं पाया कि चलने से चाची का क्या मतलब है । उसकी मां तो यहीं उसके पास है । शोभा ने अजय को इशारा कर बिस्तर पर एक तरफ़ सरकने को कहा और दीप्ति को खींच कर अपने बगल में लिटा लिया । अजय से अपना ध्यान हटा शोभा ने जेठानी के स्तनों पर अपने निप्पलों को रगड़ा और धीरे से उनके होंठों के बीच अपने होंठ घुसा कर फ़ुसफ़ुसाई,"अब आपकी बारी, मालूम है कि हम औरतों को क्या पसन्द है ।" कहते हुये शोभा ने जेठानी को अपनी बाहों में भर लिया ।

अजय अपनी चाची के पीछे लेटा ये सब करतूत देख रहा था । लंड को पकड़ कर जोर से चाची कि गांड की दरार में रगडने लगा, बिना ये सोचे की ये कहां जायेगा । दिमाग में तो बस अब लंड में उठता दर्द ही बसा हुआ था । किसी भी क्षण उसके औजार से जीवनदाय़ी वीर्य की बौछार निकल सकती थी. घंटों इतनी मेहनत करने के बाद भी अगर मुट्ठ मार कर पानी निकालना पड़ा तो क्या फ़ायदा फ़िर बिस्तर पर दो-दो कामुक औरतों का ।

शोभा ने गर्दन घुमा जेठानी की नज़रों में झांका फ़िर प्यार से उसके होंठों को चूमते हुये बोली, "दीदी, मेरे आगे नहीं, पीछे आ जाओ । जल्द ही दीप्ति अपनी तने लंड को पकड़ कर उठी और शोभा के पीछे उसकी उभरी हुई गांड से सटा कर लेट गई । शोभा को दीप्ति के लंड का सुपाड़ा अपनी गांड के छेद पर चुभा तो था पर इस वक्त ये सब नये नये प्रयोग करने का नहीं था । रात बहुत हो चुकी थी और दीप्ति एवं अजय अभी तक ढंग से झड़े नहीं थे । अजय ने मां के फनफनाते लंड की तरफ़ देखा । दीप्ति की आंखों में शर्म और वासना के लाल डोरे तैर रहे थे । दीप्ति ने एक बार और गांड को हल्के से झटका सुपाड़ा फ़िर से शोभा के पिछले छेद में जा लगा । शोभा की सांस ही रुकने को थी कि अजय ने हाथ बढ़ा चाची के चेहरे को सहलाया । इस तरह शोभा अब अपनी जेठानी और भतीजे के नंगे जिस्मों के बीच में दब रही थी । शोभा के चेहरे पर अपना गोरा चेहरा रगड़ते हुये बोली

"शोभा, तुम हमें कहां से कहां ले आई?"। "कोई कहीं नहीं गया दीदी । हम दोनों यहीं है.. आपके पास", कहते हुये शोभा ने अपने उभरी चुतडोँ को दीप्ति के खडे लंड से रगड़ा ।

"हम तीनों तो बस एक-दूसरे के और करीब आ गये हैं." शोभा ने अपनी उन्गलियां दीप्ति के पेट पर फ़िराते हुये आधा तने लंड पर रख दीं । "आप तो बस मजे करो.." शोभा की आवाज में एक दम से चुलबुलाहट भर गई । आंख दबाते हुये उसने अजय को इशारा कर दिया था । शोभा ने अपनी नंगी पीठ पर जेठानी के गरम स्तनोँ को महसूस किया । दीप्ति ने एक हाथ शोभा की कमर पर लपेट कर उसको अपनी तरफ़ दबाया । लंड सीधा चाची की भारी गांड के सकरे रास्ते में फ़िसल गया ।"उधर नहीं दीदी". चाची कराही । अपना हाथ पीछे ले जा कर जेठानी के बालोँ को पकड़ा और उसके गालों पर एक गीला चुम्बन जड़ दिया । आज रात एक पारम्परिक भारतीय घर में जहां लंड और चूतों का रस सभी सम्भावित तरीकों से मिश्रित थे । "दीदी, अपना पैर मेरे ऊपर ले लो", शोभा ने सलाह दी । शोभा दोनों के साथ आज रात एकाकार हो गई थी । उसने तुरन्त हाथ बढ़ा खुद ही दीप्ति की मोटी जांघ को उठा अपने नितम्बों के ऊपर रख लिया । दीप्ति ने सोचा शायद शोभा अपनी चूत उसकी लंड से रगड़ना चाहती है । लेकिन जल्दी ही दीप्ति की गरम मूषल लंड उसकी चूत और गुदा के बीच सरकने लगा । जेठानी ने उत्तेजना में बिना निशाना साधे वार कर रही थी । जब भी जेठानी के मोटे लंड का प्रहार शोभा के गुदा द्वार पर पड़ता तो पीड़ा से कराह उठती । अपने जेठानी की सैक्स जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए गांड मराना? ये तो अप्राकृतिक है ।

चलो स्त्री की शरीर मेँ लंड होने के नाते एक दूसरे की सैक्स जरुरतें भी पूरी की जा सकती है । शोभा जैसी घर की ही अन्य वरिष्ठ सदस्य का साथ भी चल सकता है । किन्तु गुदा मैथुन! ना । इन्हीं सब विचारों में खोई हुई शोभा को पता ही नहीं चला कि कब अजय ने उसकी टांगों के बीच में से हाथ घुसेड़ कर अपनी माँ के सख्त लंड को पकड़ लिया था । माँ के जननांग को सहलाने लगा । उसकी खुद की बुर में अभी तक हल्के हल्के झटके आ रहे थे । शायद जेठानी के द्वारा चूसे जाने के बाद कहीं ज्यादा संवेदनशील हो गई थी । सिर्फ़ सोचने मात्र से ही लिसलिसा जाती थी । दिमाग को झटका दे अजय ने मम्मी की तेल पिये लंड को चाची की रिसती चूत के मुहं पर रखा । "अब डालो", मम्मी के चेहरे की ओर देखता अजय बोला जो इस समय माँ के बिशाल लंड को चाची की चूत में गुम होते देख रहा था । "आह! दीदी धीरे.. आह", शोभा चित्कारी । लंड काफ़ी सकरे मार्ग से चूत में प्रविष्ट हुआ था । बुर की निचली दीवारों से सरकता हुआ दीप्ति की लंड शोभा के गर्भाशय के मुहांने को छू रहा था । इतने सालों की चुदाई के बाद भी शोभा की चूत में ये हिस्सा अनछुया ही था । जेठानी के साथ संभोग करते समय भी उसने कभी इस आसन के बारे में सोचा नहीं था । कृतज्ञतावश शोभा जेठानी के गालों पर चुम्बन बरसाने लगी । दीप्ति की लंड उसके चुतडोँ के बिच कार्यरत था ।

दीप्ति ने शोभा के एक चूंचे को हाथ में कस के दबा लिया । शोभा को अपने फ़ूले स्तनों पर जेठानी के नरम हाथ सुहाने लगे । वो अपना दूसरा स्तन भी दीप्ति के सुपुर्द करना चाहती थी । शरीर को हल्का सा उठा दीप्ति को दूसरा हाथ भी इस्तेमाल करने के लिये उकसाया । दीप्ति ने तुरन्त ही शोभा के बदन के उठे बदन के नीचे से दूसरा हाथ सरका के दूसरे चूंचे को दबोच लिया । अब दोनों ही चूंचे मम्मी के पंजों में जकड़े हुये थे और वो उनके सहारे अपनी मांसल नितम्ब को शोभा की कमर पर जोर जोर से पटक रहा थी । मम्मी के जबड़े भींच गये । अजय की नज़रें उसी पर थी । चाची के सिर के ऊपर से चेहरा आगे कर दोनों एक दूसरे को चूमने लगे । छोटे छोटे चुम्बनों के आदान-प्रदान से मानों एक दूसरे को जतला रहे हो की अब उनकी कामक्रीड़ा का केन्द्र-बिन्दु सिर्फ़ चाची ही है । शोभा ने गर्दन मोड़ कर अपने सिर के पीछे चलती माँ बेटे की हरकत को देखा तो वो भी साथ देने के लिये उतावली हो गई । दोनों के जुड़े हुये होंठों के ऊपर बीच में से उसने अपने होंठों को भी टिका दिया । तीनों अब बिना किसी भेद-भाव के साथ चुमने चाटने लगे । आंखें बन्द किये मालूम ही नहीं कौन किसके मुहं में समाया हुआ है ।

अजय ने अपना सिर मां और चाची के पास से हटा नीचे चाची के चूचों को जकड़े पड़े मम्मी के हाथों को चूमा । और थोड़ा नीचे आते हुये चाची के नंगे बदन पर जैसे चुम्बनों की बारिश ही कर दी । चूत में भरे हुये मम्मी के लंड और मुहं में समाई उसकी जीभ के बीच मेँ अजय की हरकतों को महसूस ही नहीं कर पा रही थी । किन्तु जब अजय ने अपने होंठों को उसकी घनी झांटों के बीच में से तनी हुई क्लिट के ठीक ऊपर रखा तो शोभा मम्मी के मुहं में ही चीख पड़ी । शोभा के तपते होंठ और चूत को रौंदती दीप्ति का बलशाली पुरुषांग एक साथ शोभा के होशो-हवास छीन चुके थे । दीप्ति की हालत भी खराब थी । देवरानी के प्रजनांग में अन्दर बाहर होते उसके लंड को अजय के नर्म होंठों पर से गुजरना पड़ रहा था । हे भगवान, मम्मी चोदने की सब कलाओं में पारंगत है । प्रणय क्रीड़ा के चरम पर खुद को महसूस कर दीप्ति लंड को जोर जोर से मशीनी पिस्टन की भांति शोभा की झाँटोँ से भरी चूत में भरने लगा । मम्मी खजुराहों की किसी सुन्दर मूर्ति के जैसी बिस्तर पर देवरानी के बुर मेँ लंड अंदर किए पसरी पड़ी थी । एक हाथ पीछे ले जाकर दीप्ति ने अपने भारी नितम्बोँ को सहला रही थी और दुसरे से शोभा की कमर पकड़ उसे अपनी मोटी जांघों की गहराई में दबा रखी थी । मम्मी की गोरा गदराया शरीर धक्कों के साथ बिस्तर पर उछल रहा था ।

शोभा की चूत एक ही समय में चोदी और चूसी जा रही थी । अजय के सिर ने अपनी माँ के लंड के साथ तालमेल बैठा लिया था । जब मम्मी की लंड शोभा चाची की चूत में गुम होता ठीक उसी समय अजय भी चाची के तने हुये चोंचले को पूरा अपने होंठों में समा लेता । फ़िर जैसे ही मम्मी लंड को बुर से बाहर खींचती, वो भी क्लिट को आजाद कर देता । चूत की दिवारों पर घर्षण से उत्पन्न आनन्द, लाल सुर्ख सुपाडी पर पडते बिजली के झटके और शोभा के हाथों में दुखते हुये चूंचें, कुल मिलाकर अब तक का सबसे वहशीयाना और अद्भुत काम समागम था ये दीप्ति के जीवन में । अगले कुछ ही धक्कों के बाद दोनों जेठानी-देवरानी अपने आर्गैज्म के पास पहुंच गये । अब किसी भी क्षण वो अपनी मंजिल को पा सकते हैं । पहले शोभा की चूत का सब्र टूटा । मम्मी के गले में "म्म्म।" की कराह के साथ ही चाची ने अजय के सिर को चूत के ऊपर जोरों से दबा दिया । दीप्ति के हाथों ने पहले से ही दुखते शोभा के स्तनों पर दवाब बढ़ा दिया । दीप्ति की सूजे हुये लंड पर फ़िसलते अजय के होंठों ने आग में घी का काम किया । जैसे ही उसे लंड में कुछ बहने का अहसास हुआ, मम्मी ने लंड को चाची की बुर में जोर-जोर से अन्दर-बाहर करना शुरु कर दिया ।

अजय ने भी चूत से लंड तक बिना रुके चाटना जारी रखा । जीभ पर सबसे पहले चाची का चूतरस आया । क्षणभर पश्चात ही मम्मी का मीठा खत्टा वीर्य भी होठों के किनारे से आ लगा । गंगा, जमुना सरस्वती की भांति, चाची का आर्गैज्म, मम्मी का वीर्य और उसका थूक उसके गले में मिल संगम बना रहे थे । शोभा ने सांस लेने के लिये जेठानी के मुहं में दबे पड़े अपने होंठों को बाहर खींचा । आर्गैज्म के बाद आते हल्के हल्के झटकों के बाद दिमाग सुन्न और शरीर निढाल हो गया । मानो किसी ने पूरी ऊर्जा खींच कर निकाल ली हो । परन्तु अभी तक दीप्ति का लंड तनिक भी शिथिल नहीं हुआ था । बार बार धक्के मार कर शोभा की बुर में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था । शोभा के पेट के बल लुढ़क जाने से मम्मी की लंड अपने आप स्प्रींग की तरह उछल कर बाहर आ गया । अजय रुक कर ये सब देख रहा था । तुरंत अजय ने चाची की टांगों के बीच से घुसकर मम्मी की लंड पर गोल करके अपने होंठों को सरका दिया । कुछ देर तक सिर को हिल-हिला कर मम्मी की लंड को आखिरी बूंद तक आराम से झड़ने दिया ।

दीप्ति आनन्द के मारे कांप रही थी । उत्तेजना से भर कर अपने दांत शोभा की कंधों में गड़ा दिये । वीर्य की आखिरी बूंद भी शोभा चाची के गले में खाली करके मम्मी का लन्ड "पॉप" की आवाज के साथ चाची के मुहं से बाहर निकल आया । शोभा ने पहली बार किसी औरत की वीर्य अपने गले भरा था, इससे पहले भी अजय को चूसते समय उसको गले से बाहर ही अपने मुखड़े पर झड़ाया था और कुमार अपने पति को तो वो सिर्फ़ उत्तेजित करने के लिये ही चुसती हैं । जैसे ही मुहं खोल गले के भीतर का मिश्रण बिस्तर पर उलटना चाहा, जेठानी के वीर्य के गाढ़ेपन और स्वाद से रुक गई । फ़िर उन्गलियां चेहरे पर फ़िरा कर बाकी बचे तरल को भी चटखारे ले लेकर मजे से खा गई । मम्मी ने भी चाची की मांसल जांघों को पकड़ कर अपनी मुँह की तरफ खिंच लायी और उसकी बुर से निकल रहे वीर्य और चुत रस के मिश्रण को चाट के निगल लिया । काफी देर रात तक चोदाई के करण तीनों थक चुके थे और उसी तरह नंगे ही गहरे नींद में सो गए ।

थकान से चूर होकर अजय बेसुध सो रहा था कि देर रात में या कहे की सवेरे की हल्कि रोशनी में बिस्तर पर किसी की कराहों से उसकी आंख खुली । आंखों ने मम्मी को चाची की बुर सहलाते हुए देखा । मोटी मोटी गोरी जांघों के बीच में काले घने बालों से भरी चाची चूत सॉफ नज़र आ रही थी । क्या फूली हुई चूत थी!। मम्मी ने शोभा की टाँगें और चौड़ी कर दी और जीभ निकाल कर चूत चाटने लगी ।

" आआआः ..आ.एयेए..ऊवू! बहुत अच्छा लग रहा है । बाल आपके मुँह में तो नहीं जा रहे दीदी ।?" शोभा अपनी भारी चूतर उच्छाल कर अपनी चूत मम्मी के मुँह पर रगड़ रही थी । दीप्ति कभी शोभा की चूत चाटते और कभी बड़ी बड़ी चूचिओ को चूस्ते । थोरी देर बाद मम्मी और चाची 69 की मुद्रा में आ गये अब शोभा की चूत मम्मी के मुँह पर थी और मम्मी की मोटी लंड शोभा के मुँह में। काफ़ी देर तक चूमा चॅटी का खेल चलता रहा। फिर मम्मी ने चाची को बिस्तेर पर लिटा कर उनकी मोटी जांघों को चौड़ा किया और लंड का सुपरा उनकी चूत के मुँह पर रख कर रगड़ने लगी ।
" ऊऊऊः, अब तंग मत करिए दीदी । पेल दीजिए पूरा लंड।" शोभा गांड को उचका कर लंड चूत में डालने की कोशिश करती हुई बोली। मम्मी अपना लंड चूत के लाल छेद पर रगडती रही और शोभा को उत्तेजित करती रही ।

" बस भी कीजिए।! अब और नहीं सहा जा रहा । मम्मी ने अपनी चौड़ी उभरे गांड हवा में उछाली और एक ज़ोर का धक्का लगाया । मम्मी की लंबा मोटा लंड आधा शोभा की चूत में समा गया ।
" एयाया….आआआः. ऊऊऊऊः….ओई माआअ……।" मम्मी ने लंड को बाहर खींच कर फिर एक ज़ोर का धक्का लगाया । इस बार तो पूरा लंड शोभा की चूत को चीरता हुआ जड़ तक अंडर घुस गया । अब मम्मी के गांड थिरकने से अंडकोष शोभा की गांद के छेद से रगड़ रहे थे । मम्मी अब जबरदस्त गांड उछालते हुए चाची को चोदे जा रही थी ।

" वी माआअ…..आआआआ, आआआहह! धीरे दीदी धीरे । इतने उतावले क्यों हो रहें हैं । एयेए…..आआआः कहीं भागी तो नहीं जा रही ।" मम्मी ने अपना लंड शोभा की चूत से बाहर खींच लिया । शोभा की चूत के रस में गीली मम्मी की लंड एकदम भयानक लग रहा था । मम्मी ने फिर से शोभा की झांटों भरी चूत में मुँह दे दिया और जीभ निकाल कर चाटने लगी । शोभा की सिसकारियाँ तेज होती जा रही थी । वो चूतर उच्छाल उच्छाल कर अपनी चूत मम्मी के मुँह पर रगड़ रही थी । आख़िर जब शोभा से नहीं रहा गया तो बोली, " बस करो दीदी । अब चोद कर मेरी चूत की आग ठंडी करो ।"

मम्मी ने शोभा की चूत में से मुँह निकाला और लंड का सुपरा शोभा की चूत पे रख कर ज़ोरदार धक्का मारा । पूरा 12  इंच का मूसल शोभा की चूत को चीरता हुआ जड़ तक घुस गया ।
"आआआआआ…….आआआआआअ….आआआः, ऊऊ…… चोदो दीदी और ज़ोर से चोदो । फाड़ डालो चूत । अया ओई माआ……बहुत अच्छा लग रहा है ।" चाची मम्मी की धक्कों का जबाब चूतर उछाल उछाल कर दे रही थी । चूत बुरी तरह गीली थी । मम्मी कराहने लगी थी, मुँह से अजीब आवाजें निकल रही थी । भाशो की चूत से फ़च..फ़च…फ़च ओर मुँह से आआआआ…..ऊओ…ऊऊओफ़ की आवाज़ से पूरा कमरा गूँज़ रहा था । फिर मम्मी के धक्के तेज़ होने लगे और । और मम्मी गांड उछाल-उछाल कर चाची को चोदे जा रही थी । अचानक मम्मी कराहने लगी, मानो रो पड़ेगी और एक बार जोर से अपनी उभरी गांड हवा उछाली और चाची के ऊपर लुढ़क गई । फिर से मम्मी की लंड ने ढेर सारा वीर्य भाशो की चूत में उंड़ेल दिया । दो मिनिट के बाद मम्मी ने भाशो की चूत के रस और अपने वीर्य में सना लंड बाहर निकली और उसकी होंठों पे रख दिया । मोटे लंड पे सफेद सफेद रंग का भाशो की चूत का रस और उनका अपना वीर्य चिपका हुआ था । मम्मी के 10 इंच लंबे लंड को जड़ से सुपरे तक चाटने और मुँह में डाल कर चूसने लगी । भाशो की चूत में से वीर्य निकल कर उनकी गांद के छेद की ओर बह रहा था चूत बुरी तरह से फूल गयी थी और झाँटें गीली हो कर चमक रही थी । शोभा ने चाट चाट के मम्मी का लंड साफ कर दिया । मम्मी ने चादर मुट्ठी में भर रखी थी और नीचला होंठ दातों के बीच में दबा रखा था । फिर मम्मी निचे आयी और शोभा की बुर से अपनी वीर्य और बुर रस के मिश्रण को चाटने लगी । अभी तक जी नहीं भरा मम्मी का?। मम्मी अपनी दोहरी सेक्स अंगोँ से भरपूर लुफ्त उठा रही थी..... ये सोचते हुए अजय की आंखें फ़िर से बन्द होने लगी । गहन नींद में समाने से पहले उसके कानों में चाची का याचना भरा स्वर सुनाई दिया ।

जब दीप्ति सुबह उठी तो बाथरुम से किसी के नहाने की आवाज आ रही थी । अजय पास में ही सोया पड़ा था । बाहर सवेरे की रोशनी चमक रही थी । शायद छह बजे थे । अभी उसका पति या देवर नही जागे होंगे । लेकिन यहां अजय का कमरा भी बिखरा पड़ा था । चादर पर जगह जगह धब्बे थे और उसे बदलना जरुरी था । तभी याद आया कि आज तो उसके सास ससुर आने वाले है । घर की बड़ी बहू होने के नाते उसे तो सबसे पहले उठ कर नहाना-धोना है और उनके स्वागत की तैयारियां करनी है । पुरी रात की चोदाई के बाद उसकी लंड दुख रहा था । दीप्ति निचे अपनी लंड पर नजर गडाया... क्या लंड पाई है! अपनी पति और बेटे से भी ज्यादा लम्बा और मोटा लंड था दीप्ति का । अपनी मुरझाए लंड को फिर एक बार मसलते हुए भावना मेँ खो गई.... लंड से चोदने मेँ उसे अद्भुतपूर्व आनंद प्राप्त हो रहा था जो उसकी नारी जीवन कभी नहीँ मिला था । गोरे बदन पर जगह जगह काटने और चूसने के निशान बन गये थे और बालों में पता नहीं क्या लगा था । माथे का सिन्दूर भी बिखर गया था । जैसे तैसे उठ कर जमीन पर पड़ी नाईटी को उठा बदन पर डाला और कमरे से बाहर आ सीढीयों की तरफ़ बढ़ी । और जादू की तरह शोभा पता नहीं कहां से निकल आई । पूरी तरह से भारतीय वेश भूषा में लिपटी खड़ी हाथों में पूजा की थाली थामे हुये थी । "दीदी, मां बाबूजी आते होंगे । मैने सबकुछ बना लिया है । आप बस जल्दी से नहा लीजिये" कहकर शोभा झट से रसोई में घुस गई, आज दिन भर उसे सास ससुर की खातिरदारी में अपनी जेठानी का साथ देना था । रात भर भी साथ देती ही आई थी । खैर, दिन के उजाले में सब कुछ बदल चुका था ।

Meri Badi Shemale cousin ( My Big Shemale chacha ki ladki)



It was a hot Saturday afternoon, so I was content with lounging around in the living room while my cousin, Sonakshi, was busy doing chores. 

She was a tall girl of 5'10" and broad but very beautiful woman. She has quite hairy body for woman in India, big hairy legs, forearms and visible jawline hair and mustache. I like her big bone structure and hairy body. She was perfect example of big chubby ( muscular)body with soft fair skin and dark black hairy but she is very beautiful girl.somehow I like her big body very much.
After hours of doing nothing but flicking through the channels, I decided I would better preoccupying myself with....other things.
"Oh, Branmoy," Sonakshi noticed as I began getting up from the couch. "Do you need anything?"

"Nah, I'm thinking about going to my room and taking a nap," I sighed. "I don't really want to get in your way and all." She gave me her sweet smile, which was enough to light up the darkest caves. My cousin had always been such a sweet person; she's not like those big cousin sisters that always look down on their younger cousins.


"Would you like some snack?" she asked me. "I know how hungry you get when you're hot."
See what I mean? The woman is an angel without wings or a halo. Since her father and my father had died a long time ago and her Mom also died, she live with her . My mother worked an awful lot, my cousin and I spent a lot of time together as we grew up. Even now I still find time for her, I can't count the numerous times I've lost girlfriends over her because I had always put her first. Whether it's canceling a date to watch a movie with her, or leaving my girlfriends high and dry whenever Sonakshi needed me. Truthfully though, I hardly ever cared. All I wanted was to see my sister happy, and if a girl can't appreciate that, then I don't want to be with them.


Her entire life she's had a hard time finding any real friends, not to mention she's always doing all the housework and making sure me and Mom are properly taken care of before she even dares worry about herself. 

She happiest and the most content when she spends time with her family that are we, so I try to make that happen as often as I can.


"I'm fine, but you look like you could use something," I said. "Take a break from your chores and rest; you'll end wearing your ass out if you keep this up."

"Branmoy...." I could hear that disapproving tone of hers.

"Oops, sorry," I shook my head. "Didn't mean that, sometimes this heat gets to me, ya know?"
"That's no excuse for bad language," she wagged a finger at me. "You curse too much, brother. It's one of your bad....habits."

"Come on, I'm not that bad," I grinned turning to face her. What I was greeted with was a beautiful, shapely woman with long black hair and bright emerald eyes. Her shiny mustache hair makes my dick hard instantly. 

I asked her many time that why don't she shave her face and remove her girly mustache ? she smiled me and said that she had notime for all this crap. Maybe because of this all boys fear to come close to her but I liked the way she looks.

Sometime I fear that I am a girly who gets excited by looking big muscular smart woman. I gazed down the rest of her body marveling her many curves and large, luscious breasts of 40 DD, much larger than any woman in our area, she was truly a fine young woman to behold.
Okay, so I may have a small sister complex, big deal. It's not like I was going to break into her room and rape her in her sleep or anything like that. Although, my fantasies about her are starting to get out of control, I should really start slowing down or else I really will do something I'll regret.


"Branmoy?" Sonakshi asked her face now inches away from mine. "Don't scare off into space, your face will get stuck that way."
I shook my head and chuckled before backing away. "Well I'm going to go masturbate," I half joked, smirking when I saw the blush on her face.

"P-Branmoy! Don't say such things to your big sister!" Sonakshi whined.
"I'm just kidding around," I laughed.
"Then why are you going to your room so quickly?" she asked narrowing her eyes. "And there seems to be something poking through your pants, if I'm not mistaken."

Damn, caught. If anything, sister is definitely perceptive. "I-I've got homework to do," I told her quickly scampering up the stairs as she called after me "Branmoy! Don't you lie to me?"
I drown out her protests, quickly slamming the door to my room and locking it. In a flash, I was already stripped down to my boxers and sitting in my computer chair.


"Alright Ms. Champagne, what do you have for me to......wait a minute?" I furiously clicked the mouse. "What's going on here? Why does it say it's blocked?!" I began looking through my bookmarks page, clicking on all my saved sites and getting the same message. "This is insane! How could.....Sonakshi."

If there was one thing I found irritable about my otherwise perfect sister, it was her habit of trying to 'purify' me. She simply couldn't stand the fact that I watched porn or the fact that I masturbated, she keeps telling me that those acts aren't 'pure' or 'dignified'.

"Wait a minute, I've still got my secret stash," I smirk, going under my bed and pulling out a dusty old box I kept from Junior High. I grinned and ripped it open, only to find it completely empty save for a sticky note.

"Branmoy, next time works on your hiding spots," I read, crumbling the note. "Damn her..."
I groaned and flopped back on my bed disappointed, knowing there would be no point in jerking off without any stimulation. I pondered going through Mom's room to see if I could find anything, but I remembered the last time I tried that I ended up getting grounded for weeks.


What the hell does Sonakshi want from me? How the hell does she expect me to get through a week without firing off a few rockets? I'm still in high school, I need this stress reliever. She really needs to take responsibility for her actions....wait a second.

"That's it!" I grinned. "Since this is her fault she'll have to own up to it."
Quickly I opened the door to my room peeking down the steps, seeing my sister still doing her chores. "Alright, this shouldn't take long." I swiftly made my way toward the room across from me, which was her room.

I've hardly been in here, but anyone could tell this room belonged to my older sister. Everything was a hundred percent neat and organized, her favorite color (blue) is all over the place, and not to mention the entire room is filled with her wondrous scent. I grabbed a pillow and sniffed it, savoring the smell of my sister's hair.

"Damn," I moaned slightly before snapping back into reality. "Wait, I need to get what I came for. Ah, here we go."

I looked over to the basket where Sonakshi kept the clothes she'd already worn and were about to wash, after a bit of digging and finally came across exactly what I was looking for. Sonakshi's boxer (strangely, she wore boy's brief, may be she cant find panties for her big ass)  from just yesterday, I happened to know this because she only owns one pair of blue striped ones, and I happened to catch a glimpse of them yesterday. I brought the material to my nose and took a big wiff, god it smelled so fucking good, as if my face were right in between her legs right now.
"Eh?" I said looking at a certain stain on the front. "Is that....cum?" I grinned to myself. "Not so innocent, are we Sonakshi?"


Suddenly I heard the sound of footsteps meaning she was heading up the stairs, knowing I couldn't make it out in time, I scampered into her large closet and closed the door shut just in time as she stepped into the room. Peering through the blinds, I watched as she took a nervous look around before locking her door.

"Hmm," I smiled. "Me thinks the lady is about to have a quick 'session', maybe I should bust her."
My big sister then quickly opened her drawer and pulled some sort of red material before plopping down on her bed.

"Hold on," I narrowed my eyes. "Those are my boxers; they've been missing all week. S-She can't be....."

My eyes shot open as she took a big long sniff of my dirty undergarments. She then gave the sluttiest smile I'd ever seen; better than any porno or magazine model could ever do. She then sighed and bit the front of the underwear running her tongue along it.

"Little brother, you taste so good," she moaned as her hand found her way to her large breasts. 

"I want your cock in my mouth, my little brother's little cock that tastes so good."
Cock? She's never said that word before, hell she's never even said the word 'darn' before, but hearing that dirty word slip out of her innocent little mouth, and I just couldn't take it. I unzipped my pants and grabbed a hold of my already hard 6” rod stroking furiously.


"Give me your cum brother," she moaned unbuttoning her blouse and slipping it off her shoulders, she then set the boxers aside and removed her bra exposing her very hairy armpits and luscious breasts. "Sonakshi's tits are hairy too, too big like water melon and nipples are hairy like a man," I groaned stroking my cock. "This is the first time I've seen them..."
"Brother," she moaned pinching one of her nipples as she spread her legs open revealing her boxer under that short black skirt of hers. "Your scent is making me so hard...."


I hadn't even registered what I said; I just kept mindlessly and shamelessly stroking my cock at my big sister as she kept moaning. "Mmm, Branmoy! Suck on me!"


"God I want to suck your nipples so bad Sonakshi," I moaned, I shut my eyes preparing to blow my load, however when I opened them to get one last look I noticed that her panties and skirt were now around her ankles. What I saw made me almost immediately stop jerking; right in between her big hairy legs was not a pretty, pink, wet pussy, but instead an enormous rock hard cock with a set of huge hairy balls dangling below it.


"D-Dick!!!" I screamed losing my balance and falling right out of the closet, landing in the middle of her floor.


"Branmoy!" I heard my sister yell as I slowly looked up at her. I expected her to run away screaming and calling me a pervert, but she just sat on the bed looking down at me with her beautiful eyes. Her mouth then curved into a wide, sultry grin as she spread her legs a litter wider. "Hello there, Branmoy."

"K-Sonakshi? That is you right?"

"Of course, don't you recognize your big sister?" she asked placing her index finger in her mouth. "Why were you hiding in my closet? Were you beating off? You're such a pervert Branmoy, beating off to your own slut of a sister."

"No you misunderstand!" I said waving my hands. "I-I was....uhm.....I....."

"It's okay," she giggled. "I don't mind, I've always dreamed about you whacking off to me." She then caught my gaze at her penis which was now slowly softening. "Are you surprised?" She stroked it a bit. "Your older sister has a cock attached to her body? Don't you have something to say?"

I did, I had plenty to say. But I couldn't, it was like something was caught in my throat. Not to mention that big beautiful cock of hers..er I mean....augh, what's wrong with me?! I have to call her out right now, come on Branmoy you can-
"Branmoy," Sonakshi grinned seductively at me and grabbed me by the arm pulling me close so that I was sitting on her thigh and her mouth was near my ear. "I want you."

"N-No!!" I yelled lightly pushing her away.

 "Sonakshi! This...this isn't right! How? Why?"
"You want to know about my dick?" she asked looking a bit disappointed. "It's not that complicated, basically I was just born this way. Mom said it was rare but I wasn't the only one like this in the world."

"B-But..."

"There are some big problems with this though," she said. "It's because of this I haven't had many friends, it's also because of this that I get so horny at the most random times during the day. My sex drive is fucking incredible, I can cum so much and so many times it's crazy." She turned back to me. "But I'm never ever satisfied. And you know why?"

I gulped and shakily asked "Why?"

"Because the only one that can satisfy me is you," she whispered. "In fact, you're the only one I can beat off to. Whenever I imagine your handsome face choking on my big dick as I face fuck you.....god just thinking about it makes me want to cum!"

"Sis," I said. This couldn't be the same Sonakshi, my Sonakshi. No, my sister is sweet, caring and pure. This has to be an imposter! Yet, I still feel even more turned on than I've ever felt when looking at her. "Uhm....h-how big?"

"What? This thing?" she asked, wagging her cock at me. "She's a beauty ain't she? All nine and a half inches of her."

“But it’s very thick also, I never saw so thick and big on any man” I comment in a fear.
She then turned to look at me with a gleam in her eye. "Remember it’s a girl dick and it used to be more powerful than man when it’s come out from pussy, you can taste it," she said scooting closer to the edge of the bed. "I promise it's really good."

"But Sonakshi, why you keep so many hairs around it? It looks very dangerous and I'm not gay," I said holding my hands up.

"And you won't be, you are so girly, I used to fuck you when you are only 3 years old, don’t you feel you ass loosen up ? I used to take you in my lap and used to insert my 6”dick while I was only 10 year old. Our mom caught me one day. She slap me and ask me to stop fucking you. She was quite surprised that I have so big dick at only this young age. She asks me to fuck our father daily.


He even used cry whenever I insert my dick in his ass. After father died, everything just happens to be cease. She asks me to wait. You know something come with a little extra. Now its 10” long ““Sonakshi told me. ”I'm still all female, I've had my periods, big boobs and ass and my voice. She then gave me a desperate look.

 "Please, won't you do this for your big sister? The one who's always taken care of you?"
I looked into her eyes and then back to her cock which was beginning to come back alive, unconsciously I sank to my knees and grabbed it earning an audible moan from her. He was very thick, not even my hands could fit around the entire thing, I could even feel it pulsing as I began to squeeze it slightly.

"Please," she moaned. "Suck my dick."
I sighed, unable to refuse her, and took a gulp before replaying everything I saw in porn movies in my mind. Tentatively, I licked the head of it tasting a bit of her sweet pre-cum.

"Yesss," Sonakshi hissed as I took some in my mouth.


She was still pretty soft, so I had to suck and lick on the arrow shaped head to make her harder. Once she was semi-hard I began taking the shaft down my throat, surprising myself at how much of it I was able to fit. Each time I bobbed, I took more and more of her thick monster into my throat until I had reached the very end.
"No gagging?" she giggled. "Well it's not as fun, but maybe you could hum a little tune? I know, how about that song from that anime I like? And could you look at me with those pretty blue eyes of yours?"


I groaned and looked directly at Sonakshi while I hummed the song she'd requested, she moaned along with my tune while slightly thrusting her hips into my rhythm. The longer I did this, the more hit I took to my manly pride. Here I was, on my knees sucking a dick bigger and much stronger than mine, and if that wasn't strange enough, it belonged to my beautiful older sister.
The question 'am I gay?' kept playing over and over in the back of my mind. I know being gay means you're attracted to the same sex or whatever, and, to be honest, I've never in my life been physically attracted to another male. Not to mention if what my sister says is true, and then technically none of this is really gay....besides the fact that I'm sucking a real dick.
So maybe it's fifty percent gay.

"Oh yes," her voice tore me from my thoughts. "Oh....it's close Branmoy....."

I looked up at Sonakshi and watched as she drooled out of her open wide mouth while playing with both her breasts. Sighing inwardly, I decided that this was my big sister, no matter what anyone thinks about this compromising position, to me she was masculine but a female and that was that. I was always fascinating about licking her hairy jawline and get smooched by her mustached lips. Telling myself this sort of put me at ease, however all of my constantly thinking did not prepare me for when Sonakshi decided to take it up a notch and stand up, switching positions with me so that I was leaning against the bed. She then began to forcefully shove her meat in and out of my mouth, grabbing onto her bed for leverage.


"Fuck! I'm gonna cum!" she screamed as she kept pounding my mouth with all her force. "I'm gonna feel your mouth, little brother!"


She gave one final thrust shoving her cock as far as it could go down my throat as she let her seed spill in my mouth forcing me to swallow the enormous load, I've never tasted cum before but my previous girlfriends have told me it tasted salty and disgusting. However, Sonakshi didn't taste at all like that; she tasted sweet, like candy really. I guess she wasn't lying when she said she tasted good.


"Sorry about that," Sonakshi sighed pulling her cock out with a loud pop. "I lost control; I promise I'll make it up to you later. But first..." She reached into my pocket and pulled out a Nirodh condom, something I always kept on me, and ripped it open rolling it onto her cock that was somehow still hard as steel.


"O-Oh shit," I said as my eyes shot wide open. "Sonakshi you can't....no.....I won't be able to handle that! Your dick is bigger than any man of our Bengali community"


"You forget stupid that our mom is Punjabi and Punjabi's do have big cock, dont forget i have hairy body like Punjabi also and don’t worry I'll be gentle," she said stroking her condom barely covered her half cock. "I'd never hurt you Branmoy, you can trust your sweet big sis right?"
"Sona Di," I said. She knew that I was dead serious when I used her pet name. "I am not doing it, so you can just forget about it. I have to draw the line somewhere when it comes to my manhood."

Sonakshi gave me her cute little pout face, that didn't work, and then she gave me her serious mother-like face, that also didn't work. Finally her lip began to quiver as she bit down on it and covered her face in her hands. "Y-You think I'm a freak don't you?" she sniffed.

"That's not going to work Sonakshi," I said crossing my arms.

All the sudden, my twenty-two year old sister was on her knees, crying like some toddler that wasn't getting any candy. "I thought you of all people would understand!" she shouted. "Now I don't have anyone! No friends and no supportive brother!"


I clenched my fist as she continued bawling in front of me, trying my best to hold on. Sonakshi is a good actor, so for all I know these could just be crocodile tears flowing her hairy but very beautiful face. Then again, this could be real and I might end up looking like the jerk. "Damn it," I growled removing my shirt. "The things I do for you sometimes."

Almost immediately, she'd stopped her crying. "Really?!" Yep, it was all an act. "You'll let me fuck you?"

"Yeah," I sighed. "Just try to be gentle with that weapon."

"Oh, thank you Branmoy!" she said hugging me. "If you're up for it, I'll let you fuck me after."
That was the last thing on my mind right now, of course I was gonna get her back for this, but at this moment I'm worried about that massive tool that she's currently applying oil to her dick and her dark dense pubic hair drench of oil and her dick was looking monster in between the long black hairs. She then turned me around and forcefully bent me over the edge of her bed, slapping my ass in the process.

I never know she is so much stronger. I thought she is only chubby arms.

"I'm gonna love pounding this nice ass,"

 Sonakshi smiled as she removed my boxers and tossed them to the side. "Okay I'm gonna loosen you up now, with my size if I just go straight in I'm afraid I might kill you."

She rubbed her index finger around my asshole as I shuddered at how cold the liquid was, she then slowly began sticking it inside, I hissed a bit as she began twirling her finger inside soon she added a second finger and began slowly fucking me with them. "That feels good?"
"A little," I said.

"Well how about this?" she then suddenly pressed down on my prostate causing an audible moan from me and a sudden reaction in my lower regions. "Oh you got a hard-on from that?" 

she asked sounding happy. "You've got a cute little clit brother."

Something about her saying my dick was "cute clit" slightly offended me, but I didn't think about it as she added a third finger and quickened her finger fucking. "You sure know what you're doing for a sweet innocent virgin," I informed her.

No dear I already fucked you many time, have you forget your childhood? And I've watched enough porn," Sonakshi shrugged. "I'm guess I'm not so different from you, we're both huge perverts."

"Let's not forget Mom," I grinned. "I think she's worse than either of us."

Sonakshi giggled and removed her fingers. "I think you're ready now," she said rubbing my ass. "Now, spread 'em."

"Where's this dominate personality of yours coming from?"

"I dunno , may be from Mom," she told me rubbing her slick cock up and down my ass crack. "I'm just a dominate person, kind of surprising isn't it?"

"Yes i should have guess as you have a mustache too, it is."

 She shy and grinned and said " yes I love my mustache, it make me feel what I am purely is , masculine and dominating, I will make you feel feminine"

Finally, she'd had enough teasing and positioned her cock directly at her prize. "This is going to hurt," she told me sincerely. "But I promise it'll feel good."

"Just get on with it," I groaned as she began to push her cock head against my anus. The first few attempts it didn't budge, it was so big like a handle of cricket bat but when she gave it a little more force a few inches of her cock manage to make its way in, causing me to hiss loudly at the sudden pain.

"Hey now," she said rubbing my cheek. "It's alright, just relax yourself."

I felt as if I were being torn in two as she said there for a moment, not wanting to draw this out any longer than I needed to, I decided to get on with it.

"O-Okay, you can keep going," I announced.

She nodded and began slowly pushing the rest inside of me, slowly and tentatively. It almost felt like torture, each inch of that incredible beast was like another stab of pain to my backside. I clenched the sheets and bit down on the pillow as hard as I could until I could feel her heavy powerful hips pressing against me, letting me know that all twelve inches of her rock hard cock was buried inside of me.

"Oh God, she come over my back and her big melons were crushing on my back. She make a grip of her right bicep around my neck and start squeezing my chest with another hand" she moaned,. "You're so damn tight, I feel like you're about to rip my meat off."
“You are the one fucking me off. I don’t know if any man can fuck me like you. You are more masculine than any man I know.” I cried in pain.

I shook my head at her, noting that she obviously liked to talk dirty. It's probably a good thing though, everyone needs an outlet of some sorts and Sonakshi being the person she is rarely ever gets to express her true emotions.

"Hey, I'm going to start now, okay?"

I nodded my consent, as she pulled almost all the way out and pushed back in, she repeated this action slow and tenderly allowing me to get a good feeling. Each time she did this, I felt less and less pain until it was almost entirely evaporated. By then, she had already built up a pretty good rhythm, but I wanted to feel more so I turned to her and asked that she picked up the pace, something she was more than happy to accommodate.

Now she was moving at very fast speed, like a diesel engine, slapping my ass for her own enjoyment, our moans and the sounds of her slapping against me filled the room as she started to pound me into submission. I could only cry her name as she continued to slam inside of me harder, grabbing onto my hair roughly. The whole bed was vibrating under hurricane. She was fucking me like a beast. She was so masculine with having 40 DD breast like Goddess Kali.

"You little slut," she growled into my ear, slamming her cock into me. "How does it feel to have your big sister's pole slamming in and out of you?!" Yup, she played very dominate. "Yeah, keep up that squealing, bitch, I want to hear how much enjoyment you're getting from my cock."

"Hey ram, Sonakshi, it feels so damn good, bite me on neck like lion bite on lioness while fucking her, you are truly my man!"

"That's what I thought," she moaned. "I knew you'd love this, I should have made you my little cockslut years ago."

I could tell she was long gone by now, she was acting like an animal in heat and somehow I was enjoying every bit of it. Suddenly, she slipped her entire cock out of me, eliciting a disappointed groan from my lips.

"Done already?" I asked.

"Hell no," she grinned. "I just wanna try another position, I wanna see your face while I fuck you."

I nodded and lied on my back as she spread my legs in air and pushed her dick right back into me not even bothering to start off slow, as she kept fucking she grabbed my chest with both hands and start squeezing it painful, god I wish I could have some meat on it to save my chest bones and she began to furiously squeeze my nipples also leaning forward and pulling me into a passionate kiss. I really needed to felt her mustache on my lips to feel truly feminine and her masculine as she start sucking my lips. 

"I always wanted to get smoothed by your big mustached lips." I said her

This makes her happy, she become more aggressive, " I know you really like my big hairy body and my mustache , that's why i never shave , I was right that you only understand and love my feelings , i know you masturbate by imaging my girly mustaches".than she said again "Branmoy," she moaned slamming harder. "I'm gonna cum soon, get on your damn knees."

"Sure," I groaned.

She pulled out of me once again, ripping off the condom as I sank to my knees. She then began to furiously jerk off in front of me, her pre-cum flying all over my face.

"Oh shit," She moaned, holding my head in place. "I'm gonna blow my load all over your pretty little face, here it comes!!"

As she said this, a jet of hot liquid shot from her tip, flying onto my face. Following it were more streams of the sticky substance, as it covered my entire face. Eventually, her orgasm subsided, but she continued to stroke her now soft cock, before slapping it against my face.

"Just so you know, you're my little bitch now," she spoke, before slowly sinking onto the bed as if she had been completely drained. For a while, the two of us just sat there, neither one of us wanting to say anything, which was understandable considering what had just happened. "Branmoy?" I noticed the soft squeak in her voice, turning to look at her I saw that she no longer looked like a crazed sexual deviant, but instead was back to the normal shy big sister I had always known. "Um....I'm so-"

"Shh," I grinned hushing her. "No need for an apology, I enjoyed myself really. I'm a little sore though, you were kinda rough."

"Sorry, I can't control myself sometimes when I'm horny," she apologized her beautiful hairy face remaining red as she averted my gaze. "Branmoy....c-can we do it again?"

"We can do it anytime you want," I told her. "You know I'd do anything for you."

"Oh Branmoy," Sonakshi smiled leaning in and giving me a soft innocent kiss. "I love you, you're such a good little brother."

"Love you to sis," I told her.

So that's that grueling tale, well it wasn't so bad now I think back to it. And hey, I actually come to like my sister's cock, though I could do without her little personality switch. Wait was that the bell? Yes! I'm heading straight home! Move, move out of the way freshman! No Brittany I don't wanna go out, move! Hey Pradeep! I'll talk to ya later, I got stuff to do! Running, running, running, running, running.....I'm home! Finally! Now just to open the door and....

"Sonakshi!" I called walking into the house. "You home yet?"

I listened for her voice, hoping she was already upstairs and ready to go, but instead I was greeted with a much smoother and more mature tone from behind. "I sent her out for groceries." It was Mom, apparently she had come home from work earlier than I expected. "You seemed to be in a rush to get home, eh?"

"Oh hey Mom, I thought you had a meeting today," I told her setting my backpack down.

"I've got more important matters to deal with right now," Mom gave me a sly grin. I know that grin, and usually nothing good comes out of it. "Come here son, give Mommy a hug."

I give her a questioning look, wondering what was going on at the moment. Usually by now she'd be howling at me to get her some chips and a beer while she lounged around on the couch, in fact I've rarely seen her this active in my life. Something was definitely up here.

"Oookay," I said going into my mother's arms as she wrapped them around me. "Mom, what's this about?"

"This is nice right?" she asked intentionally pressing my face into her very large breasts. "Being so close to your mother, we haven't hugged like this in a while. You've been spending quite some time with Sona.....I'm growing a little jealous."

Jealous? She couldn't know what the two of us are doing...could she? And is it me, or do I feel a large object pressing against my thigh? "M-Mom? I asked releasing myself from her hug and staring at her. "Oh no....you cannot be serious."

An unmistakable bulge was trying it's best to burst from my mother's skirt as she stuck one of her slender fingers in her mouth and said "I want to spend some quality time with my little boy, just like Sonakshi does." She slowly let her sari up allowing me to see the entire thing.

"D-Dick!!!"